- September 25, 2017
सात बेटियां — 72 मेडल
झज्जर/रोहतक (गौरव शर्मा)———— बेटे की चाह में 10 बच्चे। पहले तीन बेटे ही थे लेकिन जन्म के कुछ समय बाद ही गुजर गए।
रोहतक बेटे की चाह में 10 बच्चे। पहले तीन बेटे ही थे लेकिन जन्म के कुछ समय बाद ही गुजर गए। फिर एक के बाद एक सात बेटियां। एक भी बेटा होने के कारण परिवार को समाज से ताने झेलने पड़ते थे। लेकिन, इन सात बेटियों ने आगे चल कर कामयाबी के ऐसे तीर चलाए कि सबकी बोलती बंद हो गई।
सातों बहनें तीरंदाज बनीं और जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक 72 मेडल जीतकर उस पिता, समाज और गांव को प्रसिद्धि दिला दी जिनकी सोच थी कि घर में बेटा ही होना चाहिए। यह कहानी है हरियाणा के नारनौल की सात बहनों की। बलवंत जब छठी क्लास में थी, तभी उसने तीरंदाजी का अभ्यास शुरू किया। कोच सुरेंद्र ने हुनर को तराशा। दूसरों के धनुष-बाण से स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया।
1995 तक उसने इनामी राशि से तीन हजार रुपए इकट्ठा कर लिए। इससे उसने टूटा ही सही अपना धनुष खरीदा। इसे ठीक कराया और अपनी छोटी बहनों को भी ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। वर्ष 2001-02 में नारनौल में जिलास्तरीय ट्रायल हुए। इसमें पहले तीन स्थान पर बलवंत और उनकी दो बहनें ही आई थीं। सात में से तीन बहनें अब तीरंदाजी कोच बन चुकी हैं। एक बहन टीचर है। तीन बेटियां गृहस्थी संभालने के साथ-साथ खिलाड़ियों को पार्ट टाइम प्रशिक्षण देती हैं।
अभाव में चुनी इंडियन कैटेगरी
बलवंतने बताया कि मैकेनिक का काम करने वाले पिता श्रीचंद की आय इतनी नहीं थी कि वे महंगे धनुष-बाण लाकर देते। इस वजह से रिकर्व की जगह इंडियन कैटेगरी को चुना। रिकर्व का अच्छा धनुष-बाण ही सवा-डेढ़ लाख रुपए का आता है।
ये हैं सातों बहनें और उनका कॅरिअर
बलवंत : स्कूलनेशनल में गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मेडल जीते। अब दादरी में रहती हैं।
बलजीत: स्कूलस्टेट कंपीटिशन में कई मेडल जीते। नेशनल में पार्टिसिपेशन। दादरी में रह रही हैं।
पूजा: स्कूलीनेशनल ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी स्पर्धाओं में मेडल जीते। गुड़गांव में हैं।
पूनम:नेशनलस्पर्धाओं में मेडल विजेता अब नवोदय स्कूल भिवानी में खेल प्रशिक्षक।
संतोष: नेशनलप्रतियोगिताओं में मेडल विजेता नांगल चौधरी में काॅमर्स विषय की टीचर।
रेखा: स्कूलीनेशनल ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी स्तर पर मेडल। रोहतक में खेल प्रशिक्षक।
प्रियंका: स्कूलीनेशनल में गोल्ड, सिल्वर ब्रांज मेडल विजेता। बीएड स्टूडेंट कोच।