सिपाही बनाम प्यादा सियासत का इरादा।– सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)

सिपाही बनाम प्यादा सियासत का इरादा।– सज्जाद हैदर (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)

जी हां उत्तर प्रदेश का चुनाव आरंभ हो चुका है सियासी योद्धा मैदान में कूद चुके हैं सब अपना-अपना भाग्य भरपूर आजमा रहे हैं। सभी महारथी जनता के बीच जाकर अपना-अपना करतब दिखा रहे हैं। सियासी बांड़ वायुमण्डल में भरपूर दागे जा रहे हैं। सियासी मंचों पर राजनेता जादुई चिराग लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। सभी छोटे बड़े दलों ने अपने-अपने महारथियों को मैदान में करतब दिखाने के लिए उतार दिया है। सियासी चिराग से सियासी जिन मंच से मैदान की ओर ढ़केल कर बखूबी पहुँचाया जा रहा है। क्योंकि सियासी जिन्न ही है जोकि सियासी माहौल को बखूबी गढ़ सकता है। इसलिए जिन्नाती चिराग पूरी दमखम के साथ दौड़ रहा है। सभी महारथी अपना-अपना हुनर दिखा रहे हैं जिसको प्रदेश की जनता टकटकी लगाए हुए निहार रही है। महारथियों की कुश्तियाँ आरंभ हैं। जो कि जनता के सामने है। परन्तु सियासत के मैदान का एक दृश्य सबसे विचित्र है। क्या राजनीतिक महारथियों की कुश्तियाँ वास्तविक कुश्ती है अथवा नूरा कुश्ती। क्योंकि सत्ता की चाहत में महारथी अनेकों प्रकार के नए से नए उपाय खोजकर जनता के सामने प्रकट हो रहे हैं। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि यह सियासी महारथी किसी वैज्ञानिक से तनिक भी कम नहीं हैं क्योंकि यह महारथी सियासी प्रदर्शन के लिए जिस प्रकार का ताना-बाना बुन देते हैं वह तो कोई भी वैज्ञानिक भी साधारण रूप से कर पाने में पूर्ण रूप से में सफल नहीं हो सकता। परन्तु यह सियासी महारथी हैं। यह जो कुछ भी चाहें बड़ी ही उपयुक्त रणनीति के साथ कर सकते हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए महारथियों ने करतब दिखाने आरंभ कर दिए हैं। जिसका रूप ही नहीं रंग भी निराला है।
इस पूरे चक्र में जनता कहाँ खड़ी है यह बड़ा सवाल है। क्योंकि जो भी महारथी सियासत के मैदान में करतब दिखा रहें हैं उनका खास उद्देश्य है। कोई भी महारथी बिना किसी उद्देश्य के मैदान में करतब नहीं दिखा रहा है। भाग्य बदलने की बात तो सब करते हैं यह भी सत्य है। परन्तु भाग्य किसका बदलेगा यह बड़ा सवाल है। क्योंकि ननकू-रज्जाक की प्रगति की क्या स्थिति है यह भी किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। ननकू-रज्जाक ने कितनी प्रगति की है यह भी जगजाहिर है। लेकिन सियासत के सियासी खिलाड़ी अपने-अपने हुनर को बखूबी आजमा रहे हैं। सब अपने अपने करतब का प्रदर्शन कर रहे हैं। क्योंकि करतब के पीछे सबके अपने-अपने उद्देश्य हैं। कोई चुनाव में विजय प्राप्त के लिए मैदान में उतरा है तो कोई चुनाव में विजय दिलवाने के उद्देश्य से मैदान में उतरा है। ऐसा क्यों न हो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि सभी सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं कोई ईश्वर का दूत नहीं है। इसलिए सभी को अपना-अपना जादू चलाने का पूरा अधिकार है। सब अपने-अपने जिन्नाती चिराग को लेकर घूम रहे हैं।
कोई प्रत्यक्ष रूप से सत्ता का स्वाद चखना चाहता है तो कोई परोक्षरूप से सत्ता का आनंद लेने की जुगत में लगा हुआ है। सियासी कुश्ती का खेल चल रहा है। यह अलग बात है कि कुश्ती कहां कुश्ती है और कहां पर नूरा कुश्ती। परनतु जनता है। चुनाव है। कलाकार बड़े हैं कोई साधारण कलाकार नहीं हैं। जनता पूर्ण रूप से टकटकी लगाए हुए निहार रही है। बयानबाजी अपने चरम पर है। बयान दाता अपनी बयानबाजी से जनता को अपनी ओर आकर्षित करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सभी बयान दाता जनता को अपने पाले में समेटना चाहते हैं। अब देखना यह है कि बयान दाताओं की बयानबाजी में जनता कहां तक सिमट पाती है। और किसके ओर सिमट पाती है। क्योंकि इस खेल में एक दृश्य बड़ा गम्भीर है जोकि पर्दे के पीछे है जिसे साधारण आँखों से नहीं देखा जा सकता उसे देखने के लिए एक खास उपकरण की जरूरत होती है।
सत्ता और सियासत में जो कुछ सामने से दिखाई देता है कभी-कभी वह सत्य नहीं होता अपितु सत्य वह होता है जोकि दिखाई नहीं देता। जिसे समझने की आवश्यकता है।

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