शीघ्र न्याय और निष्पक्ष कानून विधि एवं न्याय का मूल आधार – कानून एवं न्याय मंत्रालय

शीघ्र न्याय और निष्पक्ष कानून विधि एवं न्याय  का मूल आधार – कानून एवं न्याय मंत्रालय
विधि कार्य विभाग

कानूनों में सुधार लाना विधि कार्य विभाग की प्राथमिकताओं में से एक रहा है। विभाग ने प्रत्येक मंत्रालय/विभाग में आंतरिक आधार पर भारतीय विधि सेवा के अधिकारी प्रदान करते हुए सभी मंत्रालयों/विभागों को विकेंद्रीकृत आधार पर विधि सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है।

राष्ट्रीय अभियोग नीति तैयार की जा रही है।

विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर, आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट 1996 में संशोधन के लिए संसद के आगामी सत्र में एक विधेयक प्रस्तुत करने का प्रस्ताव है।

बड़ी संख्या में (कुल 48) सदस्यों के रिक्त पद भरने के लिए, आयकर प्रशासन ट्रिब्यूनल के प्रस्तावों पर विचार-विमर्श अंतिम चरण में है।

एएसजी के पांच (5) अतिरिक्त पद सृजित किए गए हैं ताकि सरकारी अभियोग प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए पंजाब और हरियाणा, पटना, झारखंड, कर्नाटक और गुजरात उच्च न्यायालयों  में प्रत्येक के लिए एक-एक नियुक्ति की जा सके। इन पांच पदों पर नियुक्तियों की प्रक्रिया जारी है। उच्चतम न्यायालय में भी सरकारी अभियोगों की देखभाल के लिए समूह ए 209, समूह बी के 186 और समूह सी के 101 पैनल काउंसिल नियुक्त किए गए। अन्य अदालतों/न्यायाधीकरणों के लिए पैनल तैयार किए जा रहे हैं।

उच्च अदालतों में कमर्शियल डिविजन्स की स्थापना का मुद्दा विधि आयोग के साथ लम्बित है।

विधायी विभाग

रंजराजन समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की जांच की जा रही है। अधिनियमों की पहचान और उनके वर्गीकरण के लिए प्रतिबद्ध अधिकारियों का एक समूह गठित किया गया है।

 (i)   संसद द्वारा 637 अधिनियम बदले जाएंगे।

(ii)     राज्य विधानमंडलों द्वारा 84 अधिनियम रद्द किए जाएंगे।

(iii)  राज्य सरकारों से सलाह मशविरा करने के बाद संसद द्वारा 58 अधिनियम निरस्त किए जाएंगे।

(iv)     गृह मंत्रालय से परामर्श के बाद राज्य पुनर्गठन से संबंधित 28 अधिनियम

36 अप्रचलित कानूनों और 90 अनावश्यक कानूनों की पहचान की गई है और उन्हें निरस्त करने के प्रस्ताव संसद में पेश किए गए है।

करीब 200 संशोधन अधिनियमों की जांच की जा रही है ताकि उन्हें (सम्बद्ध मंत्रालय/विभागों के साथ सलाह मशविरा करने के बाद) निरस्त किया जा सके।

विधि आयोग ने “अप्रचलित कानूनः तत्काल निरस्त करने की आवश्यकता” के बारे में विधि आयोग की चार (4) अंतरिम रिपोर्टों पर भी विचारकिया जा रहा है (जिनमें क्रमशः 72, 113, 74 और 30 अप्रचलित अधिनियमों को निरस्त करने की अनुशंसाएं की गई हैं)।

रेलवे प्रशिक्षुता अधिनियमों और राज्य विनियोग अधिनियमों सहित 902 विनियोग अधिनियमों की एक सूची तैयार की गई है और राज्य विनियोग अधिनियमों को निरस्त करने के बारे में अटर्नी जनरल की राय मांगी गई है।

असम विधायी परिषद विधेयक 2013 और तमिलनाडु विधायी परिषद (निरस्त) विधेयक, 2012 प्रोसेस किए गए हैं और अनुमोदन की प्रतीक्षा है।

हर महीने औसतन 200 अधीनस्थ कानूनों के प्रस्ताव प्राप्त हुए और समयबद्ध तरीके से उनका पुनरीक्षण किया गया।

समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विभिन्न विषयों से संबंधित विधि आयोग की 35 रिपोर्टों पर राज्य सरकारों/संघ शासित प्रदेशों के साथ सलाह मशविरा किया जा रहा है।

विभाग अंग्रेजी और हिंदी के लिए दो प्रतिबद्ध समूहों का गठन कर रहा है ताकि विधि एवं न्याय मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद सभी केंद्रीय अधिनियमों को अद्यतन बनाया जा सके।

विभाग निर्वाचन कानूनों और निर्वाचन आयोग के प्रति प्रशासनिक दृष्टि से जिम्मेदार है। चुनाव सुधारों के बारे में विधि आयोग की रिपोर्ट मिलने पर सभी हितभागियों और राजनीतिक दलों के साथ प्राथमिकता आधार पर विचार विमर्श करके प्रस्ताव की समीक्षा की जाएगी।

विभाग 1 अक्तूबर 2014 को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायलय में निर्वाचन कानूनों से संबंधित 218 लम्बित मामलों की प्रभावी ढंग से निगरानी कर रहा है। विभाग 137 मामलों में प्रतिवादी है और 81 मामलों में उपचारार्थ पक्ष है

 न्याय विभाग

संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति  के लिए भागीदारीपूर्ण और पारदर्शी व्यवस्था कायम हुई है। 15.12.2014 तक त्रिपुरा, राजस्थान, गोआ. हरियाणा, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय, उत्तराखंड, गुजरात और तमिलनाडु विधानसभाओं द्वारा संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014 की पुष्टि की जा चुकी थी।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 906 से बढ़ा कर 984 की गई ताकि उच्च न्यायालयों में बकाया मामलों की समस्या से निपटा जा सके। 1 जुलाई 2014 से दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायलयों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई गई। बाद में कर्नाटक, ओड़िशा, राजस्थान और उत्तराखंड के उच्च न्यायालयों  में भी न्यायाधीशों की संख्या 14 अक्तूबर, 2014 से बढ़ाई गई।

न्यायिक ढांचे में सुधार के लिए राज्य सरकारों को 825 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता जारी की गई जिससे देशभर में 2025 अतिरिक्त कचहरियां और 1699 अतिरिक्त आवासीय इकाइयां निर्माणाधीन हैं।

 न्यायपालिका द्वारा 6 दिसम्बर 2014 को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालतों ने देश की विभिन्न अदालतों में बकाया 44 लाख मामलों का निपटान किया जिससे अदालतों में बकाया मामलों की संख्या में कमी आई।

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