• January 27, 2017

मोक्षमार्गी बनें या माया अनुचर रहें – डॉ. दीपक आचार्य

मोक्षमार्गी बनें या माया अनुचर रहें – डॉ. दीपक आचार्य

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जीवन का लक्ष्य जहाँ हम हैं वहाँ से अपने श्रेष्ठ कर्मों और पुण्य के माध्यम से ऊध्र्वगामी यात्रा की ओर बढ़ना है।
अधोगामी होने के लिए हमारे पास असंख्य रास्ते हैं, अनगिनत लोग हैं जो भटकाने के लिए काफी हैं और ढेरों संसाधन हैं जिनके माध्यम से निरन्तर क्षरण को पाते हुए हमारे अधःपतन के तमाम रास्ते और द्वार बिना किसी मेहनत के खुले रहते हैं।
उदासीनों, निकम्मों, निःशक्तों, कामचोरों और पराश्रितों को छोड़ दिया जाए तो संसार के समस्त मानव समुदाय को दो सुस्पष्ट भागों में विभक्त किया जा सकता है – मोक्षमार्गी और मायामार्गी।
इनमें मोक्षमार्गियों का लक्ष्य सुदृढ़ संकल्पों से आबद्ध होता है। सर्वथा निरपेक्ष, दिव्य और दैवीय भावों से जीते हुए अपनी ऊध्र्वगामी यात्रा के लक्ष्य को परिपूर्णता प्रदान करने के सारे के सारे उपायों, अनुशासन, संयम और शुचिता को अपनाते हुए इस जन्म से परे आने वाले समय की चिन्ता और चिन्तन होता है।
इसमें इंसान पूरी तरह भगवदीय मार्ग को अपना लेता है और फिर उसे दूसरे इंसानों से कुछ भी प्राप्त करने की कोई तमन्ना नहीं रहती चाहे वह धन-संपदा, यश-वैभव हो या लोकप्रियता अथवा और कुछ, जो एक सामान्य इंसान को अभीप्सित होता है। जैसा ईश्वर का विधान होता है उसी को सहज और आनंद भाव से स्वीकार करते हुए पूरी मस्ती से जीते हैं।
जो लोग मोक्षमार्गी होते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी प्रकार से लाभ, उपहार या अन्य कुछ प्राप्त करना किसी बड़े ऋण के बराबर है और इससे उऋण हुए बगैर न भगवान को पाया जा सकता है न मोक्ष को।
ईश्वर या मुक्ति की सर्वोपरि और प्राथमिक शर्त यही है कि हम सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त रहें और हम पर किसी का कोई ऋण बकाया न रहे।
यह ऋण सामने वाले की ओर से स्वेच्छा से प्राप्त हो या किसी प्रलोभन अथवा दबाव के, हर मामले में ऋणानुबंध तो बनता ही है और इसका चुकारा किए बिना हम न हल्के हो सकते हैं न मुक्त।
इसीलिए कहा गया है कि दूसरों का द्रव्य धूल के बराबर है। किसी से सेवा भी प्राप्त करना ऋण और कर्मबंधन की श्रेणी में आता है। यही कारण है कि बिरले लोग न किसी से कुछ प्राप्त करते हैं, न किसी से कोई अपेक्षा रखते हैं। यहाँ तक कि किसी का एक अन्न कण या जल बिन्दु तक ग्रहण नहीं करते, रुपए-पैसों, सेवा, आत्मप्रशंसा, लोकेषणा, गिफ्ट आदि तो बहुत दूर की बात होती है।
ये लोग हमेशा यही प्रयास करते हैं कि संसार में जितना अधिक हो सके, उदारतापूर्वक जगत की सेवा और परोपकार में निष्काम भाव से समर्पित करते रहें और मुक्ति के रास्ते चलते रहें। जब हम किसी कामना के वशीभूत होकर किसी की सेवा करते हैं, किसी को सहयोग करते हैं या किसी भी प्रकार से मदद करते हैं तभी हमारा उसके प्रति किया जाने वाला कर्म ऋणानुबंध की श्रेणी में आएगा और हमें चुकाने के लिए सामने वाला कर्जदार हो जाएगा।
जब हमारे प्रत्येक कर्म निष्काम भाव से परमात्मा के कर्म समझकर किए जाते हैं तब हम किसी भी प्रकार के ऋणानुबंधन में नहीं फँसते बल्कि हम जो कुछ दूसरों का भला करते हैं, संबल देते हैं, या और कोई उपकार किया करते हैं वह सब हमारे पुण्य में परिवर्तित होकर लाभ देता है और हमारा यही पुण्य अपने आप में इतना अधिक शक्तिशाली होता है कि हमारे भीतर परमात्म शक्ति के घनत्व को और अधिक प्रगाढ़ करता है।
इससे जीवात्मा को दिव्यता एवं दैवत्व प्राप्त होता है जिसका कई जन्मों में भी आसानी से क्षय नहीं होता। इसीलिए निष्काम कर्म,सेवा, भक्ति और योग को अपनाने की राय महापुरुष दिया करते हैं।
जो मोक्षमार्गी लोग हैं वे आंशिक या आधे-अधूरे मोक्ष या माया मार्गी नहीं हो सकते। मोक्ष या माया दोनों में से एक का ही चयन जरूरी है। या तो मोक्ष प्राप्त हो सकता है अथवा सांसारिक माया।
इसी वजह से समझदार मोक्ष मार्गी माया और मायावी संसार से पृथक अलौकिक और विशिष्ट जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं जबकि सांसारिक माया को ही सर्वस्व समझने वाले लोग अपने जीवन को पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा को ही जीवन का परम लक्ष्य मान कर चलते रहते हैं।
ये इसके लिए छोटी-मोटी कामनाओं, उल्टे-सीधे, जायज-नाजायज कामों, तरह-तरह के लोगों, घालमेल भरी स्वार्थी विचारधाराओं, लाभ-हानि देखकर बदलने वाली मानसिकताओं और सांसारिक कारोबारियों की तरह व्यवहार करते हैं और उसी के अनुरूप इनका पूरा जीवन ढल जाया करता है।
इन लोगों को किसी काम से कोई परहेज नहीं रहता। चे चाहे जिसकी अनुचरी, चम्पी और प्रशस्ति गान कर सकते हैं, इनके कोई कुछ भी करवा सकता है, अपने आपको ऊँचा दिखाने और उठाने की गरज से ये कितना ही नीचे गिर सकते हैं, हर तरह का समर्पण कर पसर सकते हैं।
और बेशर्म, क्रूर व संवेदनहीन इतने कि सारी मानवता को ताक में रखकर किसी से भी किसी भी तरह के समझौते और समीकरण बिठा सकते हैं। मायामार्गी लोगों का एकमेव लक्ष्य माया प्राप्त करना है और इसलिए उनके दिमाग में मोक्ष या जगत कल्याण अथवा निष्काम सेवा-परोपकार के विचार कभी भी अंकुरित नहीं हो सकते क्योंकि उनके जिस्म का हर कतरा अंधे मोह और स्वार्थ से घिरा हुआ ही रहता है।
किसी को दोष न दें। सबके अपने-अपने मार्ग और जीवन लक्ष्य तय हैं। जो जैसा कर रहा है वैसा ही फल प्राप्त होना है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। सबकी अपनी-अपनी जीवन शैली है।
मोक्षमार्गियों और मायामार्गियों के रास्ते अलग-अलग हैं, इसलिए कोई अपने आपको हीन या अभावग्रस्त न मानें, जो जैसा कर रहे हैं द्रष्टा भाव से देखते रहें, परिणाम जो भी सामने आएंगे, वे ईश्वरीय न्याय की तुला पर सटीक होंगे। माया और राम दोनों में से एक ही प्राप्त हो सकता है, इस बात को हमेशा ध्यान में रखें।

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