• October 28, 2016

राष्‍ट्रीय जनजातीय महोत्‍सव – ‘वन अधिकार अधिनियम, 2006 – क्रियान्‍वयन

राष्‍ट्रीय जनजातीय महोत्‍सव – ‘वन अधिकार अधिनियम, 2006 –  क्रियान्‍वयन

पेसूका ——— राष्‍ट्रीय जनजातीय महोत्‍सव – 2016 के एक हिस्‍से के तहत आज नई दिल्‍ली में ‘वन अधिकार अधिनियम, 2006 – इसके क्रियान्‍वयन, जनजातीय एवं वनों में रहने वाले अन्‍य परम्‍परागत समुदायों को लाभ और इसकी चुनौतियों’ पर एक कार्यशाला आयोजित की गई।

इस कार्यशाला की अध्‍यक्षता केन्‍द्रीय जनजातीय कार्य मंत्री श्री जुएल ओराम और सह-अध्‍यक्षता केन्‍द्रीय जनजातीय कार्य राज्‍य मंत्री श्री जसवंत सिंह सुमनभाई भाभोर ने जनजातीय कार्य मंत्रालय में सचिव और यूएनडीपी की डिप्‍टी कंट्री डायरेक्‍टर सुश्री मैरिना वाल्‍टर की मौजूदगी में की।

कार्यशाला के लिए पैनल के सदस्यों में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलाधिपति डॉ. एस एम झारवाल, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में डीआईजी (वन) श्री नोयल थॉमस और महात्‍मा गांधी हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय, महाराष्‍ट्र में एसोसिएट प्रोफेसर एवं मानव शास्‍त्र विभाग के प्रमुख डॉ. फरहद मॉल्लिक और जनजातीय कार्य मंत्रालय में संयुक्‍त सचिव शामिल थे।

इस कार्यशाला में लगभग 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें राज्य सरकारों के मंत्रिगण, सांसद, राज्य विधान सभाओं के सदस्य और अन्य गणमान्य व्यक्ति शामिल थे।

जनजातीय कार्य मंत्रालय में संयुक्‍त सचिव श्री राजेश अग्रवाल द्वारा एक प्रासंगिक प्रस्तुति दी गई, जिसमें अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, जिसे वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 के रूप में भी जाना जाता है, के महत्‍वपूर्ण पहलुओं एवं खास बातों का उल्‍लेख किया गया।

डीआईजी (वन) श्री नोयल थॉमस द्वारा भी एक प्रस्‍तुति दी गई, जिसमें ग्राम सभा द्वारा वन के संरक्षण एवं प्रबंधन के साथ-साथ वन संरक्षण कानूनों की तुलना में अन्‍य आवश्‍यक विशेषताओं के लिए भी सामुदायिक वन संसाधन के दिशा-निर्देशों पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया।

डॉ. झारवाल और डॉ. मॉल्लिक ने एफआरए के तहत मंजूर सुरक्षात्मक अधिकारों का उल्‍लेख करने के अलावा वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्‍वयन से जुड़ी चुनौतियों के बारे में भी विस्‍तार से बताया।

जनजातीय मामलों के राजमंत्री ने जनजातीय लोगों और अन्य परम्परागत वनवासी समुदायों के वन अधिकारों की रक्षा करने और मान्यता देने वाले इस ऐतिहासिक कानून के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने जोर देकर कहा कि इस संबंध में प्रक्रियाओं पर लगातार नजर रखी जा रही है और समय-समय पर कई स्तर पर इनकी समीक्षा की जा रही है। उन्होंने पैनल सदस्यों द्वारा की गयी व्यापक प्रस्तुतियों की भी सराहना की।

श्री ओराम ने विभिन्न हितकारकों को धन्यवाद दिया और पैनल सदस्यों द्वारा दिये गये योगदान की सराहना की। इस कानून की पृष्ठभूमि और इस कानून ने आदिवासी समुदायों सहित वनवासी समुदायों को किस तरह सशस्त्र बनाया है, इस बारे में जोर दिया गया।

दर्शकों ने विभिन्न मुद्दों की विषय वस्तु की व्यापक सराहना की और पैनल के सदस्यों द्वारा किये गये अनेक प्रयासों की भी सराहना की गई। ‘भारत में आदिवासी चेहरे’ नामक एक जनजातीय डायरी भी इस अवसर पर जारी की गई।

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