• December 17, 2015

सीमित न रहें घरौंदों तक ही – डॉ. दीपक आचार्य

सीमित न रहें  घरौंदों तक ही  – डॉ. दीपक आचार्य

संपर्क –  dr.deepakaacharya@gmail.com
9413306077

हम सभी में भगवान ने अपार क्षमताएं भरी हुई हैं लेकिन इन्हें जानने की हमने कभी कोई ईमानदार कोशिश नहीं की। सभी तरह की संभावनाओं के होते हुए भी हमारी स्थिति कस्तूरी मृग की तरह है जिसे अपने भीतर के सामथ्र्य का कोई भान नहीं है और पूरे वन में बेतहाशा तलाश करता हुआ भागता फिरता है और अन्ततः पछताता हुआ बिना कुछ किए खाली हाथ लौट पड़ता हैै।

हर इंसान के भीतर ऊर्जा का अखूट भण्डार होता है लेकिन मात्र दो या तीन फीसदी लोग ही इसे जान पाते हैं, इसका उपयोग कर पाते हैं और दुनिया को कुछ दे पाते हैं। अन्यथा बाकी सारे लोग जिन्दगी भर तक उसकी तलाश में लगे रहते हैं जो परमात्मा ने उनके भीतर जन्म से ही भर रखा है।

अपने आप से अनजान, अपनी शक्तियों से बेखबर ये सारे लोग जीवन भर भटकते रहते हैं, बाहरी दुनिया से कुछ न कुछ पाने के फेर में भिखारियों की तरह जहाँ-तहाँ याचना करते रहते हैं और ऎसे पेश आते हैं जैसे कि किसी कि जरखरीद गुलाम ही हों।

 अपनी छोटी-छोटी ऎषणाओं और क्षणिक स्वार्थों के लिए ये लोग हर तरह के समझौतों को स्वीकार कर लिया करते हैं, हर तरह के लोगों के पिछलग्गू हो जाते हैं। इनके लिए न कोई अस्वीकार्य होता है, न अपात्र। बल्कि जो हमारे किसी भी काम में आने लायक हो, उसे हम अपना आत्मीय मान बैठते हैं।

एक-दूसरे को लाभान्वित करने और कराने, परस्पर प्रशंसा के पुल बाँधने और अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर डालने का माद्दा हमारे सिवा और किसी में हो ही नहीं सकता। इस मामले में हम सभी लोग महान ही हैं।

इतनी सारी खूबियों और मौलिक प्रतिभाओं के बावजूद हम अपने आपको आत्महीन, कमजोर और नाकारा मान बैठें, तो इसमें किसी और का कोई दोष नहीं है। इन तमाम स्थितियों के बावजूद हम इंसानों की स्थिति बड़ी ही विचित्र है।

दुर्भाग्य यह है कि हमारी प्रतिभाओं का कोई उपयुक्त लाभ न हमें प्राप्त हो रहा है, न जमाने को। इसी जानी-बूझी अनभिज्ञता और ओढ़े हुए आलस्य-प्रमाद की वजह से हम सभी विराट व्यक्तित्व वाले लोग अपने आपको संकीर्ण मान बैठे हैं और इसी संकीर्णता की वजह से हमारी दुनिया इस कदर सिमटी हुई होकर रह गई है जैसे कि कंदराओं में छुपे रहने वाले वन्यजीव अथवा शीत निष्कि्रयता में घुस बैठे  जीव।

हमारे लिए अब ये समाज, अपना क्षेत्र, प्रकृति, खुला आसमाँ और दुनिया किसी काम की नहीं रही। हम भले, हमारा घर भला और हमारे काम-धंधे। हमारा बैंक बैलेंस भला, जमीन-जायदाद और हमें आत्म मुग्ध कर देने वाली लोकप्रियता भली। इससे आगे न हमारी सोच रही है, न रहेगी।

कारण साफ है कि जब एक बार इंसान अपने आपको हीन कर्मों और लक्ष्यों में बाँध लेता है तब उसके जीवन का दायरा अत्यन्त सीमित हो जाता है और इंसान कछुवा छाप होकर रह जाता है। एक बार जो कछुवे हो गए तो फिर आदमी को आदमी बनाना मुश्किल ही है।

दुनिया में बहुत सारे लोग ऎसे थे जो अपनी प्रतिभाओं के बल पर संसार भर को बहुत कुछ दे सकते थे। लेकिन कुछ को गरीबी ने मार दिया, कइयों को इश्क का भूत खा गया, और बहुत सारे लोगों को परिस्थितियों ने सताए रखा। ढेरों ऎसे रहे हैं जिन्हें अपने वालों ने लूट लिया, आगे बढ़ने नहीं दिया। जैसे ही किसी ने ऊँचाइयां पाने की कोशिश की, कैंकड़ा छाप लोगों ने अपने सारे फन दिखाते हुए इनकी टाँगें खींच कर गिरा डाला।

इंसान की प्रतिभाओं का क्षरण करने के लिए दुनिया में पग-पग पर डायनासौर बैठे हुए हैं जिनकी निगाह इसी बात पर केन्दि्रत होती है कि किस तरह इंसान को गिराया जाए, ताकि वो फिर कभी उठ न पाए।

बहुत से प्रतिभाशाली लोगों को घर वालों ने पालतु और फालतू समझ कर अपने गिरेबान में जकड़ रखा है। बहुत से मेधावी लोगों को इश्क की हवाओं ने इतना अधिक बिगाड़ दिया है कि वे कहीं के नहीं रहे।

इनका अधिकतम समय इश्कियां बातोें में ही खर्च होने लगा है। हालात ये हैं कि इश्क ने इनका सब कुछ बिगाड़ के रख दिया है। न भक्तियोग में मन लगता है, न कर्मयोग में, न ज्ञानयोग न सेवायोेग में।  हर वक्त इन्हें कुछ ही कुछ अक्स दिखते हैं, कुछ ही कुछ के लिए काम करने को जिन्दगी समझते हैं।

यही वजह है कि इस संसार ने बहुत सारे ऎसे लोगों को खो दिया जो समाज के काम आ सकते थे, रिकार्ड कायम कर सकते थे और दुनिया में नाम कमा सकते थे लेकिन कुछ लोगों के मोह में पड़कर ऎसे फंसे कि कुछ न कर पाए और चन्द लोगों के इर्द-गिर्द रहते हुए ही सिधार गए।

बहुत सारे लोग आज भी इसी मोहग्रस्त परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। बहुत सारे लोगों की स्थिति यह है कि वे कितने ही महान, अच्छे और सर्वश्रेष्ठ कर्मयोगी हों, घर के लोगों ने उन्हें पालतु और कमाऊ इंसान से अधिक नहीं समझा और इसीलिए इन्हें हमेशा आत्मीयता देते हुए पारिवारिक खूँटों से में बाँधे रखा,बाहर नहीं निकलने दिया। जब-जब भी पंख फड़फड़ाते, इन्हें नज़रबंद कर दिया जाता।

बहुत सारी महिलाओं और पुरुषों की यही स्थिति रही है। इनके घरवालों ने इन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया और इमोशनल टच देते हुए अपने से कस कर इस तरह बाँधे रखा कि ये जमाने भर को भूल गए और मरते दम तक नज़रबंदी की तरह रहे।

दुनिया में प्रतिभाओं को मोहपाश या किसी न किसी प्रलोभन में बाँधे रखने वाले खूब सारे मदारियों का तिलस्म हर युग में देखा जाता रहा है। पहले के युगों में कुछ ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ा करती थी, अब मामूली जाल फैला देने भर से इसमें किसी को भी आसानी से गिरफ्त में लाया जा सकता है।

यह दुनिया जानने के लिए है, कुछ करने और पाने के लिए है ताकि ज्ञान और अनुभवों को निचोड़ सबके सामने रखकर दुनिया के लिए कुछ समर्पित कर सकें और मनुष्य जन्म को सार्थकता दे सकें। लेकिन इन सभी के लिए जरूरी है संकीर्णताओं से मुक्ति पाकर वैश्विक पहचान बनाने की। मोहग्रस्त न हों,अपने कर्मयोग को सर्वोपरि मानें और आगे बढ़ें।

Related post

सिक्किम की नदियाँ खतरे में !

सिक्किम की नदियाँ खतरे में !

लखनउ (निशांत सक्सेना) —— तीस्ता -III परियोजना पर वैज्ञानिक पुनर्मूल्यांकन और लोकतांत्रिक निर्णय की माँग जब भी…
हमारे भारत में, लाखों लोग यहां रह रहे हैं, जिन्हें रहने का कोई अधिकार नहीं है

हमारे भारत में, लाखों लोग यहां रह रहे हैं, जिन्हें रहने का कोई अधिकार नहीं है

पीआईबी : (नई दिल्ली)  उप राष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़  ने अवैध प्रवास पर गंभीर चिंता व्यक्त…
भाषा मानवता को समझने का एक पासपोर्ट है- श्री टिम कर्टिस, निदेशक, यूनेस्को प्रतिनिधि

भाषा मानवता को समझने का एक पासपोर्ट है- श्री टिम कर्टिस, निदेशक, यूनेस्को प्रतिनिधि

पीआईबी दिल्ली : इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने 21 और 22 फरवरी 2025 को…

Leave a Reply