- September 12, 2015
विदेशों में हिन्दी शिक्षण-समस्याएँ समाधान सत्र की अनुशंसाएँ प्रस्तुत
सुनीता दुबे- दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दूसरे सत्र में आज ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण-समस्याएँ और समाधान’ का समापन हुआ। संयोजक और महानिदेशक, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, श्री सतीश मेहता ने अनुशंसाएँ प्रस्तुत कीं। वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के पूर्व अतिथि आचार्य और व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रोफेसर प्रेम जनमेजय की अध्यक्षता में आज के सत्र में भी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, स्विट्जरलेण्ड, थाईलेण्ड, जर्मनी आदि से आये अनेक हिन्दी विद्वान ने अपने विचार रखे।
प्रस्तावित अनुशंसाएँ
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व्यापारिक संबंध बढ़ाने अमेरिका में होता है हिन्दी में एम.बी.ए.
आस्ट्रेलिया की श्रीमती पूर्णिमा पटेल ने बताया कि आस्ट्रेलियाई सरकार ने वर्ष 2016 से ऐच्छिक रूप से स्कूलों में हिन्दी पढ़ाने की अनुमति दे दी है। हिन्दी को रोजगार से जोड़ने की चर्चा में अमेरिका की श्रीमती वैष्णवी शर्मा ने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवानिया में हिन्दी में एम.बी.ए. का पाठ्यक्रम संचालित है। पाठ्यक्रम के छात्रों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में व्यापारिक कड़ी के रूप में उपयोग कर रही है। विभिन्न स्तर पर परस्पर संवादहीनता की बाधा न रहने के कारण उनके व्यापार में बहुत लाभ हो रहा है।
श्रीलंका की श्रीमती अतिला कोतलावल ने कहा कि वे 15 साल से हिन्दी शिक्षण कर रही हैं। उनके पढ़ाये 1000 से अधिक बच्चे विश्वविद्यालय पहुँच चुके हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में हिन्दी के प्रारंभिक साहित्य की कमी है। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि विदेशों में अच्छा हिन्दी शिक्षण करने वालों की सूची बनाकर उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिये।