सियासी तापमान छुए आसमान—– सज्जाद हैदर

सियासी तापमान छुए आसमान—– सज्जाद हैदर

वाह रे देश की सियासत,

तेरे रूप हज़ार, नेताओं का सियासी वार, चुनाव आयोग का नोटिस रूपी प्रहार, सारे नियम कानून नेताओं के आगे हुए बेकार, नेताओं में हो रही है तकरार, कैसे हो अपने पक्ष में मतों की बौछार। सियासत की रूप रेखा कुछ इसी प्रकार हो चली है देश के नेताओं में चुनाव को जीतने हेतु सभी प्रकार के अस्त्र, एवं सियासी शस्त्र का प्रयोग किया जा रहा है।

जिसमें देश की चुनाव से संबन्धित जिम्मेदारी का निर्वाह करने वाली संस्था जिसे चुनाव आयोग के नाम से जाना जाता है, चुनाव आयोग चुनावी माहौल को बनाए रखने के लिए सभी प्रत्याशियों पर अपनी पैनी नज़र रखता है, यह चुनाव आयोग का अधिकार एवं जिम्मेदारी है कि वह देश के चुनाव को निष्पक्ष एवं शान्ति पूर्ण ढ़ंग से संपन्न कराए। इसलिए चुनाव आयोग को यह अधिकार प्रदान किए गए हैं कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग कर देश में शांति व्यवस्था को कायम रखे।

अतः देश का चुनाव आयोग आज अपने अधिकारों का प्रयोग कर नेताओं को चुनाव में माहौल एवं सौहार्द बिगाड़ने हेतु नोटिस थमा रहा है। परन्तु, नेताओं की स्थिति जस कि तस बनी हुई है। चुनाव आयोग अपने अधिकार एवं नियम के अनुसार नोटिस थमा रहा है। परन्तु, देश के नेता उसका नया से नया तरीका खोज निकालते हैं।

इसलिए कि चुनाव में जनता के बीच बने रहना ही प्रचार है, प्रचार का अर्थ यह है कि जनता के बीच आप अपने लिए जनसमर्थन नहीं मांग सकते, तो देश के नेता भी किसी वैज्ञानिक से कम नहीं हैं, वह अपने लिए कोई न कोई नया तरीका खोज ही लेते हैं जिससे कि जनता के बीच वह बने रहें। उनकी लोकप्रियता में किसी प्रकार की कमी न होने पाए इसलिए नेता जी अपने लिए कोई न कोई नया अविष्कार अपनी वैज्ञानिक विधि से कर ही लेते हैं। जिसका ताजा उदाहरण भोपाल का लोकसभा चुनाव बना हुआ है।

चुनाव आयोग ने अपनी तमाम कोशिशें कर लीं परन्तु, सियासी समीकरणों को साधने हेतु नेतागण अपनी-अपनी बुद्धि से नया-नया अविष्कार कर रहे हैं जिससे की वह चर्चा में बने रहें, मतदाताओं तक अपनी पहुँच को कायम रखने के लिए नेतागण नया से नया उपाय खोजते रहते हैं। यह भी सत्य है कि सत्ता एवं सिंहासन की लालसा कोई नई बात नहीं है, सत्ता के चोष्टा में नेता सब कुछ करने के लिए आतुर रहते हैं, चाहे वह जिस क्षेत्र अथवा जिस रूप में हो।

क्योंकि, आज के अधिकतर नेताओं का उद्देश्य मात्र कुर्सी पर कब्जा जमाना ही रह गया है। इससे इतर और कुछ नहीं। खास बात यह है कि नेताओं को इस बात का पूर्ण ज्ञान है कि चुनाव आयोग क्या करेगा, बहुत ही अधिक हो हल्ला अगर हुआ तो उसका सीधा एवं सरल उपाय यह है कि माफी माँगकर मुक्ति प्राप्त कर लेंगे, इससे समाज में क्या बदलाव अथवा क्या अंतर पैदा होता है इससे किसी को भी कोई चिंता नहीं है।

चिंता बस एक विषय की है वह है सत्ता की कुर्सी को किस प्रकार हथियाया जाए, सारी प्रक्रिया एवं सारा समीकरण इसी बात पर केन्द्रित होता है कि किस प्रकार से चुनाव में अपने आपको प्रबल एवं मजबूत उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जाए और जनता का पूरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जाए।

सारी बाधाएं एवं सारी मर्यादाएं ताक पर रखकर नेतागण तरह-तरह के उपाय खोज निकालते हैं। यह कितना उचित है अथवा कितना अनुचित इसपर कौन प्रकाश डालेगा। कौन से पैरामीटर पर नेताओं के शब्दों को परखा जाएगा। क्योंकि, देश के अन्दर ऐसा कोई यंत्र नहीं है जोकि ऐसे शब्दों को माप सके।

आने वाली नई पीढ़ी पर इसका क्या असर पड़ेगा इसकी चिंता कौन करेगा यह अत्यधिक चिंता का विषय है। क्योंकि, किसी भी प्रकार से देश को क्षति पहुँचाना देश के भविष्य के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है।

फिर चाहे वह जिस रूप में क्यों न प्रस्तुत किया जा रहा हो। कश्मीर हो अथवा कन्याकुमारी बंगाल हो अथवा भोपाल, सभी को देश एवं देश के महापुरूषों को ध्यान में रखना ही होगा, इसलिए कि जब देश रहेगा तभी ऐसे नेता चुनाव लड़ेंगे, देश के सभी नेताओं को इस बात पर विशेष रूप से अपना ध्यान करने की आवश्यकता है। जिससे की आने वाली पीढ़ी को इस प्रदूषित वातावरण से बचाया जा सके।

अतः आने वाले समय में इसके परिणाम अत्यधिक घातक होगें जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसलिए हमें आने वाली पीढ़ी को इस प्रदूषित वातावरण से समय रहते हुए बचाना होगा। यह तभी संभव होगा जब हम अपने शब्दों के चयन, बोलने की शैली पर पूर्ण रूप से स्वयं परिवर्तन लाएं।

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