* मैथिल आंगन * —- राशन पर कटाक्ष

* मैथिल आंगन * —-  राशन  पर कटाक्ष

हे गई , चंपा, अतेक दिन स हम , हमर घरवाला, बेटा कोटा पर स राशन कार्ड स , अंगूठा छाप स राशन उठबैत आवि रहल छी।

लेकिन काइल्ह कोटा पर गेलियई त डिलरवा कहलक जे अहि पर अंगूठा दियों। जखने अंगूठा देलियऊ, डिलरवा कहैया की , राशन नही मिलत , अंगूठा नहि मिलैया।

ह गई दीदी, एक बितक आऊर करिया छै, एतेक टा।

महाठग , अपने स एकटा लोल्ला खरीद लेने छै और कहै छै जे सरकार देने अछी।

नम्बरी ठग। 2 किलो , 1 किलो घट्ठी देताऊ , कहताऊ जे सरकारें घट्टी दई छै।

हे गई चपा,

सरकारों के कम् नहि बुझी, ऑफिस में धुथुर मुन्हा सब बैसल रहई छै, उ हो लै ते हेतई। सबटा बोरा स गेंहू, चावल हेराएते देखबही।

देखही ने,

रधिया के बेटा उ छौरा , लोफरवा , नै छै , रधीया के ओकर हिस्सा मुंह चोरवा राशन नहीं देलकई। रमुआ कहलक जे ओकरो हिस्सा कोटा पर उठई छै।

रमुआ, त बनहुलुक छै, 2 रुपया द दही , अा कहीं जे नगटे नाच, त नाच लगतऊ। उ टुनकी वाला झगड़ा लगवई में लुत्ती छै।

ई सरधुआ, नबरी चुगलाहा। ओकरा लग किछु बजबही , सट्ट द जा क डिलरवा के कहीं देताऊ।

राशन नही देलकऊ त चल दुन्नू गोटे, BDO, C.O के पास, कहवई जे कोटा वाला के जे अंगूठा वाला लॉल्ला देने छियई, ओकरा फेंकू , हमरा सब , मउगी मेहर के अंगूठे छाप स राशन दियऊ। लॉला में किदन – कहां बाजै छै। ऊ लॉल्ला के भाषा नहीं समझ में एबैया।

ह गई , चंपा

कहई त ठी के छै। लेकिन ई लोल्ला त उ है , सब देने हतई ने। सब मुरी मचरुआ , ए कै दाईब स लारल- चारल छौ।

नै देलकऊ त कि कर बिही छोरी देबही।

जीविका दीदी कहई छल जे जिला में दु महला पर सब स पैघ अफसर बैसई छै, हुनका लग जाउ।

इ छोटका, मोटका कुकुरहा सब लग की जायब।

त चल,

** मैथिल आंगन **
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रचना याचक — शैलेश कुमार

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