• March 8, 2022

यूक्रेनः चीन की चतुराई — डॉ. वेदप्रताप वैदिक

यूक्रेनः चीन की चतुराई — डॉ. वेदप्रताप वैदिक

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
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इस समय सारी दुनिया का ध्यान यूक्रेन पर लगा हुआ है लेकिन इस संकट के दौरान चीन की चतुराई पर कितने लोगों ने ध्यान दिया है? इस समय पिछले कुछ वर्षों से चीन और अमेरिका के बीच भयंकर अनबन चल रही है। चीन पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने चार देशों— भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका का चौगुटा (क्वाड) खड़ा कर लिया है। ‘आकुस’ का सैन्य संगठन पहले से बना ही हुआ है। चीनी-अमेरिकी व्यापार, ताइवान और दक्षिण चीनी समुद्र के सवाल पर इन दोनों देशों में तनातनी चल रही है। चीन में हुए ओलंपिक खेलों का भी अमेरिका और उसके साथी राष्ट्रों ने बहिष्कार किया है लेकिन इन सब चीन-विरोधी हरकतों के बावजूद यूक्रेन के सवाल पर जब-जब वोट देने का सवाल आया, चीन ने कभी भी अमेरिकी प्रस्ताव के विरुद्ध वोट नहीं दिया। उसने भारत की तरह तटस्थता दिखाई। परिवर्जन (एब्सटेन) किया। क्यों किया? क्या वह अमेरिका से डरता है? नहीं! उसे अमेरिका से कोई डर नहीं है। वे आर्थिक और सामरिक दृष्टि से भी अमेरिका के मुकाबले सीना तानकर खड़ा हो सकता है। वह अमेरिका के लिए रूस से कई गुना बड़ा खतरा बन सकता है। आजकल चीन और रूस का संबंध वैसा कटु नहीं है, जैसे माओ और ख्रुश्चौफ के जमाने में था। आजकल ये दोनों राष्ट्र गलबहियां डाले हुए हैं। चीन की फौज और अर्थव्यवस्था इस समय इतनी बड़ी है कि चीन जब चाहे रूस की सहायता कर सकता है। चीन और रूस शांघाई सहयोग संगठन के सदस्य भी हैं। इसके बावजूद यूक्रेन के सवाल पर चीन ने कभी रूस के समर्थन में वोट नहीं दिया। जब भी सुरक्षा परिषद, महासभा या मानव अधिकार परिषद में यूक्रेन का मामला उठा तो उसने खुलकर रूस के समर्थन में एक शब्द भी नहीं बोला। इस सावधानी का रहस्य क्या है? वह भारत की तरह तटस्थ क्यों हो गया है? भारत की तो मजबूरी है, क्योंकि रूस और अमेरिका, दोनों के ही भारत से अच्छे संबंध हैं। यों भी भारत अपनी गुट-निरपेक्षता या तटस्थता के लिए जाना जाता रहा है। चीन की तटस्थता का जो रहस्य मुझे समझ में आता है, वह यह है कि वह रूस के इस अतिवादी कदम का समर्थन करके दुनिया में अपनी छवि खराब नहीं करवाना चाहता है। वह अपने आप को विश्व की महाशक्ति मनवाना चाहता है। इतना काफी है कि वह रूस का विरोध नहीं कर रहा है। दूसरी बात यह है कि अमेरिका के साथ वह अपने दरवाजे खुले रखना चाहता है। यदि वह रूस का अंध-समर्थन करने पर उतारु हो जाता तो चौगुटे के चारों देशों और यूरोपीय राष्ट्रों के साथ चल रहा उसका अरबों-खरबों डाॅलर का व्यापार भी चौपट हो सकता था। चीन इस समय दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी देश है। इसीलिए वह महाजनी बुद्धि से काम कर रहा है।

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