- October 17, 2015
वही करें जो देवी मैया को पसंद हो – डॉ. दीपक आचार्य
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इन दिनों नवरात्रि का पर्व चल रहा है। देवी उपासना के विविध उपायों के माध्यम से हम दैवीय ऊर्जाओं का संग्रहण करने में जुटे हुए हैं।
हम सभी लोग यह चाहते हैं कि देवी मैया हम पर प्रसन्न हों और हमारी कामनाओं की पूर्ति करने के साथ ही आने वाले समय में किसी भी प्रकार की बाधाएं, पीड़ाएँ आदि कुछ भी प्रतिकूलताएँ सामने नहीं आएं।
हमारी यह भी तमन्ना होती है कि हमें लोक प्रतिष्ठा प्राप्त हो, सम्पन्नता का ग्राफ निरन्तर बढ़ता रहे, औरों के मुकाबले जीवन सर्वोपरि हो तथा हमारे मुकाबले दूसरे लोग इतनी ऊँचाई पाकर हमसे बड़े न हो जाएं।
कुछेक लोग ही होते हैं जो देवी की कृपा अथवा साक्षात्कार पाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं अन्यथा निन्यानवें फीसदी लोग केवल अपनी ऎषणाओं को पूरा करने भर के लिए ही देवी साधना करते हैं। इस मामले में साधना के दो प्रकार हैं। एक निष्काम, और दूसरी सकाम।
दोनों ही प्रकार की साधनाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि हम जो कुछ साधना करें, वह हमारे लिए संचित रहे तभी साधना के बल पर संकल्प सिद्धि का स फर तय किया जा सकता है।
हम लोग साधना खूब करते हैं, श्रद्धा भी बहुत रखते हैं, अपने इष्ट के प्रति अनन्य भाव से भजन-पूजन और अनुष्ठानों में घण्टों रमे रहते हैं।
इसके बावजूद हमें अपने जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो पाती, बाधाएं आती हैं, कई-कई बार निराशा के भाव उत्पन्न होते रहते हैं और कई बार असफलता की वजह से ऎसी स्थितियां आती हैं कि हमें हताशा के क्षणों में अश्रद्धा जैसा भाव भी घेर लेता है।
इसका यह अर्थ नहीं है कि देवी-देवताओं की पूजा-उपासना और अनुष्ठानों में कहीं कोई कमी है अथवा भगवान की शक्तियाँ अब उतना प्रभाव नहीं दे पा रही हैं अथवा और कोई कारण है।
आमतौर पर होता यह है कि हम जो कुछ भी साधनाएं करते हैं उसका अधिकांश हिस्सा चाहे-अनचाहे हमारे पास से जाने-अनजाने में क्षरण हो जाता है। इससे हमारे दैवीय ऊर्जा भण्डार में कमी आ जाती है और खामियाजा हमें भुगतना ही पड़ता है।
इस कमी की वजह से अपनी जिन्दगी में इच्छित संकल्प पूरे नहीं हो पाते वहीं मृत्यु के उपरान्त हमारे पुण्य के खाते में भी कमी आ जाती है।
इस स्थिति को यदि हम गंभीरता से लें तो यह स्पष्ट सामने आएगा कि ऊर्जा या पुण्य संचय में कमी के लिए हम ही जिम्मेदार हैं, हमारी अपनी गलतियों की वजह से ही हम नुकसान में रहते हैं और हमेशा पछतावा करते हुए दुःखी रहते हैं।
देवी साधना में सफलता पाने के लिए हमें बहुत सारी सावधानियां अपनाने की जरूरत होती है। साधना में सबसे अधिक ध्यान इस बात का होना चाहिए कि हमारी वाणी, मन, कर्म और व्यवहार किसी भी दृष्टि से ऎसा नहीं हो जिससे कि देवी हमें असुर मानकर हमारे साथ वही बर्ताव करे जो वह राक्षसों के साथ करती है।
देवी भक्त के लिए यह जरूरी है कि वह सात्ति्वक, शुद्ध और लोेक मंगलकारी स्वभाव का होने के साथ ही असुरों के उन्मूलन के प्रति भी हर क्षण सजग रहे, अंधकार और आसुरी तत्वों के समूल विनाश को अपना परम लक्ष्य माने तथा अपने जीवन में वही सारे काम करे जो कि देवी को प्रिय हों। असुरों के साथ रहने, साथ देने और उनसे व्यवहार रखते हुए देवी उपासना करना आत्मघाती है क्योंकि देवी को छल-कपट और दोहरा-तिहरा चरित्र बिल्कुल पसंद नहीं है।
हम स्वयं देवी साधना के प्रति चाहे कितने श्रद्धावान हों, कितने ही घण्टों पूजा-पाठ में रमे रहते हों, मगर हमारे कुछ अनुचित कर्म अपने संचित पुण्य को नष्ट कर देते हैं।
जो लोग स्ति्रयों का अनादर करते हैं, उन्हें प्रताड़ित और दुःखी करते हैं, उनकी जमीन-जायदाद छीन लेते हैं, मारपीट और हिंसात्मक व्यवहार करते हैं, स्ति्रयों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं, स्ति्रयों की प्रतिष्ठा हानि से लेकर किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं, नीचा दिखाते हैं और स्ति्रयों के बारे में अनर्गल चर्चाएं करते रहते हैं, उन्हें अपने हक़ से वंचित करते हैं, उन सभी लोगों से देवी नाराज रहती है और ऎसे लोगों द्वारा किए गए किसी भी पूजा कर्म को स्वीकार नहीं करती, उल्टे ऎसे लोगों को ठिकाने लगाने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करती रहती है।
अपनी माता, पत्नी, बहन या किसी भी संबंधी स्त्री, पड़ोसन हो या अपने क्षेत्र की कोई सी स्त्री, इनके प्रति दुर्भावना, हिंसात्मक और क्रूर व्यवहार करने वाला हमेशा देवी का कोपभाजन बना रहता है।
जिन घरों में स्त्री का अपमान होता है, मारपीट और कलह का माहौल बना रहता है, कन्या भ्रूण हत्या होती है, स्ति्रयों को दूसरे दर्जे का इंसान माना जाता है, स्ति्रयों पर गैरवाजिब पाबंदी लगाई जाती है, जरूरी आजादी नहीं दी जाती या शक किया जाता है, परिवार संचालन में स्त्री को भागीदार नहीं बनाया जाता है, घर की बहूओं का अनादर होता है, विधवाओं, परित्यक्ताओं तथा जरूरतमन्द स्ति्रयों को हीन माना जाता है, जिन घर-परिवारों में बहन-बेटियों द्वारा बहूओं के साथ रूखा व्यवहार होता है, स्ति्रयों में परस्पर शत्रुता और द्वेष भावना हो, और स्त्री के वजूद को अस्वीकार करने के सारे जतन किए जाते हैं, उन घरों पर देवी हमेशा रुष्ट ही रहती है, चाहे इन परिवारों में देवी उपासना के नाम पर कितने ही पूजा-अनुष्ठान क्यों न किए जाएं।
जो लोग ऎसे माहौल वाले लोगों से किसी भी प्रकार का सम्पर्क रखते हैं, उनके घर का खान-पान और दूसरे व्यवहार करते हैं, उन लोगों पर भी देवी कुपित रहती है और ऎसे लोगों का कभी कल्याण नहीं हो सकता, चाहे ये लोग कितने ही बड़े साधक क्यों न हों। इन लोगों की जीते जी भी दुर्गति होती है और मृत्यु बाद भी नरकयातना मिलती है।
इसलिए देवी की कृपा पाने के लिए यह जरूरी है कि उन समस्त कर्मों का परित्याग किया जाए जो देवी को पसंद नहीं हैं। देवी साधकों के लिए यह भी जरूरी है कि बाहरी खान-पान व दूषित वस्तुओं का परित्याग करें, उन लोगों का अन्न-जल त्यागें जो पुरुषार्थ की बजाय दूसरे प्रकार की कमाई करते हैं, भ्रष्ट, रिश्वतखोर और हरामखोर हैं, औरों को बेवजह दुःखी कर तनाव देते हैं, स्ति्रयों के प्रति बेतुकी और अनर्गल टीका-टिप्पणी करते हैं, स्त्री के नाम पर कमाई करते हैं या स्त्री की कमाई पर मौज उड़ाते हैं।
नवरात्रि में देवी उपासना करते हुए दैवीय ऊर्जाओं का संरक्षण करें और अपने आपको उन सभी आसुरी मानवों, राक्षसी तत्वों व कुटिल व्यवहारों से बचा कर रखें जिनसे हमारी ऊर्जाओं और पुण्य का क्षरण होता है, तभी हमारी नवरात्रि साधना सफल और सिद्ध हो सकती है, अन्यथा हम जो कुछ कर रहे हैं वह ढोंंग और औपचारिकता निर्वाह से अधिक कुछ नहीं है। इसे हमारी आत्मा भी मानती है, और देवी मैया को तो सब कुछ पता है ही।