- September 9, 2016
सांस्कृतिक एकता और संस्कृति के संरक्षण के लिये मंथन जरूरी
ऋषभ जैन————- केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अनिल माधव दवे ने कहा है कि राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता को मजबूत बनाये रखने और भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिये यह जरूरी है कि भारतीय जन-मानस आपस में मंथन करे। अपनी जड़ों से जुड़कर ही हम बेहतर भविष्य की रचना कर पाने में सफल होंगे। श्री दवे आज भारत भवन में नवम्बर माह में होने वाले लोक मंथन-2016 की वेबसाइट और लोगो का लोकार्पण कर रहे थे।
श्री अनिल माधव दवे ने कहा कि आज हमारे सामने यह स्पष्ट होना चाहिये कि राष्ट्र सर्वोपरि है और बाकी सारी चीजें उसके सामने गौण हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहाँ सामाजिक विमर्श और मंथन की जो प्रक्रिया थी, वह समाप्त हो गयी है। आज की चुनौतियों और विकारों का सामना करने के लिये यह जरूरी है कि हम फिर इसकी शुरूआत करें। नवम्बर माह में हो रहा लोक-मंथन इसी दिशा में एक प्रयास है।
प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री सुरेन्द्र पटवा ने कहा कि विचारों का आपसी आदान-प्रदान हमारी संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिये जरूरी है।
प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव ने लोक मंथन की रूपरेखा और उद्देश्यों को रेखांकित किया। भारत नीति प्रतिष्ठान के निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा, फिल्म निर्देशक और विचारक डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी ने लोक मंथन-2016 के महत्व और आज के समय में उसकी आवश्यकता पर विचार व्यक्त किये।
लोक-मंथन 12-14 नवम्बर को
राष्ट्र सर्वोपरि विचारकों एवं कर्मशीलों के राष्ट्रीय विमर्श पर केन्द्रित ‘लोक-मंथन-2016” 12 से 14 नवम्बर को विधानसभा परिसर में होगा। विमर्श प्रमुख रूप से राष्ट्रीयता की संकल्पना और अवधारणा, औपनिवेशिकता से भारतीय मानस की मुक्ति, नव-उदारीकरण और भू-मण्डलीकरण में राष्ट्रीयता, राष्ट्रीय अस्मिता, आकांक्षा, राष्ट्रीय अखण्डता एवं राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति, इतिहास और मीडिया की भूमिका जैसे अहम बिन्दु पर केन्द्रित होगा। लोक-मंथन में देशभर के चिंतक, विचारक, साहित्यकार, समाज-शास्त्री और कलाकार शिरकत करेंगे।