- December 8, 2024
सुख और दुःख, हमारे जीवन के दो पहिये
अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार): सुख और दुःख, हमारे जीवन के दो पहिये हैं, दोनों की धुरी पर ही जीवन की गाड़ी चलती है। जीवन में जितना सुख आता है उतना ही दुःख भी आता है। फिर भी हम सुख का स्वागत तो खुले दिल से करते हैं लेकिन दुःख का नहीं….। जबकि हम भी जानते हैं कि जीवन में अगर सुख है तो दुःख भी आएँगे ही। इसलिए परिस्थिति चाहे जैसी भी हो हमारी एक ही विचारधारा होनी चाहिए कि सब बढ़िया है……!
हम सब जानते हैं कि दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो यह कह सके कि उसने जीवन में कभी दुःख नहीं देखा। हाँ, इस बात का रोना रोने वाले जरुर मिल जाएँगे कि जीवन में दुःख ही दुःख है, आप उन्हें अपना एक दुःख बताने जाएँगे तो वो आपको अपने चार दुःख और सुना देंगे। लेकिन आप ही विचार कीजिये क्या अपने दुखों का रोना रोने से भला उसका कोई समाधान निकलता है….?
मेरे विचार से तो नहीं….., कहते हैं दुःख को जितना महसूस किया जाए यह उतना ही ज्यादा बड़ा लगता है। याद है बचपन में हमें छोटी सी चोट लग जाती थी तो हम पूरा घर सर पर उठा लेते थे, आज बड़े-बड़े दुखों को भी चुपचाप अकेले ही सह जाते हैं। इसलिए ही दुःख को आप जितना महसूस करेंगे यह उतना ही बड़ा लगने लगेगा। लेकिन मन में सकारात्मक विचारधारा रखेंगे तो बड़े-बड़े दुखों और संकटों से आसानी से उबर जाएँगे।
ऊपर से आज का जमाना भी ऐसा नहीं है कि हर किसी को अपना दुःख बताया जाए। क्योंकि आपके दुःख में सच में आपके साथ खड़े होने वाले लोग कम ही मिलेंगे। यह मैं नहीं बल्कि सैकड़ों वर्ष पहले महान कवि रहीम कह गये हैं। रहीम अपने एक दोहे में कहते हैं, “रहीमन निज मन की ब्यथा मनही राखो गोय, सुन अठिलैहें लोग सब बाँट न लैहे कोय”। जिसका हिंदी में अर्थ है कि अपने मन की व्यथा मन में ही रखना चाहिए, क्योंकि आपकी व्यथा सुनकर लोग मजे ही लेंगे उन्हें आपके साथ बांटेगा कोई नहीं।
इसलिए सुखी जीवन जीने के लिए अपने दुखों को हमेशा छोटा और सुखों को बड़ा रखें। यकीन मानिए यह एक छोटी सी आदत अपने व्यवहार में शामिल करने से आपके जीवन की आधी परेशानियाँ तो अपने-आप ही ख़त्म हो जाएंगी। मनोविज्ञान भी यही कहता है कि जब व्यक्ति किसी क्षणिक दुःख को भी लगातार सोचता रहता है तो उसका दिमाग शिथिल होने लगता है और वह अपने दैनिक जीवन की उझानों को भी सुलझा नहीं पाता। इस तरह वह परेशानियों के जाल में फंसता चला जाता है, जबकि छोटी-छोटी खुशियों में खुश रहने वाला व्यक्ति अपने बड़े-बड़े दुखों और परेशानियों को भी बड़ी कुशलता और शांति के साथ हल कर लेता है।
आध्यात्म की विचारधारा के अनुसार जीवन में वही होता है जो हम मान रहे होते हैं। अगर हम मन से यह मान लेंगे कि जीवन में दुःख ही दुःख है तो हम और दुखों को आकर्षित करेंगे। वहीं अगर मन में विश्वास रखें कि अच्छा समय है और जो छोटे-मोटे दुःख हैं ये भी बीत ही जाएँगे तो जीवन सुखी लगने लगेगा और आप और सुखों को आकर्षित करेंगे। इसलिए सुख हो या दुःख हमेशा सकारात्मक रहें और जब कोई आपसे आपका हाल पूछे, तो एक मुस्कान और सकारात्मकता के साथ कहें कि और सब बढ़िया……..
आजकल की शादियाँ दिखावा…? देव उठने के साथ ही शादियों का सीजन शुरू हो चुका है। इस सीजन में जीवन की नई शुरुआत करने वाले नव दंपतियों को मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएँ…। आने वाले कुछ महीनों तक शहनाइयों की गूंज और शादियों की चमक-दमक बनी रहेगी। आप में से भी ऐसे कई लोग होंगे, जिनके घर शादी के न्योते आ चुके होंगे या जिनके घर में ही शादी होगी। ईश्वर में यही कामना है कि आपके घर का आयोजन हंसी-खुशी संपन्न हो। लेकिन अपने इस आयोजन को पारिवारिक मेल-जोल का जरिया बनाने का प्रयास करेंगे तो यह ज्यादा सफल बन सकेगा….।
क्योंकि आजकल हमारे यहाँ बड़ी-बड़ी और महँगी शादियाँ करना एक चलन बन गया है, इसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाने लगा है। जो जितनी महँगी शादी का आयोजन कर रहा है, उसे समाज में उतना ही संपन्न माना जाएगा। बात सिर्फ महँगी शादी की नहीं है। शादी जितने दिन तक चलेगी उसे उतनी ज्यादा मान्यता दी जाएगी, जिसमें छोटी-छोटी रस्मों के लिए भी बड़े-बड़े आयोजन होना जरुरी है। फिर हर आयोजन के अनुसार अलग-अलग पहsनावा जैसे मेहंदी के लिए हरे कपड़े, हल्दी की रस्म में शामिल होना है तो पीले रंग के कपड़े, उस पर कुछ पाश्चात्य संस्कृति का भी दिखावा करने के लिए कॉकटेल पार्टी, बॉलीवुड के किसी समारोह की तरह दिखने वाला संगीत का समारोह, इतना होना तो आवश्यक है। इन आयोजनों का खर्च जितना मेजबान पर भारी पड़ता है, उससे ज्यादा महंगे ये मेहमान के लिए भी साबित होते हैं। आपको जिस आयोजन में शामिल होना है, उसके हिसाब से कपड़े होना चाहिए, और अगर नजदीकी रिश्तेदार के यहाँ शादी है, तो फिर पूरा परिवार ही जाएगा। मतलब जितने लोग उतने ही नए कपड़े होना जरुरी है। अब जितने अलग प्रकार के कपड़े उतना ही बनाव-श्रृंगार का सामान भी चाहिए। फिर आप शादी में खाली हाथ तो नहीं जाएँगे। मतलब शगुन या तोहफे का भी खर्च जोडिए। जब शादी इतनी भव्य की जा रही है तो भेंट भी वैसी ही होनी चाहिए।
इसके अलावा मशहूर हस्तियों को देखकर आजकल डेस्टिनेशन वेडिंग का एक नया ट्रेंड चला है, लोग अपने शहर से दूर जाकर शादियाँ करने लगे हैं, जिसमें गिनती के मेहमानों को बुलाया जाता है। मतलब आप किसी के बहुत ही करीबी होंगे तो ही आपका नाम मेहमानों की लिस्ट में दर्ज किया जाएगा। अब जब आप इतने करीब के रिश्तेदार हैं, तो जाना आवश्यक है। लेकिन मान लीजिए कि डेस्टिनेशन वेडिंग का डेस्टिनेशन आपके शहर से बहुत दूर है, तो सभी रस्मों में शामिल होने के लिए बनाव श्रृंगार का खर्चा तो बढ़ा ही और अब आने-जाने का खर्च अलग से….। यह चलन मेहमान और मेजबान के लिए महंगा तो है ही लेकिन इसका एक पक्ष ये भी है कि इससे रिश्तों में दूरियां आ रही है। जिन्हें नहीं बुलाया गया उनके मन ये विचार आना तो स्वाभाविक है कि हम करीब नहीं इसलिए हमें नहीं बुलाया गया ये आपकी एक नकारात्मक छवि बनाता है और रिश्तों में दरार का कारण बनता है।
आजकल शादियों में दिखावा बहुत आम हो गया है। इस दिखावे के चलते शादीयों में कई प्रकार के पकवान बनवाए जाते हैं। स्टॉल्स अलग, मेन कोर्स अलग, उसमें भी हर चीज़ के कई विकल्प तीन प्रकार की सब्जियां और पांच तरह की मिठाइयाँ होना तो जरुरी हो गया है। सब मिलकर इतना खाना हो जाता है जितना एक आम व्यक्ति एक बार में शायद ही खा पाए। नतीजा ये होता है कि खाने की बर्बादी होती है। लोग शौक-शौक में ढेर सारा खाना ले लेते हैं फिर न खा पाने की स्थिति में ये सारा खाना व्यर्थ जाता है। खाना बचता भी बहुत है, जिसे कई बार फेक दिया जाता है। इससे नुकसान तो होता ही है साथ ही अन्न का अपमान होता है।
शादियों के बदलते नए-नए ट्रेंड ने शादियों को खर्चीला बना दिया है ,जिसे वहन करना एक आम आदमी के लिए संभव नहीं, तो फिर गरीबों की तो बात ही क्या की जाए ….। एक गरीब व्यक्ति जो ठीक से दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाता, उसके लिए तो यह सब सपना ही है, तो गरीब अब शादी भी ना करे। इस देश में करीब 37 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी और अभाव में जी रहे हैं। उनके लिए इस तरह के आयोजन करना संभव नहीं और ना किए जाए तो बात इज्जत पर आ जाएगी। इसलिए अपने मान-सम्मान को बनाए रखने के लिए ये लोग कर्ज का सहारा लेते हैं और एक नई मुसीबत के भंवर में फंस जाते हैं। आपके आस-पास ही आपको ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएँगे।
सोचिये अगर कोई व्यक्ति गरीब है या उसकी आय ही इतनी नहीं कि इन खर्चों के लिए खर्च कर सके तो क्या वो अब शादियों में ही ना जाए….? जरा विचार कीजिये आपका यह आयोजन उसके लिए कितनी बड़ी चिंता खड़ीं कर देगा जिसकी इतनी आमदनी इतनी नहीं कि फिजूल के खर्चों में पैसा बहाया जाए । शादी ब्याह के आयोजन नए रिश्तों का स्वागत करने के लिए होते हैं ना की किसी की गरीबी का उपहास उड़ाने या रिश्तों में दूरियां बनाने के लिए। शादी ब्याह के आयोजन करें लेकिन उन लोगों का भी खयाल रखें जो, अभाव का जीवन जी रहे हैं। कोई भी बड़ा आयोजन करने से पहले विचार कीजिये कि अपने घर के आयोजन में दिखावा करके आप समाज के सामने कोई गलत उदाहरण तो नहीं रख रहे हैं। आपका ये आयोजन किसी के घर का बजट तो नहीं बिगाड़ देगा। शादी ब्याह के आयोजन कीजिये पर इस तरह कि ये आपके रिश्तों की मिठास को बढ़ाए ना की किसी के जेब पर एक और बोझ बन जाए….
सबका साथ, सबका विकास की तर्ज पर पीआर 24×7 ने मनाया 25 वर्षों का जश्न
इंदौर, सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता ही वह गुण है जो आपकी उपलब्धियों और भविष्य की ऊँचाइयों को तय करता है। इसको जीवंत करते हुए, इंदौर की प्रतिष्ठित और देश की सबसे प्रॉमिसिंग पीआर कंपनी, पीआर 24×7, ने अपने गौरवशाली 25 वर्षों की यात्रा पूरी की।
अपनी पहचान और विश्वसनीयता के पथ पर आगे बढ़ते हुए, पीआर 24×7 ने न केवल अपने क्लाइंट्स का भरोसा जीता, बल्कि अपने एम्प्लॉयीज़ को भी साथ लेकर चलने की अनोखी मिसाल पेश की है। यही कारण है कि आज यह कंपनी पूरे देश में एक अलग पहचान रखती है।
अपने प्रमोशन पर रोहित ढोलिया, असिस्टेंट मैनेजर- पीआर एंड मिडिया मॉनिटरिंग ने कहा, ” कंपनी के साथ मेरा 5 साल का अनुभव प्रेरणादायक रहा है। यह प्रमोशन मेरे लिए बहुत गर्व का पल है। मैं पीआर 24×7 का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने मेरी मेहनत को पहचाना। मैं अपनी नई जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी और लगन से निभाने का प्रयास करूँगा।”
इस मौके पर पीआर 24×7 के संस्थापक, श्री अतुल मलिकराम ने कहा,”मेरा मानना है कि किसी भी कंपनी की सफलता उसके एम्प्लॉयीज़ की मेहनत और समर्पण पर निर्भर करती है। एम्प्लॉयीज़ किसी भी कंपनी की रीढ़ होते हैं, और उनके बिना कंपनी केवल एक ढांचा मात्र है। पीआर 24×7 में हुए सभी प्रमोशन्स न केवल एम्प्लॉयीज़ की नई जिम्मेदारियों की शुरुआत हैं, बल्कि कंपनी को विकास के नए आयाम तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी हैं।