सागरमाला: नीली क्रांति की परिकल्पना और कार्यान्वयन

सागरमाला: नीली क्रांति की परिकल्पना और कार्यान्वयन
पेसूका —————————  सागरमाला परियोजना का मुख्य उद्देश्य बंदरगाहों के आसपास प्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष विकास को प्रोत्साहन देना तथा बंदरगाहों तक माल के तेजी, दक्षता और किफायती ढंग से आवागमन के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना है। सागरमाला परियोजना का उद्देश्य इंटरमॉडल समाधानों के साथ विकास के नए क्षेत्रों तक पहुंच विकसित करना तथा श्रेष्ठतम मॉडल को प्रोत्साहन देना और मुख्य मंडियों तक संपर्क सुधारना तथा रेल, इनलैंड वाटर, तटीय एवं सड़क सेवाओं में सुधार करना है। 

सागरमाला पहल में विकास के तीन स्तंभों पर ध्यान दिया जाएगा। 1. समेकित विकास के लिए समुचित नीति एवं संस्थागत हस्तक्षेप तथा एजेंसियों और मंत्रालयों एवं विभागों के बीच परस्पर सहयोग मजबूत करने के लिए संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराने के जरिए बंदरगाह आधारित विकास को समर्थन देना और उसे सक्षम बनाना। 2. आधुनिकीकरण सहित बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे का विस्तार और नए बंदरगाहों की स्थापना 3. बंदरगाहों से भीतरी प्रदेश के लिए और वहां से बंदरगाहों तक माल लाने के काम में दक्षता लाना।

सागरमाला पहल से तटीय आर्थिक क्षेत्र में रह रही आबादी का सतत विकास हो सकेगा। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के संबद्ध मंत्रालयों के बीच तालमेल और सहयोग एवं समन्वय से यह सब किया जाएगा। इसके लिए मौजूदा स्कीमों और कार्यक्रमों पर सहयोग किया जाएगा। परियोजनाओं के लिए पैसा जुटाने के लिए समुदाय विकास निधि बनाई जाएगी।

नीतिगत मार्गदर्शन और उच्च स्तरीय समन्वय तथा नियोजन के विविध पहलुओं की समीक्षा तथा योजना एवं परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय सागरमाला अपेक्स कमिटी बनाई गई है। समिति के अध्यक्ष पोत परिवहन मंत्री होंगे तथा संबंधित मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री तथा समुद्री सीमा वाले राज्यों में बंदरगाहों संबंधी मंत्री सदस्य होंगे।

पृष्ठभूमि : 

वर्तमान में भारतीय बंदरगाह भारत के कुल एक्जिम व्यापार के 90 फीसदी से भी ज्यादा हिस्से का संचालन करते हैं। हालांकि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार का मौजूदा अनुपात सिर्फ 42 फीसदी है, जबकि दुनिया के कुछ विकसित देशों एवं क्षेत्रों जैसे कि जर्मनी और यूरोपीय संघ में यह अनुपात क्रमशः 75 तथा 70 फीसदी है। अतः भारत की जीडीपी में वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार की हिस्सेदारी बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। केंद्र सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल से भारत की जीडीपी में वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार की हिस्सेदारी बढ़ने और विकसित देशों में हासिल स्तर के आसपास इसके पहुंचने की आशा है। भारत बंदरगाहों एवं लॉजिस्टिक्स से जुड़े बुनियादी ढांचे में काफी पीछे चल रहा है। जीडीपी में रेलवे की 9 फीसदी और सड़कों की 6 फीसदी हिस्सेदारी के मुकाबले बंदरगाहों का हिस्सा इसमें काफी कम केवल 1 फीसदी ही है। इसके अलावा, ऊंची लॉजिस्टिक्स लागत भारतीय निर्यात को गैर प्रतिस्पर्धी बना देती है। इसलिए सागरमाला परियोजना की परिकल्पना की गई है, ताकि बंदरगाहों एवं शिपिंग को भारतीय अर्थव्यवस्था में सही स्थान दिलाया जा सके और इसके साथ ही बंदरगाहों की अगुवाई में विकास संभव हो सके।

जहां तक भारतीय राज्यों का सवाल है, गुजरात उल्लेखनीय नतीजों के साथ बंदरगाहों की अगुवाई में विकास की रणनीति अपनाने में अग्रणी रहा है। जहां अस्सी के दशक में इस राज्य की वृद्धि दर केवल 5.08 फीसदी सालाना थी (जबकि राष्ट्रीय औसत 5.47 फीसदी था), वहीं नब्बे के दशक में यह बढ़कर 8.15 फीसदी (जबकि राष्ट्रीय औसत 6.98 फीसदी था) और इसके बाद और भी ज्यादा तेज होकर 10 फीसदी से भी ज्यादा हो गई और इस तरह बंदरगाहों की अगुवाई में विकास वाले मॉडल से यह राज्य काफी लाभान्वित हुआ।

भारत के समुद्री क्षेत्र का विकास अनेक विकासात्मक, प्रक्रियागत एवं नीतिगत चुनौतियों के कारण बाधित रहा है जो ये हैं – औद्योगीकरण, व्यापार, पर्यटन एवं परिवहन को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में एक से अधिक एजेंसियों को शामिल करना है, दोहरे संस्थागत ढांचे की मौजूदगी, जिससे अलग एवं असंबद्ध निकायों के रूप में प्रमुख एवं गैर प्रमुख बंदरगाहों का विकास हुआ है, प्रमुख एवं गैर प्रमुख बंदरगाहों से निकासी के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का अभाव, जिससे अत्यंत कमजोर परिवहन मोडल मिश्रण बन जाता है, दूरदराज के इलाकों में सीमित लिंकेज, जिससे परिवहन एवं कार्गो की ढुलाई लागत बढ़ जाती है, विनिर्माण और दूरदराज के इलाकों में शहरी एवं आर्थिक गतिविधियों के लिए केंद्रों का सीमित विकास, भारत में तटीय और अंतर्देशीय शिपिंग की कम पैठ, सीमित यंत्रीकरण एवं प्रक्रियागत बाधाएं और भारत के विभिन्न बंदरगाहों में व्यापक एवं गहरे ड्राफ्ट तथा अन्य सुविधाओं की कमी।

सागरमाला पहल के तहत जिन-जिन विकास परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं, उनकी विस्तृत सूची यह है (1) बंदरगाहों की अगुवाई में औद्योगीकरण (2) बंदरगाह आधारित शहरीकरण (3) बंदरगाह आधारित एवं तटीय पर्यटन तथा मनोरंजन संबंधी गतिविधियां (4) लघु समुद्री शिपिंग, तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन (5) जहाज निर्माण, जहाज मरम्मत एवं जहाज रिसाइक्लिंग (6) लॉजिस्टिक्स पार्क, गोदाम, समुद्री जोन/सेवाएं (7) दूरदराज के इलाकों में स्थित केंद्रों के साथ एकीकरण (8) अपतटीय भंडारण, ड्रिलिंग प्लेटफॉर्म (9) विशेष आर्थिक गतिविधियों जैसे की ऊर्जा, कंटेनर, रसायन, कोयला, कृषि उत्पाद इत्यादि में बंदरगाहों का विशिष्टीकरण (10) अधिष्ठापन के लिए आधारभूत बंदरगाहों के साथ अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं (11) मौजूदा बंदरगाहों का आधुनिकीकरण एवं नए बंदरगाहों का विकास। बंदरगाहों की अगुवाई में विकास के दोनों ही पहलू जैसे कि बंदरगाहों की अगुवाई में प्रत्यक्ष विकास और बंदरगाहों की अगुवाई में अप्रत्यक्ष विकास इस रणनीति में शामिल हैं।

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