- January 25, 2017
लोकसभा और -विधानसभा चुनाव साथ कराने की पुरजोर वकालत-राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
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68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने की पुरजोर वकालत करने के साथ ही नोटबंदी का समर्थन किया.
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विचारों की एकता से अधिक, सहिष्णुता, धैर्य और दूसरों का सम्मान जैसे मूल्यों की आवश्यकता होती है.
ये मूल्य प्रत्येक भारतीय के हृदय और मस्तिष्क में रहने चाहिए, ताकि उनमें समझदारी और दायित्व की भावना भरती रहे.
लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए, एक बुद्धिमान और विवेकपूर्ण मानसिकता की जरूरत है.
मुखर्जी ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि भारत का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है.
हमारी परंपरा ने सदैव ‘असहिष्णु’ भारतीय की नहीं, बल्कि ‘तर्कवादी’ भारतीय की सराहना की है.
सदियों से हमारे देश में विविध दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शन ने शांतिपूर्वक एक-दूसरे के साथ स्पर्धा की है.
उन्होंने कहा कि हमारा लोकतंत्र कोलाहलपूर्ण है. फिर भी जो लोकतंत्र हम चाहते हैं, वह अधिक हो.
हमारे लोकतंत्र की मजबूती इस सच्चाई से देखी जा सकती है कि 2014 के आम चुनाव में कुल 83 करोड़ 40 लाख मतदाताओं में से 66 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया.
हमारे लोकतंत्र का विशाल आकार हमारे पंचायती राज संस्थाओं में आयोजित किए जा रहे नियमित चुनावों से झलकता है.
हमारे कानून निर्माताओं को व्यवधानों के कारण सत्र का नुकसान होता है, जबकि उन्हें महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करनी चाहिए और विधान बनाने चाहिए.
बहस, परिचर्चा और निर्णय पर पुन: ध्यान देने के सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए.
मुखर्जी ने कहा कि हमारा गणतंत्र अपने 68वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है.
हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारी प्रणालियां श्रेष्ठ नहीं हैं.
त्रुटियों की पहचान की जानी चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए. स्थायी आत्मसंतोष पर सवाल उठाने होंगे. विश्वास की नींव मजबूत करनी होगी.
चुनावी सुधारों पर रचनात्मक परिचर्चा करने और स्वतंत्रता के बाद के उन शुरुआती दशकों की परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है, जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित होते थे.
राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है