- March 11, 2015
संसद में राजस्थान : भूमि अधिग्रहण बिल
जयपुर – कोटा से लोकसभा सांसद श्री ओम बिरला ने कहा है कि नए भूमि अधिग्रहण बिल से परियोजनाओं के लिए अधिग्रहीत की गई जमीनों के लिए किसानों को उचित मुआवजा, सहायता व पुनर्वास की सुविधा दी जाएगी जो 100 वर्षों से नहीं दी गई थी।
लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल पर बोलते हुए श्री बिरला ने कहा कि देश में 1894 में सर्वप्रथम भूमि अधिग्रहण कानून लागू किया गया। जिसमें बडी मात्रा में विसंगतियां व खामियां रही फिर भी 120 साल तक उस कानून सहित 13 अन्य अधिनियमों के माध्यम से भूमि का अधिग्रहण किया जाता रहा। किसानों को उनकी भूमि का ना तो उचित मुआवजा मिल पा रहा था ना ही मूलभूत सुविधाओं का विकास हो पा रहा था। जिसके कारण शहरी जीवन और ग्रामीण जीवन के बीच जमीन आसमान का अन्तर आ गया।
उन्होंने कहा कि इस अधिनियम से किसानों को अपनी जमीन के बाजार मूल्य का चार गुना मिलेगा और वे विकास के बाद विकास और अधिग्रहण लागत का भुगतान करके मूल भूमि का 20 प्रतिशत भी प्राप्त कर सकते हैं साथ ही बिजली संयंत्रों से बिजली उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी जिससे किसानों का जीवन बेहतर होगा और उत्पादकता में भी वृद्घि होगी। श्री बिरला ने कहा कि पुराने बिल की कमजोरियों से राज्य सरकारें भी परेशान थी।
श्री बिरला ने कहा कि एक ओर देश में चमचमाते शहर बनने लगे वहीं दूसरी ओर गांवों से रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य एवं बेहतर जीवन की आस में बडी मात्रा में पलायन हुआ। शहरों में आकर भी उक्त ग्रामीणों में से अधिकांश को तो अस्वास्थ्यकारी स्लम बस्तियों में जीवन जीना पड रहा है।
श्री बिरला ने बताया कि 2013 में सर्वप्रथम दि राइट टू फेयर कम्पनसेशन एण्ड ट्रांसपेरेन्सी इन लैण्ड रिहेवलीटेशन एण्ड रीसेटलमेंट बिल लाया गया था। इस बिल को अत्यन्त जल्दी में लाया गया था और उसमें कुछ ऐसी विसंगतियां रह गई जिन्हें दूर किए बिना न तो किसानों का वास्तविक भला किया जा सकता था और ना ही देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का डवलपमेंट किया जा सकता था।
श्री बिरला ने कहा कि उक्त विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक ऐसा रास्ता निकाला गया जिसमें किसानों को यदि अधिग्रहण आवश्यक है तो उनकी भूमि का अधिकाधिक मुआवजा मिले, समयबद्घ तरीके से मुआवजा मिले तथा बिल के ऐसे अनावश्यक प्रावधान जिनके कारण रक्षा, ग्रामीण विकास औद्योगिकीकरण, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे अत्यन्त आवश्यक विकास कार्यों में बाधा बन रहे थे उन्हें दूर किया गया।
श्री बिरला ने कहा कि मुख्य संशोधन में जो भ्रांतियां है उन्हें दूर किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। श्री बिरला ने कहा कि यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि केन्द्र सरकार भूमि अधिग्रहण बिल को बदलकर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है। जबकि जून 2014 में 32 राज्यों ने केन्द्र सरकार को एक विस्तृत रिप्रजेन्टेशन दिया था और बिल की कमजोरियों से हो रही परेशानियों के बारे में बताया था।
एक सरकार ने सार्वजनिक रूप से माना कि इस अधिनियम के एसआईए और कॉन्सेंट क्लॉज के साथ विकास करना असंभव है। यह भी दुष्प्रचार किया जाता रहा कि अधिनियम को कमजोर कर दिया गया है जबकि, 1894 के पहले भूसम्पत्ति कानून के बाद पहली बार जमीन अधिग्रहण से जुडे सर्वाधिक 13 अधिनियमों को इस अध्यादेश के अन्तर्गत शामिल किया गया है जिससे अधिग्रहीत की जाने वाली समस्त प्रकार की जमीनों में किसानों को उचित मुआवजा, सहायता और पुनर्वास मुहैया कराया जा सकेगा जो पहले नहीं दी जाती थी।
श्री बिरला ने कहा कि 2013 के मूल अधिनियम में परियोजनाओं की पूरी होने की अवधि पांच वर्ष की सीमा रखी गई है, जबकि संशोधन प्रस्ताव में उक्त सीमा को बढाकर परियोजना पूरी होने तक अथवा पांच वर्ष जो भी अधिक हो की गई है। क्योंकि सभी बडी परियोजनाओं को परियोजना पूरी होने की अवधि की आवश्यकता होती है। परमाणु उर्जा संयंत्र को पूरा करने में पांच वर्ष से अधिक का समय लग सकता है। कम लागत वाली गृह परियोजनाओं के लिए महत्वाकांक्षी दस वर्षीय योजना निर्धारित है।
श्री बिरला ने कहा कि यह बिल देश के किसानों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सभी एकजुट होकर इस बिल के साथ हों तभी हम देश के किसानों का सही मायने में भला हो सकेगा।
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