राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए स्मरण पत्र

राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए स्मरण पत्र

जयपुर – बीकानेर के सांसद श्री अर्जुनराम मेघवाल ने मंगलवार को नई दिल्ली में केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री किरेन रिजिजू से मुलाकात कर उन्हें एक स्मरण पत्र प्रेषित कर राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने के लिए आवश्यक कार्यवाही करवाने का आग्रह किया। भेंट के दौरान राजस्थान भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष श्री के.सी.मालू भी उनके साथ थे।

सांसद ने केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री को बताया कि राज्य के सांसदगण संसद एवं संसद के बाहर कई बार राजस्थानी भाषा को मान्यता प्रदान करने संबंधी मंाग उठा चुके हैं और राजस्थानी भाषा की व्यापकता एवं समृद्घता को दृष्टिगत रखते हुए इसे शीघ्र ही मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।

मान्यता पर विचार

भेंट के दौरान केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री ने बताया कि राजस्थानी सहित तीन प्राचीन भाषाओं को मान्यता प्रदान करने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह भी सैद्घांतिक रूप से सहमत है, अंतिम निर्णय केबिनेट स्तर पर ही होगा। उन्होंने विश्वास दिलवाया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता प्रदान करवाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

भेंट के दौरान सांसद श्री मेघवाल और राजस्थानी भाषा मान्यता समिति के अध्यक्ष श्री मालू ने बताया कि राजस्थानी भाषा हजार वर्ष से भी पुरानी समृद्घ शब्दकोष और प्रचुर साहित्य वाली भाषा है तथा देश-विदेश में करीब दस करोड़ लोग इस भाषा को जानने और बोलने वाले हैं। देश के साहित्य में वीर एवं भक्तिरस के साथ ही संस्कृति के संरक्षण में राजस्थानी भाषा का असाधारण योगदान है।

उन्होंने बताया कि मान्यता प्राप्त सत्रह में से दस अन्य भाषाओं के समान ही राजस्थानी भाषा की लिपि भी देवनागरी है। संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं में राजस्थानी ही ऐसी भारतीय भाषा है जो केन्द्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त है। राजस्थानी भाषा को नेपाल में संवैधानिक दर्जा प्राप्त है एवं अमेरिका में नौकरियों के लिए मान्यता है।

उन्होंने बताया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से राष्ट्रभाषा हिन्दी का विकास होगा। साथ ही भारतीय संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और राजस्थान के शिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षा, रोजगार एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिक अवसर उपलब्ध हो सकेंगे।

समिति के अध्यक्ष श्री के.सी. मालू ने संविधान के अनुच्छेद 344 और 351 की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि राज्यों को हिन्दी के विकास के साथ राज्य की मातृ भाषा का भी ध्यान रखना आवश्यक है। उन्होंने ‘शिक्षा का अधिकार” का उल्लेख करते हुए बताया कि इसमें प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृ भाषा में देने का प्रावधान है।

श्री मालू ने राजस्थानी को यथा शीघ्र संवैधानिक मान्यता प्रदान कर इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध करते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा इसकी पूरी पात्रता रखती है।

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