वर्षान्त समीक्षा – 2016– मजबूत करने में कामयाब रही है भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्षान्त समीक्षा – 2016– मजबूत करने में कामयाब रही है भारतीय अर्थव्यवस्था

पेसूका (वित्त मंत्रालय) ———भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान वृहद आर्थिक स्थिरता बहाल करने में हासिल लाभों को निरंतर मजबूत करने में कामयाब रही है। विश्व स्तर पर सुस्ती का दौर जारी रहने एवं पेट्रोलियम की कीमतों में हुई हालिया वृद्धि के बावजूद आर्थिक विकास चालू वर्ष में और तेज रफ्तार पकड़ता जा रहा है। जहां तक महंगाई का सवाल है, यह चालू वर्ष में कमोबेश स्थिर रही है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटे एवं चालू खाता घाटे में कमी दर्ज की गई है।

चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही के दौरान आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान है। यही नहीं, इसकी बदौलत दुनिया की सर्वाधिक तेजी से विकास कर रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत को भी शुमार किया जा रहा है। क्षेत्रवार आधार पर गौर करने पर यह पता चलता है कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों, उद्योग और सेवा क्षेत्रों की विकास दर चालू वित्त वर्ष की प्रथम छमाही में क्रमशः 2.5, 5.6 और 9.2 फीसदी रहने का अनुमान है।

व्यय को तर्कसंगत करके राजकोषीय मजबूती पर विशेष जोर देने, राजस्व बढ़ाने के प्रयासों और सहकारी वित्तीय गवर्नेंस के लिए प्रशासकीय उपायों पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ-साथ महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए उठाए गये कदमों ने वृह्द आर्थिक स्थिरता में अहम योगदान दिया है।

महंगाई

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर मापी जाने वाली महंगाई चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान संतोषजनक स्तर पर बरकरार रही है। वर्ष 2015-16 के दौरान सीपीआई (संयुक्त) पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2014-15 के 5.9 फीसदी से घटकर 4.9 फीसदी के स्तर पर आ गई। महंगाई दर वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) में औसतन 5.2 फीसदी और अक्टूबर 2016 में 4.2 फीसदी आंकी गई।

उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) पर आधारित खाद्य महंगाई दर वर्ष 2015-16 में घटकर 4.9 फीसदी रह गई, जबकि यह वर्ष 2014-15 में 6.4 फीसदी थी। यह वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) में औसतन 6.1 फीसदी रही और अक्टूबर 2016 में काफी घटकर 3.3 फीसदी के स्तर पर आ गई। डब्ल्यूपीआई पर आधारित महंगाई दर वर्ष 2015-16 में घटकर (-) 2.5 फीसदी रह गई, जबकि वर्ष 2014-15 में यह 2.0 फीसदी थी। यह वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) में औसतन 2.7 फीसदी आंकी गई और अक्टूबर 2016 में 3.4 फीसदी दर्ज की गई।

संशोधित मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क के मुताबिक सरकार ने 5 अगस्त, 2016 से लेकर 31 मार्च, 2021 तक की अवधि के लिए +/- 2 फीसदी के गुंजाइश स्तर के साथ 4 फीसदी का महंगाई लक्ष्य तय किया है। सरकार नियमित रूप से मूल्यों की स्थिति पर करीबी नजर रखती है क्योंकि महंगाई को काबू में रखना एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है और सरकार ने महंगाई विशेषकर खाद्य महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए अनेक उपाय किये हैं।

इस दिशा में उठाये गए कदमों में अन्य बातों के अलावा ये शामिल हैं- (i) आवश्यक वस्तुओं विशेषकर दालों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रण में रखने के लिए वर्ष 2016-17 के बजट में मूल्य स्थिरीकरण कोष के लिए 900 करोड़ रुपये का आवंटन बढ़ा दिया गया, (ii) घरेलू खरीद एवं आयात के जरिये दालों का बफर स्टॉक बनाया, (iii) ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की गई ताकि उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सके, (iv) राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेश को एडवाइजरी जारी की गई, ताकि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत जमाखोरी एवं कालाबाजारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके।

व्यापार
वर्ष 2015-16 में भारत से वस्तुओं का निर्यात (कस्टम आधार पर) 15.5 फीसदी घटकर 262.3 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया। वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) में निर्यात 0.2 फीसदी घट गया (154.9 अरब अमेरिकी डॉलर बनाम पिछले साल की समान अवधि में 155.2 अरब अमेरिकी डॉलर)। वर्ष 2015-16 में आयात 15 फीसदी घटकर 381.0 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया।

वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) में आयात 208.1 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में हुए 233.4 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में 10.9 फीसदी कम है। वर्ष 2016-17 (अप्रैल-अक्टूबर) के दौरान व्यापार घाटा कम होकर 53.2 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 78.2 अरब अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया था।

हाल के वर्षों में भारत के व्यापार में महत्वपूर्ण बाजार विविधीकरण देखने को मिला है, क्योंकि इसका दायरा यूरोप एवं अमेरिका से बढ़कर एशिया और अफ्रीका तक पहुंच गया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया रही है जिससे वैश्विक मांग में छाई सुस्ती का सामना करने में मदद मिली है।

भुगतान संतुलन
वर्ष 2015-16 के दौरान चालू खाते में घाटा (सीएडी) कम होकर 22.2 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.1 फीसदी) के स्तर पर आ गया, जबकि वर्ष 2014-15 में यह 26.9 अरब अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया था। वर्ष 2016-17 (अप्रैल-जून) में सीएडी घटकर 0.3 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 0.1 फीसदी) रह गया, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 6.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.2 फीसदी) था।

विदेशी मुद्रा भंडार

चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2016 में 372.0 अरब अमेरिकी डॉलर आंका गया, जो अक्टूबर 2016 के आखिर में घटकर 366.2 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा भंडार 25 नवंबर 2016 को 365.3 अरब अमेरिकी डॉलर आंका गया, जो मार्च 2016 के आखिर में दर्ज किये गये 360.2 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.1 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्शाता है।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक है, जिससे यह किसी भी बाह्य झटके का सामना करने में समर्थ है। चालू वित्त वर्ष 2016-17 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान रुपये की औसत मासिक विनिमय दर (आरबीआई की संदर्भ दर) 66 – 67 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर की रेंज में रही (यह अप्रैल 2016 में 66.47 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर और नवंबर 2016 में 67.80 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर थी)।

विदेशी ऋण

भारत पर विदेशी ऋण का बोझ जून 2016 के आखिर में 479.7 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जो मार्च 2016 के आखिर में दर्ज स्तर की तुलना में 5.4 अरब अमेरिकी डॉलर (1.1 फीसदी) कम है। जून 2016 के आखिर में विदेशी ऋण–जीडीपी अनुपात 23.4 फीसदी आंका गया, जो मार्च 2016 के आखिर में 23.7 फीसदी था।

कुल विदेशी ऋण में दीर्घकालिक विदेशी ऋण का हिस्सा जून 2016 के आखिर में मामूली बढ़कर 82.9 फीसदी हो गया, जबकि मार्च 2016 के आखिर में यह 82.8 फीसदी था। विदेशी ऋण से जुड़े सभी संकेतक यही दर्शाते हैं कि भारत पर विदेशी ऋण का बोझ प्रबंधनीय सीमा में रहा है। महत्वपूर्ण ऋण संबंधी संकेतकों के लिहाज से भारत की गिनती अब भी अपेक्षाकृत कम असुरक्षित देशों में होती है।

कृषि एवं खाद्य प्रबंधन

कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों ने वर्ष 2016-17 की प्रथम छमाही में 2.5 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज की, जबकि वर्ष 2015-16 की समान अवधि में यह 2.3 फीसदी थी। आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी प्रथम अग्रिम अनुमान 2016-17 के मुताबिक, खरीफ खाद्यानों का उत्पादन बढ़कर 135.03 मिलियन टन हो जाने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2015-16 (अग्रिम अनुमान) में यह 124.01 मिलियन टन था।

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद सुब्रमण्यन की अध्यक्षता में “न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और संबंधित नीतियों के जरिये दाल उत्पादन को बढ़ावा देने” के विषय पर गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट 16 सितंबर, 2016 को सौंप दी थी। समिति ने अन्य बातों के अलावा सभी दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि करने, दालों के निर्यात पर पाबंदी एवं स्टॉक सीमा हटाने और खरीद में तेजी लाने की सिफारिश की है।

उद्योग

केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी किये गये औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि खनन, विनिर्माण एवं विद्युत क्षेत्रों सहित औद्योगिक क्षेत्र का उत्पादन अप्रैल–अक्टूबर (2016-17) में 0.3 फीसदी गिर गया, जबकि अप्रैल–अक्टूबर (2015-16) के दौरान इसमें 4.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।

सरकार ने अनेक नीतिगत कदम उठाये हैं। सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करना, अटकी पड़ी परियोजनाओं को शुरू करना, प्रणालीगत बदलावों जैसे कि कोयला एवं स्पेक्ट्रम सहित विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों की खुली नीलामी के जरिये गवर्नेंस में बेहतरी लाना, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिये कारोबारी माहौल को बेहतर करना, कारोबार करने में आसानी सुनिश्चित करना और स्टार्ट-अप इंडिया इन नीतिगत कदमों में शामिल हैं। सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि रक्षा, रेलवे संबंधी बुनियादी ढांचे, निर्माण एवं फार्मास्यूटिकल्स इत्यादि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीति को भी उदार एवं सरल बना दिया है।

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