- July 18, 2017
संस्कृत को व्यवहारिक रूप देने पर बल–राज्यपाल
शिमला—-राज्यपाल आचार्य देवव्रत कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीनतम व वैज्ञानिक भाषा है जिसे सभी भाषाओं की जननी होने का गौरव प्राप्त है। यह भाषा व्यक्ति विशेष के चहुमुखी विकास करने में समर्थ है।
राज्यपाल आज हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हिमाचल संस्कृत अकादमी तथा संस्कृत भारत प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वावधान मेें आयोजित राज्य स्तरीय संस्कृत छात्र सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि सृष्टि के आदि में मानव के कल्याण के लिए वेदों का ज्ञान भी हमें संस्कृत भाषा में मिला है। उन्होंने दुःख जताया कि संस्कृत को सबसे अधिक नुकसान तब हुआ जब उसे वर्ण व्यवस्था से जोड़ दिया गया और आज संस्कृत पढ़ने वालों की उपेक्षा होती है, जो चिंता का विषय है।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत एक सम्पूर्ण भाषा है, जिसे पढ़कर जीवन का कल्याण संभव है, क्योंकि यह जीवन दर्शन है और मन की शक्ति का आधार है। उन्होंने कहा कि अच्छे समाज के निर्माण के लिए हर व्यक्ति को इस भाषा का ज्ञान होना चाहिए।
संस्कृत विश्व शांति का सर्वोच्च माध्यम बन सकती है, क्योंकि यह देवत्व प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि वेदों की सही अर्थों में व्याख्या महऋषि दयानंद ने की। उन्होंने लोगों से संस्कृत पर आधारित वेदों के प्रति गरिमा का भाव रखने की अपील की।
आचार्य देवव्रत ने संस्कृत के विद्यार्थियों से समाज का नेतृत्व करने और उसे दिशा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत को व्यवहार में लाएं, क्योंकि इसे व्यवहारिक रूप देकर ही समाज की दशा और दिशा को बदला जा सकता है। उन्होंने हिमाचल संस्कृत अकादमी तथा संस्कृत भारत प्रतिष्ठान द्वारा इसके प्रचार व प्रसार में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
इस अवसर पर, राज्यपाल ने संस्कृत भारत प्रतिष्ठान की वैवसाईट का भी शुभारम्भ किया। उन्होंने डाॅ. भक्तवत्सल शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘वैदिकतत्त्वविमर्शः’ तथा कुमारी शिल्पा द्वारा लिखित ‘लम्हा-लम्हा जिन्दगी’ पुस्तक का विमोचन भी किया।
इससे पूर्व, हिमाचल संस्कृत अकादमी के सचिव डाॅ. मस्तराम शर्मा तथा संस्कृत भारत प्रतिष्ठान के प्रतिनिधि प्रो. भक्तवत्सल शर्मा ने राज्यपाल का स्वागत किया।
इस अवसर पर राज्यपाल ने संस्कृत विद्वानों को सम्मानित भी किया।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलपति प्रो. राजेन्द्र सिंह चैहान, संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, कांगड़ा के प्राचार्य प्रो. लक्ष्मी निवास पाण्डेय, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्राचार्य, विद्यार्थी और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।