- November 13, 2019
सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में कुछ शर्तों के साथ
नई दिल्ली—— देश के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर अब सूचना के अधिकार (RTI) कानून के दायरे आएगा. हालांकि, निजता और गोपनीयता का अधिकार बरकरार रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच ने बुधवार को ये फैसला दिया.
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में कुछ शर्तों के साथ आएगा.
शीर्ष अदालत ने संविधान के आर्टिकल 124 के तहत ये फैसला दिया है. इस फैसले के बाद अब कोलेजियम के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर डाला जाएगा. फैसला पढ़ते हुए जस्टिस रम्मना ने कहा कि RTI का इस्तेमाल जासूसी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता है.
दरअसल, मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) ने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का दफ्तर आरटीआई के दायरे में होगा. इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया था. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने 2010 में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे कर दिया था. फिर इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया गया. इस बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं.
पहले संवैधानिक बेंच ने क्या कहा था?
इसके पहले प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली बेंच ने इस मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि कोई भी अपारदर्शिता की व्यवस्था नहीं चाहता, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा था, ‘कोई भी अंधेरे की स्थिति में नहीं रहना चाहता या किसी को अंधेरे की स्थिति में नहीं रखना चाहता. आप पारदर्शिता के नाम पर संस्था को नष्ट नहीं कर सकते.’
हाईकोर्ट का फैसला?
दिल्ली हाईकोर्ट ने 10 जनवरी 2010 को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आता है. कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक स्वतंत्रता न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उस पर एक जिम्मेदारी है.
88 पन्नों के फैसले को तब तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन के लिए निजी झटके के रूप में देखा गया था, जो आरटीआई कानून के तहत न्यायाधीशों से संबंधित सूचना का खुलासा किए जाने के विरोध में थे. हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत की इस दलील को खारिज कर दिया था कि सीजेआई कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाए जाने से न्यायिक स्वतंत्रता ‘बाधित’ होगी.