• March 12, 2016

सँवरने लगी आदिवासियों की किस्मत – डॉ. दीपक आचार्य उप निदेशक

सँवरने लगी आदिवासियों की किस्मत  – डॉ. दीपक आचार्य  उप निदेशक

उदयपुर(सूचना एवं जनंसपर्क)——पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए वनोपज संग्रहण एवं विक्रय परंपरा से जीवन निर्वाह का आधार रही है। उदयपुर संभाग का अधिकांश हिस्सा वन क्षेत्र है जहाँ लघु वन उपज के रूप में बहुमूल्य और बहुपयोगी जड़ी-बूटियां, औषधियां और आम उपयोग में आने वाली लघु वन उपज उत्पादित होती है।Udaipur KUMS  (1) (1)

यह वनोपज बिना किसी मानवी मेहनत के प्राकृतिक रूप से पैदा होती है। इसे न बोने की जरूरत पड़ती है न सिंचाई या रखवाली की। यह प्रकृति की आदिवासियों को अनुपम देन है जो पुराने जमाने से जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में रहते आए हैं। इनमें रतनजोत, फुहाड़, सफेद मूसली, महुआ, गोंद, शहद, आँवला, कणजी आदि प्रमुख हैं। इस उपहार को केवल इकट्ठा करके बेचने की जरूरत ही पड़ती है।

उपभोक्तावादी वर्तमान युग में सभी प्रकार की वस्तुओं के लिए बाजार उपलब्ध हैं लेकिन लाखों क्विंटल सालाना उत्पादित होने वाली इस वनोपज के लिए कहीं कोई बाजार उपलब्ध नहीं था जहां जाकर ये आदिवासी अपनी वनोपज को बेच सकें। आम उपभोक्ताओं के लिए भी कोई ऎसा केन्द्रीय स्थल नहीं था जहां पहुंचकर ये शुद्ध वनोपज खरीद सकें।

इससे वनोपज संग्रह करने वाले आदिवासियों से बिचोलिये और ठेकेदार कम कीमत पर माल खरीद लेते वहीं दूसरी ओर वही माल उपभोक्ताओं को कई गुना अधिक कीमतों पर प्राप्त हो पाता था। इसके साथ ही वैश्विक और देशज बाजारों में इस वनोपज की कीमतों और मांग की जानकारी न होने के कारण सस्ती दरों पर माल बिकता रहा है, जिससे कि आदिवासियों का वाजिब कीमत भी प्राप्त नहीं हो पाती।

लघु वन उपज के क्षेत्र में उदयपुर की फुहाड़ की दुनिया भर में खास मांग रही है। इनमें अमेरिका, जर्मनी, जापान, चीन, वियतनाम आदि देशों में फुहाड़ की भारी मांग है। वहां के लोगों के लिए यह फुहाड़ चाय के रूप में स्वाद देने वाली वनस्पति के रूप में पसन्द की जाती है।

उदयपुर के जंगलों में वनोपज का भारी मात्रा में उत्पादन होता रहा है। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने व्यापक बन्दोबस्त सुनिश्चित किए हैं।

उदयपुर की पुरानी मण्डी में वनोपज क्रय के इस वर्ष के आंकड़े उत्साहवर्धक हैं। लघु वन उपज मण्डी में नवम्बर 2014 से जनवरी 2016 तक 44.30 करोड़ रुपए मूल्य की 1,75,800 क्विंटल वन उपज की बिक्री की गई है। इस विक्रय से मण्डी को 71 लाख रुपए रुपए की आय हुई है।

हजारों आदिवासियों को मण्डी में लघु वन उपज बिक्री का उचित लाभ पहली बार मिलने लगा है तथा मण्डी की अन्य सुविधाएं नगद भुगतान, सही तौल  के साथ ही बिचौलियों से मुक्ति मिली है।

राहत का अहसास कराया टीपी मुक्ति ने

साल भर पहले तक आदिवासी वन उपज ले नहीं जा सकता था उसे टीपी यानि की ट्रांजिट परमिट की जरूरत पड़ती थी। इसके बिना वन उपज ले जाता तो वह पकड़ लिया जाता। पुलिस और वन विभाग वाले चालान बनाते और छह माह की सजा और दूसरे प्रकार के शोषण की संभावनाएं बनी रहती। गृह मंत्री श्री गुलाबचन्द कटारिया एवं उदयपुर सांसद श्री अर्जुनलाल मीणा द्वारा यह बात राज्य सरकार के ध्यान मेें लाए जाने पर सरकार ने आजादी के पहले के 1927 के वन अधिनियम और 1957 के वन वहन नियमों में टीपी के कानून को 14 सितम्बर 2015 को पूरी तरह हटा दिया। इससे अब कोई भी आदिवासी अपने क्षेत्र में उत्पादित वनोपज को कहीं भी ले जाकर बेच सकता है।

लघुवन उपज मण्डी में वन उपज सुगमता से परिवहन की जा सके इसे देखते हुए वन विभाग द्वारा 26 प्रकार की वन उपज को टी.पी. से मुक्त कर दिया गया है। इस व्यवस्था से आदिवासी वन उपज को बिना राजकीय विभागों में चक्कर लगाये मण्डी में लाकर विक्रय की सुविधा मिली है तथा वह मध्यस्थों को बेचने के लिये बाध्य होने की विवशता से बच गया है।

मण्डी में वनोपज विक्रय की सुविधा मिली

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे द्वारा घोषणा के बाद लघु वन उपज मण्डी प्रारम्भ होने से आदिवासियों को वन उपज सीधे मण्डी में विक्रय करने की सहज सुविधा उपलब्ध है। आदिवासियों को वनोपज का अब कई गुना अधिक मूल्य प्राप्त हो रहा है। इससे रोजगार के प्रति रुचि बढ़ी है व आदिवासियों की आय में वृद्धि हुई है और जीवनस्तर सुधरने लगा है। एक वर्ष की अवधि में ही मण्डी में भारी मात्रा में वनोपज आयी वहीं गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश तक से भी वन उपज आकर बिकने लगी है।

बढ़ी दरों ने दिया ग्रामीणों को लाभ

उदयपुर  कृषि उपज मण्डी समिति के सचिव श्री भगवानसहाय जाटव बताते हैं कि  वनोपज मण्डी घोषणा से पहले जहां सफेद मूसली 20 से 25 हजार रुपए प्रति क्विंटल थी उसके भाव अब 1 से 1.20 लाख रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। फुहाड़ 1 हजार से 1 हजार 200 रुपए से बढ़कर 5 से 6 हजार 500 रुपाए प्रति क्विंटल हो गई है। महुआ 1000 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 2.5 हजार से 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। रतनजोत के भाव 800 से 1000 से बढ़कर 2000 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। कणजी 1000 से 1200 रुपए से बढ़कर 2100 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल तथा आँवला 500 से 1000 से बढ़ोतरी पाकर 4000 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल बिकने लगा है। इसी प्रकार शहद के भाव मण्डी घोषणा से पहले 6 से 7 हजार रुपए प्रति क्विंटल थे जो बढ़कर 30 से 35 हजार तक की ऊँचाई पा चुके हैं।

वनोपज की मांग और बाहर इसकी कीमतों को देखते हुए स्थानीय आदिवासियों को कई गुना लाभ मिल रहा है। मण्डी यार्ड आदिवासियों के आर्थिक उत्थान का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है जिससे अपने ही क्षेत्र से रोजगार प्राप्त हो रहा है। इससे ग्रामीण इलाकों तक में वनोपज की दरें बढ़ी हैं। इन सभी गतिविधियों ने आदिवासियों के आर्थिक विकास को सुनहरा आकार देना आरंभ किया है तथा इससे आदिवासी ग्रामीण खुश हैं।

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