सन्यास की बारीः शिवानंद तिवारी–मुरली मनोहर श्रीवास्तव–

सन्यास की बारीः शिवानंद तिवारी–मुरली मनोहर श्रीवास्तव–

शिवानंद तिवारी का राजनीति से सन्यास या फिर कोई नई सियासी चाल

जो किसी का न हो सका ! वो खुद का भी नहीं

पटना ——– संस्मरण या पुस्तक लिखने के लिए शिवानंद तिवारी को सचमुच सन्यास लेने की जरुरत आन पड़ी है। चर्चित चारा घोटाला में लालू यादव को जेल भेजवाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले शिवानंद तिवारी वास्तव में रहस्यमय व्यक्तित्व रहे जो लालू के करीबी तो रहे हीं, उनके धुर विरोधी नीतीश के भी उतने ही करीबी बने रहे। दोनों ने इनका इस्तेमाल किया या अपना समझा या दोनों के स्वर्णिम दौर में उनके खास सिपासलार बन शिवानंद तिवारी अपना मकसद साधे। हर किसी मुद्दे पर बेबाक टिपण्णी करने वाले कभी निष्पक्षता का लबादा ओढ़कर अपनों की भी आंखों के किरकिरी बनते रहे हैं।

राजनीति से मोहभंग या मजबूरीः

शिवानंद तिवारी ने पार्टी से संबंधित कार्यों से छुट्टी लेने की बात कही है। वे राजनीतिक कार्यों को लेकर अब खुद को थका महसूस कर रहे हैं।हालांकि, उनकी राष्ट्री य जनता दल (राजद) के राष्ट्री य उपाध्यसक्ष पद से इस्ती फा देने की खबरों पर कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं है। इस मामले में राजद की ओर से अभी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है, लेकिन इस खबर के बाद से विरोधी पार्टियों को चुटकी लेने का भरपूर मौका मिल गया है।

बकौल शिवानंद तिवारी मैं अब थकान महसूस कर रहा हूं। शरीर से ज़्यादा मन की थकान हो रही है। बहुत लंबे समय से संस्मरण लिखना चाहता था, लेकिन वह भी नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए छुट्टी लेने की जरुरत पड़ रही है। संस्मरण लिखने की बात पर कहते हैं लिख ही दूंगा, ऐसा भरोसा भी नहीं है, लेकिन प्रयास करूंगा। छुट्टी लेने के बहाने खुद को पार्टी से अलग होने का बड़ा निर्णय ले लेनाराजनीतिक गलियारे में एक विमर्श का विषय खड़ा कर दिया है।

राजनीतिक सफरः

शिवानंद तिवारी अपने राजनीतिक जीवन में अनेक पद पर रहे। सबसे पहले 1996 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और शाहपुर से विधानसभा चुनाव जीतकर सदन पहुंचे।इसके बाद साल 2000 में राजद की टिकट पर शाहपुर से ही दूसरी बार बिहार विधानसभा पहंचे।

2000 से 2005 तक ये बिहार के आबकारी और निषेध मंत्री रहे। शिवानंद तिवारी मई 2008 से अप्रैल 2014 तक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के समर्थन से राज्यसभा सांसद चुने गए। वर्ष2008 में वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य बने और 2014 से अब तक राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद पर बने हुए थे।

जेपी के अनुयायी की आंदोलन की नसीहतः

1974 के जेपी आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे शिवानंद तिवारी। ये लगातार तेजस्वी को आंदोलन में उतरने की सलाह देते रहे, पर तेजस्वी ने इनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया या कोई राजनीतिक दबाव था, वो तो वही जानें। मगर राजद की वर्तमान कार्यप्रणाली से खफा शिवानंद तिवारी स्पष्ट शब्दों में कहा कि राजद की ओर से जिस भूमिका का निर्वहन अबतक मैं करता आ रहा था उससे छुट्टी ले रहा हूं। वैसे शिवानंद तिवारी बिहार के दिग्गज नेताओं में गिने जाते हैं।

शिवानंद तिवारी मूल रूप से भोजपुर जिले के रहने वाले हैं। पहले वे लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल पार्टी के एक प्रमुख नेता और प्रवक्ता थे। बाद में वे जद (यू) के महासचिव और प्रवक्ता बने। बेबाक किसी मुद्दे पर बोलने वाले शिवानंद तिवारी अपनों के बीच “बाबा” के नाम से काफी मशहूर हैं।

वर्ष 1952 से राजनीति को करीब से देखने और करने वाले श्री तिवारी समाजवादी नेता स्व.रामानंद तिवारी के पुत्र हैं, इस लिहाज से देखी जाए तो राजनीति इन्हें विरासत में मिली है।वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर शिवानंद तिवारी कहते हैं तानाशाही के खिलाफ जेपी ने आवाज बुलंद की थी, आज के समय में भी लोगों को संविधान बचाने और देश हित के लिए आगे आना होगा।

विश्राम की बेला या 2020 चुनाव में अपनी भूमिका !

शिवानंद तिवारी का सफर उनके शब्दों में विश्राम की बेला है, उनके पिछले राजनीतिक करियर पर नजर डालें तो पड़ाव स्थल से किधर और किस दिशा में मुड़ जाएंगे और किस मंजिल की तलाश में बढ़ चलेंगे ये तो उन्हें भी पता नहीं। लेकिन वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाला है इतना तो तय है कि उस समय पर उनके मन का थकान दूर हो जाएगा और वे बिहार के शतरंजी सियासत में कुछ चालें किसी भी दल की तरफ से चल सकते हैं।

हां, समाजवादी विचारधारा से जुड़े राजनेता जो बिहार में सत्ता का सुख भोग रहे हैं। शिवानंद तिवारी बुद्धजीवी तो है हीं जोड़-घटाव की राजनीति में भी माहिर हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि पहले की तरह इन्हें राजद फिर से मना लेती है या फिर उनकी थकान कहीं किसी और दल के आशियाने में जाकर मिटेगी।

जदयू-राजद-कांग्रेस के गठबंधन को धर्मनिरपेक्ष ताकतों का एक गठजोड़ माना जा रहा है जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के गठजोड़ को सांप्रदायिक ताकतों का एक जमावड़ा। अब ऐसी स्थिति में शिवानंद तिवारी का अचानक से राजद से किनारा कर लेना बिहार की राजनीति को नई दिशा का संकेत भी माना जा सकता है।

संपर्क —-
पटना
मो.9430623520

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