• February 28, 2022

यूक्रेनः भारत की भावी भूमिका — डॉ. वेदप्रताप वैदिक

यूक्रेनः भारत की भावी भूमिका — डॉ. वेदप्रताप वैदिक

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

मैंने कल लिखा था कि यूक्रेन में रूस अपनी कठपुतली सरकार जब तक नहीं बिठा लेगा, वह चैन से नहीं बैठेगा। यूक्रेन के नेता कितनी ही बहादुरी के बयान झाड़ते रहें, उनकी हालत खस्ता हो चुकी है। सैकड़ों लोग मर चुके हैं, कई भवन ध्वस्त हो गए हैं और राजधानी कीव पर भी रूसी कब्जा बढ़ता चला जा रहा है। सुरक्षा परिषद में रूसी वीटो ने संयुक्तराष्ट्र संघ को नाकारा बना दिया है। बड़ी-बड़ी डींग मारनेवाले नाटो राष्ट्रों और अमेरिका ने यूक्रेन की रक्षा के लिए अभी तक अपना एक भी सैनिक नहीं भेजा है। रूसी नेता पूतिन को पता है कि नाटो राष्ट्रों के भरोसे खम ठोकनेवाले यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदोमीर झेलेंस्की का मनोबल गिर चुका है। उन्हें इस बात का अंदाज है कि यह युद्ध लंबा खिंच गया तो यूक्रेन 30-40 साल पीछे चला जाएगा और हजारों लोग मारे जाएंगे। स्वयं झेलेंस्की और उनके मंत्रियों का जिंदा रहना भी मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए पूतिन का बातचीत का निमंत्रण तो झेलेंस्की ने स्वीकार कर लिया है लेकिन वे यह शांति-वार्ता बेलारुस में नहीं करना चाहते हैं। उनका आरोप है कि रूसी हमले में बेलारुस की भूमिका सबसे ज्यादा घृणित रही है। उन्होंने ऐसे कई देशों के वैकल्पिक नाम सुझाएं हैं, जो सोवियत संघ के वारसा पेक्ट के सदस्य भी रहे हैं और पड़ौसी यूरोपीय देश भी हैं। मुझे लगता है कि पूतिन मान जाएंगे। यदि वे मान गए तो यूरोप को ही नहीं, सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था को गड्ढ़े में गिरने से वे बचा लेंगे। यदि यह युद्ध एक हफ्ते भी चलता रहा तो यूक्रेन और रूस तो आत्मघात का मार्ग अपने लिए खोल ही लेंगे, नाटो राष्ट्रों की भी बधिया बैठने लगेगी। यूरोप की संकटग्रस्त अर्थ-व्यवस्था से भारत जैसे राष्ट्रों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। एशिया, अफ्रीका और लातीनी अमेरिका के कई राष्ट्र भी रूस की तरह डंडे के जोर पर अपने पड़ौसियों से निपटने के लिए प्रेरित होंगे। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद राष्ट्रों के सैन्य-खर्च में जो कटौती हुई थी, वह अब दुगुने जोश के साथ बढ़ सकती है। अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के वर्तमान समीकरणों को भी यूक्रेन का युद्ध नई दिशा में ठेल रहा है। अब रूस और चीन मिलकर विश्व राजनीति पर अपना वर्चस्व जमाने की पूरी कोशिश करेंगे। अब शायद भारत को नेहरु, नासिर और नक्रूमा की गुट-निरपेक्षता को फिर से जिंदा करने की जरुरत पड़ सकती है। यह केवल संयोग नहीं है कि अमेरिका के बाइडन, रूस के पूतिन और यूक्रेन के झेलेंस्की ने भी मोदी से बात करना जरुरी समझा।

Related post

सीरिया: दुनिया को विद्रोहियों को शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से आंकना चाहिए : शैलश कुमार

सीरिया: दुनिया को विद्रोहियों को शब्दों से नहीं, बल्कि कर्मों से आंकना चाहिए : शैलश कुमार

सीरिया में असद शासन के पतन ने इस संकटग्रस्त देश के लिए एक नया अध्याय खोल…
गठबंधन में अलग थलग होती कांग्रेस

गठबंधन में अलग थलग होती कांग्रेस

सुरेश हिंदुस्तानी—-वर्तमान समेत में भारत की राजनीति निश्चित ही अनिश्चितता का एक ऐसा खेल है, जिसका…
गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

गांवों तक आधारभूत संरचनाओं को मज़बूत करने की जरूरत

कमलेश–(अजमेर)—दिसंबर के पहले सप्ताह में राजस्थान में आयोजित हुए तीन दिवसीय ‘राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इंवेस्टमेंट समिट…

Leave a Reply