संस्कारों की खान है मां की ममता — सुरेश हिन्दुस्थानी

संस्कारों की खान है मां की ममता — सुरेश हिन्दुस्थानी

मां एक ऐसा शब्द है, जिसमें समुद्र जैसी गहराई है, अपनापन है। मां का नाम उच्चारण करने मात्र से बुरे से बुरे व्यक्ति का मन भी पवित्र भाव से भर जाता है। सही मायनों में कहा जाए तो मां के साथ हर व्यक्ति का बचपन से ही ऐसा तादात्म्य होता है, जो उसके भावी जीवन में भी दिखाई देता है। मां संस्कार देती है, जीवन मूल्य देती है।
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भारत में ऐसी सांस्कृतिक मान्यता विद्यमान है कि एक मां जन्म देती है तो दूसरी मां पालन पोषण करती है। दूसरी मां शब्द सुनकर जरुर आश्चर्य लग रहा होगा, लेकिन यह सबसे बड़ा सच है। धरती भी हमारी मां है, पुरातन काल से धरती मां की पूजा होती आ रही है, आज भी कई लोग प्रात: काल के समय धरती मां को प्रणाम करते हैं।

यह भारत के संस्कार हैं। हम जानते ही हैं कि जन्म देने वाली मां हमारा पालन पोषण केवल डेढ़ या दो साल ही करती है, उसके बाद हमारा पालन पोषण धरती मां करती है। हम जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, उसमें धरती मां से प्राप्त खाद्य पदार्थों का बहुत बड़ा योगदान है। अगर धरती मां इन वस्तुओं को देना बंद कर दे तो स्वाभाविक तौर पर हम भूखे रहेंगे और हमारा शारीरिक विकास भी नहीं होगा। इसलिए यह शत प्रतिशत सच है कि हमारे अंदर शारीरिक शक्ति और बुद्धि का विकास केवल भारत मां ही करती है और कोई नहीं।

मां ममता का सागर है। जिसमें कोई भी व्यक्ति जितना भी डूबेगा, उसका मन उतना ही पवित्र होता जाएगा। क्योंकि वहां से ममता टपकती है, और ममता एक ऐसी चीज है जो केवल मां से ही मिल सकती है। चाहे वह जन्म देने वाली मां हो या फिर पालन पोषण करने वाली भारत मां। व्यक्ति एक बार मन से चिंतन करे तो वह स्वाभाविक रुप से हर दृष्टि से संस्कार ही प्राप्त करेगा।

भारत भूमि को तपोभूमि भी कहा जाता है, विश्व में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जिसे तपोभूमि कहा जाता हो। इसका एक मात्र कारण यह भी है कि इस भूमि पर जन्म लेने के लिए देवता भी तरसते हैं। भारत भूमि ने अनेक देवी देवताओं को जन्म दिया है। मां सीता जैसी तेजस्वी पुत्री को जन्म देने वाली यही भारत भूमि है। हम विचार करें कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति के माध्यम से अनेक व्यक्ति अपनी तेजस्विता को प्रकट कर चुके हैं तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते।

हमें केवल उस पवित्र राह का अनुसरण करना होगा, फिर हमारा जीवन मां की कृपा से आभा युक्त होगा ही, इसमें कोई संदेह नहीं है।

लबों पे उसके बद्दुआ नहीं होती एक मां ही है जो मुझसे खफा नहीं होती

किसी शायर की यह पंक्तियां मां की गाथा का ही बखान करती हैं। मां इतना छोटा शब्द कि बिना हवा की तरह आसमान में तैरता रहे और इतना बड़ा शब्द भी की आसमां वालों को जमीन पर उतार भी लाए। हां, मां होती ही इतनी भारी है। भावनाओं में, वात्सल्य में, प्रेम में, दुलार में, खिलाने में, पिलाने में, हर बात में मां भारी है। मां बनने की ताकत ने ही महिलाओं को जगतजननी का दर्जा दिलाया है। महिलाएं पुरुष के साथ बराबरी की हकदार हैं। शारीरिक कोमलता के कारण श्रम से राहत और समाज से सुरक्षा की हकदार हैं मगर वे यहां ये विशेषाधिकार लेकर कुछ पिछड़ जाती हैं।

ईश्वर ने उन्हें अगर बराबरी से पैदा किया था तो उन्हें हर तरह से मजबूत बनाना था। ऐसा विचार कई दफा देश और समाज के शोषण की शिकार महिलाओं के मन में आंसुओं के साथ आ जाता होगा मगर ईश्वर का सृजन व्यापकता से हुआ है उसने किसी को अहंकार और अभिमान में नष्ट होने के लिए नहीं बनाया है इसी तरह उसने किसी को अवसाद का उपहार नहीं दिया है।

महिलाओं को कोमलांगी बनाया होगा जरुर मगर इन्हीं महिलाओं को मां की ताकत देखकर सबसे पूजनीय बना दिया है। जगत में मां से बड़ा भगवान ने किसी को नहीं बनाया। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता विद्वानों के मन की कल्पना नहीं है। हकीकत में देवत्व सृजनशील में ही हो सकता है। मां सृजनशीला है। वो नन्हे बालक को जीवन देती है। उसे भगवान ने खुद से बड़ी ताकत दी है।

भगवान ने सृजन का सकारात्मक वाला काम दुनिया भर की माताओं को देकर उन्हें जगतजननी बना दिया है। मां माता मम्मी मॉम आई न जाने कितने नामों से मां दुनिया भर में पुकारी जा रही है। भाषाएं अलग होती होंगी बच्चों की जुबानों में मगर मां से मिलने और बात कहने का आग्रह कभी भी जुदा नहीं हो सकता। ये आग्रह मनुष्य तो छोड़िए पशुओं में भी एक जैसा है।

किसी नवजात पिल्ले को उसकी श्वान मां के सामने से हटाना तो दूर देखने पर भी वो आशंकित और चौकन्नी हो जाती है। गाय और उसके बछड़े के बीच प्रेम और दुलार हम सब जीवन में कई दफा आते जाते देखते होंगे मगर अफसोस भागदौड़ से रुककर निहार नहीं पाते। अपने बछड़े के लिए गाय अपने शरीर में संचित दूध निकालने से रोक तक देती है हालांकि पशुओं का दोहन करने वाला मानव सबका तोड़ निकाले बैठा है। गाय के बछड़े को पहले दूध पीने छोड़ दिया जाता है।

बस गौमाता दूध छोड़ देती है और दूधिए बछड़े को हटाकर पूरा दूध दोह लेते हैं। इस एक उदाहरण से मां शब्द की गहराई को थोड़ा सा तो समज्ञा ही जा सकता है। मां की ममता मनुष्य, पशु या पक्षी सबमें ईश्वर ने निर्दोष भाव से उपहार में दी है। मां किसी भी योनि या रुप में हो सिर्फ देना जानती है। उसे सिर्फ सृजन आता है। वो जीवन का सृजन करती है। भ्रूण को बलिष्ठ बालक मां की ममता, प्रेम और दुलार बनाती है।

मां सिर्फ देने के लिए बनी है। बच्चे को हमेशा देती रहती है जीवन भर। प्रारंभ जन्म देकर करती है। फिर शिशु को अपने शरीर और पोषण से उत्पन्न अमृतमय दूध, अपने हिस्से का सूखा बिस्तर, अपनी रातों की नींद और दिन का चैन आदि बहुत कुछ मां अपने बालक को देती है। मां ने दुनिया में सिर्फ देना सीखा है। आज विश्व मातृ दिवस नाम से दुनिया भर के लोग मां और मातृत्व को दुनिया भर में धन्यवाद देते हैं।

मां के लिए एक दिन का धन्यवाद काफी नहीं है। पूरी मानवता मां के प्रति आभारी है पर एक दिन मां को याद न करना भी कोई अच्छी बात नहीं होगी। आप आज मदर्स डे पर मातृभक्ति से जमकर सराबोर हों। अपनी मां, बहन बेटियों से लेकर आस पड़ोेस, दफ्तर, मंदिर, बाजार, बस, ट्रेन, एरोप्लेन जहां भी मां और मातृशक्तियों को नमन कर सकते हैं तो जरुर करें।

एक दिन में हम देश दुनिया भर की माताओं का ऋण तो नहीं चुका सकते मगर मां का ऋण चुकाया भी नहीं जा सकता तो ऐसे प्रयासों में क्यों पड़ना। मां सिर्फ जीवन ऋण, पालन ऋण, प्यार दुलार सहित दुनिया भर के ऋण बांटने के लिए ही दुनिया में अवतरित होती हैं। आप कुछ मत करिए मां से ऋण लिया है तो बस उसके प्रति श्रद्धा और सम्मान की किश्त चुकाते रहिए।

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