- March 17, 2021
रिन्युब्ल एनेर्जी के बैटरी स्टोरेज को व्यावहारिक बनाने की स्पष्ट नीति जरूरी
लखनऊ (निशांत) ——– परम्परागत कोयला बिजलीघरों के कारण बढ़ते प्रदूषण से उत्पन्न चिंताओं के बीच वैश्विक स्तर पर आशा की किरण के रूप में उभरी सौर और वायु ऊर्जा अपने साथ कुछ चुनौतियां भी लेकर आयी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की अक्षय ऊर्जा के स्टोरेज और उसके समझदारी से इस्तेमाल की स्पष्ट नीति नहीं होने से हम इसका पूरा फायदा नहीं उठा पा रहे हैं।
‘तमिलनाडु के ऊर्जा क्षेत्र में एनर्जी स्टोरेज की भूमिका’ विषय क्लाइमेट ट्रेंड्स, डब्ल्यूआरआई-इंडिया, ऑरोविले कंसल्टिंग और जेएमके रिसर्च एण्ड एनालीसिस द्वारा आयोजित वेबिनार में विशेषज्ञों ने कहा कि भारत ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बेशक उल्लेखनीय प्रगति की है लेकिन इस किस्म की ऊर्जा के भंडारण, अक्षय ऊर्जा के बैटरी स्टोरेज के लिये उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करने और उपयुक्त समय पर उसके इस्तेमाल की स्पष्ट नीतियां न होने की वजह से इसका पूरा फायदा नहीं मिल रहा है। यह अजीब बात है कि कोई खास रुकावट नहीं होने के बावजूद अब तक यह काम नहीं हो पाया है। सरकार को इस दिशा में खास ध्यान देना चाहिये।
डब्ल्यूआरआई-इंडिया के भरत जयराज ने कहा कि तमिलनाडु में हर 5 दिन में 1 दिन पूरे तौर पर अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति होती है। मगर अक्षय ऊर्जा उत्पादन की विभिन्न स्थितियां अपने साथ कुछ चुनौतियां भी लेकर आती हैं। कई बार बैटरी स्टोरेज की सुविधा नहीं होने के कारण राज्यों को अपने अक्षय ऊर्जा उत्पादन में कटौती करनी पड़ती है। अगर हमने स्टोरेज की विषय को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया तो हमें परेशानियां हो सकती हैं।
डब्ल्यूआरआई की संध्या राघवन ने एक प्रेजेंटेशन देते हुए कहा कि लिथियम आयन बैटरी से हम अक्षय ऊर्जा उत्पादन में मजबूरन की जाने वाली कटौती की चुनौतियों का आसानी से सामना कर सकते हैं। हम अन्य देशों से भी काफी कुछ सीख सकते हैं। हमें भविष्य में स्टोरेज को लेकर एक स्पष्ट रणनीति बनानी होगी।
संध्या ने बताया कि ग्रिड की सीमित उपलब्धता, अधिक मात्रा में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के कारण उसमें कटौती और ग्रिड संतुलन के लिए लचीले संसाधनों की सीमित उपलब्धता की वजह से चुनौतियां पैदा हो रही हैं, लिहाजा ऊर्जा भंडारण संबंधी जरूरतों का अभी से अनुमान लगाने की जरूरत है।
उन्होंने अपने अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि ग्रिड में अक्षय ऊर्जा की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ उत्पादित अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा की भंडारण क्षमता में बढ़ोत्तरी करने की जरूरत है। बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) से प्रणाली के स्तर पर खर्च में कटौती होती है। इसके अलावा इससे उत्पादित अक्षय ऊर्जा के व्यर्थ होने में कमी आती है। सरकार को दीर्घकालिक एकीकृत रणनीति पर आधारित योजना तैयार करनी चाहिए।
जेएमके रिसर्च एण्ड एनालीटिक्स की ज्योति गुलिया ने हाइब्रिड स्टोरेज सिस्टम की वकालत करते हुए कहा कि देश में स्वच्छ और शुद्ध ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिए हाइब्रिड आरई प्लस स्टोरेज सिस्टम बहुत महत्वपूर्ण समाधान साबित होगा। यह मौजूदा विविध आवश्यकताओं के लिए एक संपूर्ण समाधान है। वीआरई की स्थापना के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में शामिल तमिलनाडु हाइब्रिड आरई प्लस स्टोरेज मॉडल की व्यावहारिकता का आकलन करने के लिहाज से बेहतर स्थिति में है।
उन्होंने कहा कि कोयले से चलने वाले नए बिजली घरों की विद्युत दरों के मुकाबले हाइब्रिड आरई प्लस स्टोरेज सिस्टम बेहतर विकल्प हैं। ईंधन के दामों में मौजूदा बढ़ोत्तरी और प्रदूषण नियंत्रण संबंधी सख्त आदेशों के मद्देनजर सभी कोयला बिजली घरों को प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी लगानी होगी।
ऑरोविले कंसल्टिंग के हरि सुबिश कुमार ने देश में बैटरी स्टोरेज संबंधित तंत्र की उपलब्धता और चुनौतियां का जिक्र करते हुए कहा कि भारत इस वक्त बैटरी प्रणालियों की उपलब्धता के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है और आयात कर को भी 2.5 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा मौजूदा नियम के मुताबिक आवंटित लोड के 100% से ज्यादा सौर ऊर्जा क्षमता को स्टोर नहीं किया जा सकता। इसकी वजह से भी हम अपने यहां उत्पादित अक्षय ऊर्जा का अनुकूलतम उपयोग नहीं कर पाते।
उन्होंने सरकारी योजनाओं में बैटरी स्टोरेज सुविधा को जोड़ने की सिफारिश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मौजूदा और भविष्य में बनाई जाने वाली रूफटॉप सोलर संबंधी योजनाओं में हाइब्रिड इनवर्टर को भी जोड़ना चाहिए। इसके अलावा ग्रिड सेवाओं का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए भविष्य की तरफ देखने वाले नियम कायदे बनाए जाने चाहिए।
वेबिनार का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रमेश ने कहा कि अक्षय ऊर्जा से समृद्ध तमिलनाडु जैसे राज्यों में बिजली स्टोरेज सुविधा न सिर्फ जरूरी है बल्कि यह अनिवार्य हो गई है। यह स्टोरेज पहले के मुकाबले अधिक व्यावहारिक हुआ है। मुझे आश्चर्य है कि यह काम अभी तक क्यों नहीं हुआ। शायद जागरूकता की कमी की वजह से ऐसा हुआ। कि लोग नहीं जानते कि स्टोरेज काफी सस्ती हो गई है और उसकी तमाम बाधाएं लगभग दूर हो चुकी हैं।
तमिलनाडु एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (टेडा) के शंकर नारायण ने देश में बैटरी स्टोरेज परिदृश्य का एक अलग पहलू उजागर करते हुए कहा ‘‘मैं नहीं मानता कि नगरीय आबादी के पास स्टोरेज सिस्टम से जुड़ी ज्यादा परेशानियां हैं। मेरी समझ से हर उपभोक्ता के घर में रखी इन्वर्टर की बैटरी अपने आप में पर्याप्त है। ढाई करोड़ उपभोक्ताओं में से एक करोड़ के पास बैटरी स्टोरेज सिस्टम मौजूद है।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बैटरी स्टोरेज का पूरा बाजार बदलने वाला है। हमें ऐसी मनोदशा बनानी चाहिए कि हम अपने इलेक्ट्रिक व्हीकल को शाम को बजे से रात नौ बजे तक चार्ज नहीं करना चाहिए। हम दोपहिया गाडि़यों और चार पहिया वाहनों में बैटरी फीचर को समझदारी से इस्तेमाल कर सकते हैं। मैं सभी थिंक टैंक्स को इस दिशा में काम करने की सलाह देता हूं कि वह इस दिशा में काम करें। यह स्थिति पूरे देश के लिए है। हम किसी भी चीज को रातों-रात नहीं बदल सकते। हम चरणबद्ध ढंग से ऐसा कर सकते हैं। हम सभी को बैटरी स्टोरेज का समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए और पीक आवर्स में बिजली आपूर्ति में व्यवधान नहीं डालना चाहिए।
तमिलनाडु सोलर एनर्जी डेवलपर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार ने तमिलनाडु में अक्षय ऊर्जा उत्पादन के भंडारण और उसके प्रति सरकार के रवैये का जिक्र करते हुए कहा कि उपभोक्ताओं के मन में हमेशा सवाल रहता है कि वह अक्षय ऊर्जा को स्टोर करके क्या करेगा। उपभोक्ता के इस सवाल के बारे में अगर हम गौर करें तो तमिलनाडु में सच्चाई यह है कि हम एक ड्राफ्ट पॉलिसी के साथ आए हैं कि जो भी बिजली पैदा होगी वह दिन के वक्त खर्च की जाएगी। इससे अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को वाजिब प्रोत्साहन नहीं मिलेगा।
उन्होंने कहा ‘‘मेरा मानना है कि इस परियोजना के लिए सरकार की तरफ से सहयोग की जरूरत है। लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए कि उन्हें अक्षय ऊर्जा भंडारण के लिये बैटरी स्टोरेज अपनाने से क्या मिलेगा। सच्चाई यह है कि सरकार और अक्षय ऊर्जा उत्पादकों के बीच एक तरह की संवादहीनता व्याप्त है। हम अक्षय ऊर्जा से अपनी पीक आवर की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। हमने पीएनआरसी और टेडा से आग्रह किया है कि वह अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल पीक आवर्स में भी करें।
ऑरविले कंसल्टिंग के सह संस्थापक ट्वायन वान मेगेन ने कहा कि सरकार की तरफ से उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा को बेहतर दाम पर खरीदने का विश्वास दिलाया जाना चाहिये। उन्होंने कहा ‘‘हर किसी के घर में इनवर्टर लगा हुआ है। उपभोक्ताओं में यह विश्वास जगाना चाहिए कि अगर आप सौर ऊर्जा हमें देते हैं तो हम आपको उसका बेहतर पारितोषिक देंगे। सरकारों की तरफ से ऐसी बिजली खरीद का कोई आश्वासन नहीं मिलता और ना ही ऐसी कोई नीति है। इस वजह से भी लोग उत्पादित सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर स्टोर करने के बजाय सिर्फ अपने घरेलू इस्तेमाल के लिए ही रखते हैं। पीक आवर्स में ग्रिड के बजाय स्टोर एनर्जी का इस्तेमाल करने को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि तमिलनाडु अक्षय ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत के अग्रणी राज्यों में है लेकिन वह कई कारणों से इस बिजली के एक बड़े प्रतिशत की कटौती कर देता है। इन कारणों में अत्यधिक बिजली उत्पादन और ग्रिड में असंतुलन से संबंधित चिंताएं भी शामिल हैं। मार्च 2020 में जब वैश्विक महामारी कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन घोषित किया गया, तब से तमिलनाडु ने अपने यहां सौर ऊर्जा में 50.8% की कटौती की। वहीं वर्ष 2019 में वायु बिजली में इसकी सालाना कटौती 3.52 घंटे प्रतिदिन तक पहुंच गई जो वर्ष 2018 में 1.87 घंटा प्रतिदिन थी।
उन्होंने कहा कि हालांकि बैटरी आधारित ऊर्जा स्टोरेज सिस्टम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है और सौर तथा वायु ऊर्जा को इकट्ठा करके और उसे जारी करके अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को नुकसान से बचाया जा सकता है।
राजेश एक्सपोर्ट्स लिमिटेड में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी डिवीजन के सीईओ श्याम रघुपति ने कहा कि भारत में बिजली की मांग उल्लेखनीय रफ्तार से लगातार बढ़ रही है और शुरू के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2020 में 1500 टेरावाट प्रति घंटा से 6% की सीएजीआर दर से बढ़कर 2030 तक यह 2700 टेरावाट प्रति घंटा हो जाएगी। हालांकि कोविड-19 की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दीर्घकालिक असर के मद्देनजर बिजली की मांग में पहले के मुकाबले 7 से 17% तक की कमी होने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि मगर इसके बावजूद बिजली की मांग में हो रही बढ़ोत्तरी को पूरा करने के लिए यह जरूरी है कि भारत अक्षय ऊर्जा रूपांतरण के अपने रास्ते पर लगातार आगे बढ़ता रहे और जलवायु संरक्षण संबंधी वैश्विक प्रयासों में अपना सार्थक योगदान जारी रखे। भारत की 75% के करीब बिजली अब भी कोयले और गैस से चलने वाले पावर प्लांट से पैदा होती है। इनकी वजह से भारी मात्रा में पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण उत्पन्न होता है। मगर जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली घरों से मिलने वाली बिजली के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक इस बिजली की मांग में लगातार गिरावट आएगी।
तमिलनाडु की सौर तथा वायु ऊर्जा को एकत्र करने के लिए एक लिथियम आयन आधारित बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) को राज्य की सालाना बिजली मांग को पूरा करने में योगदान को आदर्श बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। इस प्रणाली की क्षमता और डिस्चार्ज टाइम 10 वर्षों के दौरान चरणबद्ध ढंग से बढ़ी है।
वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट और 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापना के भारत के संकल्प ने प्रदूषण मुक्त बिजली के क्षेत्र में क्रांति का दौर मजबूती से कायम रखा है। वर्ष 2009-10 के मुकाबले 2019-20 में अक्षय ऊर्जा क्षमता में छह गुना की बढ़ोत्तरी हुई है और अक्षय ऊर्जा की दरों में वर्ष 2009-10 के 15 से ₹18 प्रति किलोवाट के मुकाबले आज 3 रुपये प्रति किलोवाट से भी कम खर्च आता है।
हालांकि कुल ऊर्जा उत्पादन मिश्रण में वेरिएबल रिन्यूएबल एनर्जी (वीआरई) की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बावजूद इस बिजली को एकत्र करके रखने के मामले में कुछ सीमितताएं भी सामने आई हैं। वायु तथा सौर ऊर्जा उत्पादन में निरंतरता के अभाव की वजह से ऊर्जा तंत्र में लचीलेपन की कमी की चुनौती बढ़ती जा रही है। खासतौर पर उन राज्यों में जहां अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता की हिस्सेदारी ज्यादा है।
आर ए प्लस स्टोरेज सिस्टम से उत्पन्न होने वाली बिजली से वर्ष 2030 तक तमिलनाडु की सालाना औसत बिजली मांग का करीब 29% और दिल्ली की ऊर्जा मांग का 100% पूरा किया जा सकता है। इसे देखते हुए हाइब्रिड आरई प्लस स्टोरेज सिस्टम अपेक्षाकृत काफी किफायती है, क्योंकि यह न सिर्फ बिजली आपूर्ति का एक स्वच्छ और मजबूत स्रोत है बल्कि इससे कम दाम पर बिजली भी मिलती है।
ऊर्जा क्षेत्र के विकास और विविधीकरण के मामले में तमिलनाडु भारत के सबसे प्रगतिशील और प्रतिस्पर्धी राज्यों में शामिल है। इस राज्य में सबसे ज्यादा अक्षय ऊर्जा इकाइयां स्थापित हैं। राज्य की कुल 35 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन क्षमता में से अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 14 गीगा वाट है राज्य में 13500 से लेकर 16000 मेगावाट तक बिजली की जरूरत होती है, जिसमें 15% से ज्यादा की आपूर्ति अक्षय ऊर्जा से होती है।
अक्षय ऊर्जा के भंडारण की सुविधा इस पूरे तंत्र की कामयाबी का आधार है। अक्षय ऊर्जा उत्पन्न होने में संचालनात्मक उत्सर्जन की मात्रा लगभग न के बराबर है, जिसकी वजह से जैव ईंधन आधारित बिजली के मुकाबले यह पूरी तरह स्वच्छ ऊर्जा है, मगर इसमें बिजली का उत्पादन रुक-रुक कर होता है, जो एक प्रमुख रुकावट है और इसमें संतुलन लाए जाने की जरूरत है। अक्षय ऊर्जा की स्टोरेज की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह जीवाश्म ईंधन से बनने वाली बिजली का लंबे वक्त तक मुकाबला नहीं कर पाएगी। यही वजह है कि अक्षय ऊर्जा बिजली की मांग में होने वाली अचानक होने वाली बढ़ोत्तरी को पूरा करने में कोयला या गैस से बनने वाली बिजली का मुकाबला नहीं कर पाई है।