- September 29, 2021
वायु प्रदूषण से समय पूर्व होने वाली सालाना मौतों में 60% तक का इजाफा
बुधवार तक प्रतिबंधित, 29 सितमबर, 00:30 पूर्वीय समय, 05:30 ब्रिटिश समय, 10:00 भारतीय समय
नए शोध के अनुसार, बिजली उत्पादन में कोयले के उपयोग बढाने की विस्तार योजना से भारत के महानगरो में समय पूर्व होने वाली मौतों में 60% तक इजाफा होगा;
रिन्यूएबल एनर्जी का उपयोग बढ़ाने से ज़िन्दगीयाँ बचाई जा सकती है, लागत भी कम लगेगी और रोजगार पैदा होंगे
सी 40 सिटीज (क्लाइमेट सिटी लीडर ग्रुप) ने चेतावनी दी है कि कोयले पर आधारित ताप विद्धुत सयंत्र के प्रदूषण से दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, बेंगलुरु और चेन्नई और आसपास के इलाको के निवासीयों के स्वास्थ को खतरा पैदा हो गया है
भारत में कोयले पर आधारित ताप बिजली उत्पादन में 64 गीगा वाट की बढ़ोतरी करने की विस्तार योजना से वायु प्रदूषण से समय पूर्व होने वाली सालाना मौतों में 60% तक का इजाफा होगा – मतलब, अगले एक दशक में 52,700 समय पूर्व मौते
कोयले की बजाए क्लीन एनर्जी में निवेश करने से मजदूरो और व्यवसायो दोनों को फायदा होगा. प्रस्तावित नए कोयला सयंत्रो के चलते वर्ष 2030 तक प्रमुख महानगरो के निवासी बीमारी के चलते 2 करोड़ 58 लाख मानव दिवस की छुट्टी लेने को मजबूर होंगे
रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाने से भारत में 2020 से 2030 के दरम्यान 8,80,000 एनर्जी जॉब पैदा होने के साथ-साथ सस्ती बिजली उपलब्ध होगी
दिल्ली, भारत (सितम्बर 2021)- दुनिया के अन्य महानगरो की तुलना में दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे महानगरो के निवासी अपने स्वास्थ और आर्थिक स्थिती पर कोयले से होने वाले प्रदूषण का सबसे ज्यादा बुरा असर अनुभव कर रहे है. सी40 व्दारा आज जारी नए शोध में भारत के हालिया ताप बिजली सयंत्र और भविष्य में इनके विस्तार की योजना की पड़ताल की गई है. इस अध्ययन के अनुसार, विस्तार योजना के लागू होने से अगले एक दशक में भारत के महानगरो में 52,700 समय पूर्व मौते होंगी, 31,300 बच्चो का समय पूर्व जन्म होगा, अस्थमा के मरीज के अस्पताल में 46,800 आपातकालीन दौरे करेंगे और बीमारी के चलते यहाँ के निवासी 2 करोड़ 58 लाख
मानव दिवस की छुट्टी लेने को मजबूर होंगे.
कोयले के उपयोग के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है. भारत कोयले से बनाई जाने वाली 55% बिजली का उत्पादन इन 5 महानगरो से 500 कि. मी. की परीधी में होता है. कोयले से चलने वाले बिजली सयंत्रो से पैदा होना वाला वायु प्रदूषण लम्बी दूरी तय करता है और व्यापक भौगलिक एरिया में स्थित सभी ताप विद्धुत सयंत्र (यहाँ इसे 500 कि. मी. माना गया है) शहरीय नागरिको, खासकर युवा वर्ग, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओ के स्वास्थ पर बुरा असर डालते है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य और केंद्र सरकार हवा की गुणवत्ता सुधारने की अपनी योजना में नए ताप विद्धुत सयंत्र में निवेश करने की बजाए रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश करने का लक्ष्य तय करे.
वर्तमान में संचालित
ताप विद्धुत सयंत्र को एक-एक कर बंद करने की रणनीति बनाए और जिसकी शुरुवात सबसे पुराने और सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले सयंत्र से करे. सी40 के अध्ययन से पता चलता है कि वर्तमान ताप विद्धुत सयंत्र को 20% तक कम करने (लगभग 46.5 गीगा वाट क्षमता के पुराने सयंत्र) और नए ताप विद्धुत सयंत्र का निर्माण दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, बेंगलुरु और चेन्नई के आसपास नहीं रोकने से वर्ष
2020 से 2030 के बीच काफी फायदा हो सकता है:
वायु प्रदूषण को कम करने से जीवन बचेगा: ताप बिजली उत्पादन विस्तार की नई योजना से भारत के 5 महानगरो में 52,700 समय पूर्व मौते होंगी, 31,300 बच्चो का समय पूर्व जन्म होगा, अस्थमा के मरीज अस्पताल में 46,800 आपातकालीन दौरे करेंगे. ताप बिजली उत्पादन विस्तार से बच्चो में अस्थमा के 5,700 के अतरिक्त मामले होंगे और शहर के नागरिको को अनेक दीर्घकालीन स्वास्थ समस्यों का सामना करना होगा. अध्ययन में लगाए गए आंकलन के अनुसार, ताप बिजली उत्पादन विस्तार से 48,900 जीवन वर्ष विकलांगता के साथ गुजारना होंगे. 2020 से 2030 के बीच, भारत में नए ताप विद्धुत परियोजनाओं में निवेश करने की बजाए रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश कर और महानगरो के आसपास के सबसे पुराने और कम क्षमता से काम करने वाले ताप विद्धुत सयंत्र को बंद कर स्वास्थ पर पड़ने वाले इन बुरे प्रभावो से बचा जा सकता है.
अर्थव्यवस्था को लाभ: वायू प्रदूषण के चलते मजदूरों की उत्पादक क्षमता कम होने और कर्मचारी काम से ज्यादा अनुपस्थित रहने का असर शहर की अर्थ व्यवस्था पर पड़ता है, जिससे आर्थिक हानि होती है और इलाज पर होने वाला खर्चा भी बढ़ जाता है. भारत में, औद्धिक जगत से जुड़े प्रमुख लोगो के आंकलन के अनुसार उच्च प्रदूषण के दिनों में कर्मचारी की उत्पादन क्षमता 8-10% तक गिर जाती है. हमारे अध्ययन के अनुसार, कोयला आधारित बिजली सयंत्र के विस्तार की नई योजना अस्तित्व में आती है तो उससे होने वाले वायु प्रदूषण के चलते 2020-30 के बीच भारत के प्रमुख सी40 महानगरो में लोग 2 करोड़ 58 लाख मानव दिवस की छुट्टी लेने को मजबूर होंगे. आने वाले दशक में, कोयला प्रदूषण की स्वास्थ पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव की कीमत 46.5 अरब अमेरिकन डॉलर (34,27,92,88,50,000.00 रुपए ) आंकी गई है, जो भारत में वर्ष 2018 में स्वास्थ पर होने वाले कुल खर्च का दुगना है.
रोजगार पैदा होंगे: वर्ष 2030 तक, 46.5 गीगा वाट क्षमता के खराब और पुराने होते कोयला ताप बिजली सयंत्रो की जगह रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन से 1,60,000 अतरिक्त एनर्जी जॉब पैदा होंगे.
शहरी निवासीयों को सस्ती बिजली उपलब्ध होगी: भारत में, वर्तमान में चालू और नए कोयला ताप बिजली सयंत्रो की तुलना में सौर और पवन उर्जा आज भी सस्ती है. नए कोयला ताप बिजली सयंत्रो को स्थापित करने की बजाए क्लीन एनर्जी में निवेश करने से जहाँ घरेलू बचत बढ़ेगी वहीं व्यवसायों और सरकारो, जो बिजली का सबसे ज्यादा उपयोग करते है, की अपनी संचालन लागत में कमी आएगी.
जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद: भारत का कुल वार्षिक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन 11% प्रति वर्ष तक कम हो जाएगा (274 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड- 274 MtCO2), जो हर साल 6 करोड़ वाहन सड़क से हटा लिए जाने के बराबर होगा.
“कोयला आधारित बिजली सयंत्र से बिजली उत्पादन को जारी रखकर, राज्य और केंद्र सरकार देश के वायु गुणवत्ता लक्ष्यों की अनदेखी करने के साथ-साथ महानगरो में रहने वाले नागरिको के जीवन और स्वास्थ को खतरे में डाल रही है. जलवायु परिवर्तन के तहत ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 सेंटीग्रेड के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग 20% कम करना था. लेकिन, वर्ष 2020 से 2030 के बीच, कोयला ताप बिजली सयंत्रो के बेड़े में 28% की बढ़ोत्तरी के मद्देनजर भारत की वर्तमान राष्ट्रीय कोयला नीतियां नाटकीय रूप से कमतर साबित हो रही है.
कोयला सयंत्र विस्तार की योजना से भारत के महानगरो में कोयले के प्रदूषण से होने वाली समय पूर्व मौतों में 60% तक इजाफा होगा” डॉक्टर रेचल हक्सले, C40 में ज्ञान और अनुसंधान के प्रमुख (रिसर्च एंड नॉलेज हेड)।
“भारत के महानगरो सिर्फ वायु प्रदूषण को कम करने की दृष्टी से क्लीन एनर्जी को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका नागरिको के स्वास्थ पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा और पेरिस समझौते के तहत तय लक्ष्य को हासिल करने के साथ-साथ रोजगार भी पैदा होंगे” श्रुति नारायण, क्षेत्रीय निदेशक C40, दक्षिण और पश्चिम एशिया.
C40 शहरो और मैरीलैंड विश्वविद्यालय तथा सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) ने हर कोयला बिजली उत्पादन प्लांट की उम्र, तकनीक, लाभप्रदता, संचालन के घंटे, वायु और जल प्रदूषण पर प्रभाव पड़ने वाले दुष्प्रभाव के आधार पर अध्ययन कर इन सयंत्रो को क्रमवार बंद करने का मॉडल तैयार किया जिसकी शुरुवात सबसे कम प्रतिसपर्धी सयंत्र से की जाए जिससे आर्थिक हानि को कम से कम किया जाए सके,. अगले 25 वर्षो में, इन प्लांटो को कैसे बंद किया जाए इसकी एक स्पष्ट योजना सामने होने से कोयला खदान मालिको और इस उद्धोग में काम कर रहे कर्मचारीयों को भी इस ढांचागत बदलाव को अपनाने का वक्त मिलेगा.
हमारी मॉडलिंग के अनुसार, इस वर्ष भारत में कोयले का उपयोग अपने अंतिम स्तर को छू लेगा. वर्ष 2021 से 2030 के बीच इसमें 20% की कमी तथा वर्ष 2045 तक सभी कोयला आधारित बिजली सयंत्रो को बंद कर कार्बन उत्सर्जन को कम करना 1.5. ℃ के जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक कदम होगा. ऐसा हुआ तो, भारत अपने वर्तमान जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताएं से आगे जाकर लक्ष्य हासिल कर सकेगा और साथ ही शहरो में हवा की गुणवत्ता में काफी हदतक सुधार होगा और आर्थिक नुकसान को कम से कम किया जा सकेगा.
“इस शोध से पता चलता है कि रिन्यूएबल एनर्जी के उपयोग पर लक्ष्य केन्द्रित करने से रोजगार, आर्थिक और स्वास्थ के मामले में व्यापक लाभ होगा और यह भारत के स्वच्छ वायु के लक्ष्य के अनुकूल होगा” मार्कस बेरेनसन, वरिष्ठ रिसर्च मेनेजर, C40 सिटीज.
रेपोर के लिए लिंक: https://www.c40knowledgehub.org/s/article/Coal-free-cities-the-health-and-economic-case-for-a-clean-energy-revolution
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स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की दिशा में बढ़ने के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की दिशा में ठोस कार्यवाही को अंजाम देने के लिए C40 सिटीज दुनिया के 97 महानगरो को जोड़ता है. यह दुनिया के 70 करोड़ से ज्यादा नागरिको और एक चौथाई अर्थ व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है. C40 सिटीज के मेयर पेरिस जलवायु समझौते के सबसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करना और साथ ही हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसे साफ करने के लिए प्रतिबद्ध है. C40 सिटीज के वर्तमान सभापति पेरिस के मेयर ऐनी हिडाल्गो है; और और न्यूयॉर्क शहर के तीन बार के मेयर माइकल आर. ब्लूमबर्ग बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं. C40 का काम हमारे तीन रणनीतिक फंडर्स की मदद से संभव होता है: ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज, चिल्ड्रन इन्वेस्टमेंट फंड फाउंडेशन (CIFF), और रियलडानिया.
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