• February 18, 2016

वासन्ती अहसास है बेणेश्वर – डॉ. दीपक आचार्य

वासन्ती अहसास है बेणेश्वर – डॉ. दीपक आचार्य

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जीवन चक्र में जब-जब भी इंसान अपनी ऊर्जाओं के क्षरण की वजह से थकावट महसूस करता है उसे पंचतत्वों के पुनर्भरण की आवश्यकता पड़ती है और यह सब कुछ प्रकृति से ही संभव हो पाता है जहाँ उसकी गोद में जो कोई आता है वह पंचतत्वों के साथ ही जाने कितने दिव्य तत्वों की ऊर्जाओं को पाकर अपने आपके तरोताजा और मस्त होने का अनुभव करता है।

यह मस्ती उसके पुरुषार्थ चतुष्टय अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी मार्गों को आसान बनाने में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है। वास्तव में देखा जाए तो वासन्ती काल वही है जिसमें जीवन वसन्त का अनुभव हो।

हमारे मेले, उत्सव और पर्व यही सब कुछ तो कहते हैं। प्रकृति का सामीप्य पाओ, ऊर्जावान बनो और सामथ्र्य का अहसास करो। जब कभी कमी महसूस हो, प्रकृति के आँचल का आश्रय पा लो और फिर संसार को वह सब कुछ देने का प्रयत्न करो, जो संसार को हमसे अपेक्षित होता है।

वागड़ अंचल का बेणेश्वर धाम हमारी ऊर्जाओं के पुनर्भरण का महाधाम है जहाँ प्रकृति का उन्मुक्त पसरा हुआ वैभव शाश्वत आनंद की वृष्टि करता रहता है। उन्मुक्त खुला आसमान, हरियाली से भरी धरती मैया, पहाड़, देव, नदियों की जलराशि, विस्तृत खुला परिक्षेत्र और वह सब कुछ है जहाँ उस हर तत्व की पुष्टि का अहसास हो सकता है जिन तत्वों से इंसान बना है।

सच कहा जाए तो बेणेश्वर वागड़ का वह वासन्ती धाम है जो वर्तमान को आनंद से नहलाता है और दिवंगतों तक को मुक्ति की राह प्रदान करता है।

संगम जल तीर्थ  आत्मीयता, सामाजिक समरसता और माधुर्य धाराओं को लेकर ‘संगच्छध्वं संवदध्वं …..’ के उपनिषद-वेद वाक्य का उद्घोष करता लगता है।

यहाँ प्रकृति और परमेश्वर के सामने सब बराबर हैं, न कोई छोटा-बड़ा है, न कोई ऊँचा या नीचा।  नदियां पावन करती हैं और शिखरस्थ भगवान जीवन में ऊँचे लक्ष्य के साथ शिखरारोहण की ऊर्जा और सामथ्र्य देते हैं। लोक लहरियां और जन ज्वार ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का संदेश संवहित करता है।

बेणेश्वर में वह सब कुछ है जो पाया जा सकता है। चाहिए तो केवल वह दृष्टि जिसमें आत्म चेतना और लोक मंगल का भाव हो।

यही बेणेश्वर है जो पुरातन काल से जीवन में वासन्ती पुष्टि का अहसास कराता रहा है। भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला से जीवन में रागात्मकता लाने का भाव मन में हो तो बेणेश्वर मथुरा-वृन्दावन से कम नहीं।

आईये आज से शुरू होने वाले बेणेश्वर को स्थूल दृष्टि से नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से देखें और महसूस करें कि बेणेश्वर केवल टापू नहीं, जीवन रसों का अखूट दरिया है।  जो पाना जान लेता है उसका जीवन धन्य हो जाता है।

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