• February 15, 2019

सरकारी रिकॉर्ड में ‘शहीद’ नहीं होते सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवान

सरकारी रिकॉर्ड में ‘शहीद’ नहीं होते सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवान

सीआरपीएफ, बीएसएफ हो या फिर दूसरी पैरामिलिट्री फोर्स का जवान अगर किसी आतंकी हमले में वीरगति को प्राप्त होता है तो उसे सेना के जवान की तरह से शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है.

इतना ही नहीं सेना के शहीद जवान के परिवार को मिलने वाले मुआवजे और दूसरी सुविधाएं जैसे लाभ भी पैरामिलिट्री फोर्स के जवान के परिवार को नहीं मिलती हैं.

कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद होने वाले सेना के जवान और सुकमा में वीरगति को प्राप्त होने वाले जवान की शाहदत का दर्जा अलग-अलग है.

कश्मीर के पुलवामा सीआरपीएफ की बस पर हुए हमले के बाद अब एक बार फिर इस गैरबराबरी पर चर्चा शुरु हो गई है.

हालांकि वर्ष 2017 में संसद में सरकार बता चुकी है कि पैरामिलिट्री जवानों के ड्यूटी पर जान गंवाने पर शहीद शब्द का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता.

14 मार्च को लोकसभा में एक जवाब में गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने ये साफ किया था कि किसी कार्रवाई या अभियान में मारे गए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स के कर्मिकों के संदर्भ में शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है.

नेशनल कोआर्डिनेशन ऑफ एक्स पैरामिलट्री पर्सनल वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमेन और आईजी सीआरपीएफ रिटायर्ड वीपीएस पनवर का कहना था कि, “शहीद का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर हमने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की हुई है. हम शाहदत के दोहरे मापदण्ड की लड़ाई लड़ रहे हैं.

इस पर केन्द्र सरकार ने हलफनामा देते हुए कहा है कि हम शहीद का दर्जा कैसे दे सकते हैं क्योंकि हमारे पास शहीद के दर्जे की कोई परिभाषा ही नहीं है.”

सीमा सुरक्षा बल में कमांडेट रहे सेवानिवृत लईक सिद्दीकी कहते हैं कि, “सेना के जवानों को शहीद का दर्जा ही नहीं डयूटी के दौरान सामान्य मौत होने पर भी बहुत सारी सुविधाएं मिलती हैं. लेकिन बीएसएफ, सीआरपीएफ सहित दूसरी फोर्स के जवानों को आतंकवादियों और नक्सलियों से मुठभेड़ में वीरगति मिलने के बाद भी न तो शहीद का दर्जा मिलता है और न ही उसके परिवार को कोई अतिरिक्त सुविधा.”

वाइस ऑफ मर्टियर्स संस्था के अध्यक्ष विजय कुमार सांगवान का कहना है कि, “हम पैरामिलट्री फोर्स के जवानों को भी शहीद का दर्जा दिए जाने की आवाज उठा रहे है. देश की रक्षा के लिए लड़ने वाले दो लोगों के बीच इस तरह का भेदभाव अच्छा नहीं है. दुश्मन से लड़ते हुए अपनी जान देने वाले सभी जवानों की जिंदगी उनके परिवार वालों के लिए बराबर का दर्जा रखती है.”

(न्यूज 18)

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