- November 16, 2014
सरकार को जनता से जुड़ने में हिंदी की अहम भूमिका – राष्ट्रपति
राजभाषा समारोह-2014 के अवसर पर राष्ट्रपति श्री मुखर्जी ने हिंदी को देश की मुख्य संपर्क भाषा बताते हुए, इसे सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताया। उन्होंने सुप्रसिद्ध जर्मन-हिंदी विद्वान लोथार लुत्से के विचार ‘‘हिंदी सीखे बिना भारतीयों के दिल तक नहीं पहुंचा जा सकता।’’ का भी समर्थन किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक युग में हिंदी ने अपने महत्व, उपयोगिता और लोकप्रियता के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाई है। उन्होंने राजभाषा हिंदी के प्रसार के लिए सरकार की पहल की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसी वर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में व्याख्यान देकर इसका शंखनाद कर दिया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवीं ईसवी सदी के दौरान भारत शिक्षा के क्षेत्र में विश्वभर में अग्रणी था। हमें एक बार फिर से भारत के उस गौरव को वापस लाने और ज्ञान और विज्ञान का केंद्र बनाने के लिए बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक विज्ञान और तकनीक की पुस्तकें विद्यार्थियों को अपनी भाषाओं में पढ़ने के लिए उपलब्ध करानी होंगी। उन्होंने मौलिक पुस्तक लेखन योजना के तहत हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को बढ़ावा देने की भी सराहना की।
इस अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि विश्व के सभी देश अपना राजकीय काम-काज अपनी-अपनी भाषाओं में करते है। रूस, जापान, चीन, कोरिया, जर्मनी, फ्रांस और इस्राइल आदि देशों ने अपनी-अपनी भाषाओं में देश का काम काज करके असाधारण प्रगति हासिल की है। उन्होंने कहा कि विकास की योजनाओं और भारत सरकार की नीतियों को सही रूप में जनता के सामने उनकी ही भाषा में पहुंचाया जाना चाहिए।
गृहमंत्री ने कहा कि हिंदी जैसी सरल, सहज और वैज्ञानिक भाषा होने के बावजूद आजादी के 67 सालों बाद भी काफी सरकारी काम-काज अंग्रेजी भाषा में हो रहा है। उन्होंने हिंदी को भारत के ह्रदय की कुंजी बताते हुए कहा कि हिंदी ने निरंतर भारत की समस्त चेतना को वाणी देने का काम किया है।
गृहमंत्री ने अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी से उबरने के लिए आम जनता को सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संरक्षण, कृषि, अभियांत्रिकी एवं स्वास्थ्य सेवाओं जैसे क्षेत्रों में राजभाषा हिंदी के माध्यम से शिक्षित एवं जागरूक करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी का अन्य क्षेत्रीय भाषाओं से न तो कोई विरोध है और न ही प्रतिद्वंदिता, क्योंकि मूलतः लगभग सभी भाषाएं भारत की संस्कृति की मिट्टी से ही उत्पन्न हुई हैं, और अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह कर रही हैं।
इस अवसर पर गृहमंत्री ने हिंदी के विकास में गुजराती भाषी महात्मा गांधी, बंगला भाषी आचार्य केशवचंद्र सेन, राजाराममोहन राय, रविंद्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, मराठी भाषी लोकमान्य तिलक, आचार्य विनोबा भावे, डॉ. भीमराव अंबेडकर, पंजाबी भाषी लाला लाजपत राय तथा तमिल भाषी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के योगदान को भी याद किया। उन्होंने भारत की गरिमा और सम्मान के लिए हिंदी और भारतीय भाषाओं के विकास, सरंक्षण और संवर्धन को आवश्यक बताया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी दौरों के दौरान हिंदी में दिए गए वक्तव्यों का जिक्र करते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इससे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी को भारत की पहचान के रुप में और अधिक मजबूती मिली है। उन्होंने कहा कि अनेक बहुराष्ट्रीय और भारतीय कंपनियों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि इंटरनेट, मोबाइल फोन पर हिंदी का प्रयोग करने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। उन्होंने समाज के संपूर्ण वित्तीय समावेशन के लिए बैंकिंग तथा दूसरे कारोबारी क्षेत्रों में हिंदी तथा दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री जन-धन योजना की सफलता का हवाला देते हुए कहा कि इसमें बैंकों द्वारा ग्राहकों की ही भाषा में, उनतक पहुंचने का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि सरकार जनता तक पहुंचने के लिए जनता की भाषा का प्रयोग करेगी।
इस अवसर पर राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने हिंदी के प्रयोग में सर्वश्रेष्ठ प्रगति करने वाले केंद्र सरकार के विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा राजभाषा समितियों को उनके कार्यो के लिए सम्मानित किया। इस अवसर पर कुल 48 शील्ड एंव 18 प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। गृहमंत्री ने भी पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। इस अवसर पर गृहराज्य मंत्री श्री किरेन रिजिजू, राजभाषा सचिव श्रीमती नीता चौधरी और संयुक्त सचिव श्रीमती पूनम जुनेजा भी उपस्थित थे।