• October 23, 2016

मैं और मेरी समस्या– शैलेश कुमार

मैं और मेरी समस्या– शैलेश कुमार

मैं यह कह रहा हॅू – हमेशा यह सोचे , मैं और मेरी समस्या, मैं और मेरे समाज, मैं और मेरी सरकार। यही एक विचार है जो किसी भी समस्याओं से निजात दिला सकता हैं।

तुम और तुम्हारी समाज,तुम और तुम्हारी सरकार , तुम और तुम्हारी समस्याओं से समाज विखंडित होता है। भ्रातृत्व की भावना विखर जाती है। इस अवस्था में असमानता की दूरियाॅ बढ़ जाती है। एकता की भावना चकनाचूर होे जाती हैै।

अगर इस्लाम धर्म एकता, अखंडता और भ्रातृत्व की भावना का सूचक होेता तो मुुहम्मद साहब के मृत्यु के बाद ताजपोेशी के लिए खलीफाओं में खूनी संघर्ष नहीं होता जिसका प्रतिक आज भी इस्लामिक देश है।

कई ऐसे देश है जहाॅ कोेई अन्य धर्म वाले नहीं है लेकिन एक ही धर्म के प्रवर्तक आपस में खूनी संघर्ष कर एक दूसरेे के जान का दुश्मन बनेे हुऐ हैैं। जैसे – शिया और सुुन्नी। दोनों इस्लाम को मानते हैं। दोनों मुुस्लिम हैं फिर भी एक दूसरें के जान केे दुश्मन हैं। क्यों ?

अगर हिंदू धर्म भी एकता का सूचक होता तो इसमें भी छुआछूत नही होते । एक जाति दूसरे जाति को लातों के तले नहीं दबाते। इसके लिए गीता का वह छंद दोषी है जिसमें आज भी गीता उवाचकों द्वारा प्रवचन के तौर पर सुनाया जाता है। गीता के इस छंद को निकाल देना चाहिए या उवाचकों को इसका उपयोग नहीं करना चाहिए।

जैसे:- ब्राहमण क्षत्रियविंशा शूद्राणां च परंतप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवैर्गुणैः।। यही वाक्य अर्थववेद में भी उल्लेखित है।

विकसित समाज और विकसित मानसिकता का अर्थ क्या है ? अगर गलत परंपरा ही ढोना हो तो किस बात की विकसित समाज !

जाति से अगर जातियों की समस्याऐं दूर होते तों ब्राहमण जातियों में कोई समस्याऐें ही नही रह जाती। क्यों ? क्योंकि ईश्वर पर सर्वाधिकार है तथा किसी न किसी रूप में इन्हीं जातियों का सत्ता पर वर्चस्व रहा है। प्रारंभ में देश पर सभी राज्यों में इन्हीं वर्गोेेे से मुख्यमंत्री होते रहे हैं। लेकिन समस्याऐं जस के तस हैं।

यादवोें और मुस्लिम ने बिहार को 12 वर्षों तक श्री लालू प्रसाद यादव कोे समर्पित कर दिया था। परिणाम यह हुुआ की बिहार में त्रिजटा की निर्भय शासन से सूर्पनखा लुटी जाने लगी।

मुस्लिम और अंध भक्त बंगालियों ने 20 वर्षो तक ज्योति वसु और उनके पार्टीयों को रजिस्ट्री कर दिया था। परिणाम यह हुआ की बंगाल से सारे उद्योगपति भाग खड़ेे हुए।

मुस्लिम और हिंदूओं ने केरल में अनंतकाल तक मार्कसवादियों की सरकार का स्थाईकरण कर दिया, परिणाम सामने है।

उत्तरप्रदेश ने देश को सबसे ज्यादा ब्राहमण प्रधानमंत्री दिया लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ।

वहीं उत्तरप्रदेश से राजपूत प्रधानमंत्री वीपी सिंह बने। उन्होंने देश को नया दिशा दिया – मंडल कमीशन। संविधान मेें था । सडकों के उद्धारीकरण के लिये प्रधानमंत्री देवेगौडा सदा के लिये जाने जायेगें। कहने का अर्थ है लागू करने वाला मर्द चाहिए।

गुुजरात सेे महात्मा गांधी भी थे जिनकों लाॅर्ड डलहौजी – गैंडी – गैंडी ही नहीं भिखारी भी कहता था। शर्म की बात है, हमारे देश पर ही शासन करता था और हमें ही भिखारी कहता था। लेकिन आज गुजरात से ही प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोेदी है। जिनके सामनेे विश्व नत मस्तक है।

उत्तर प्रदेेश केे प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और असम से प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह भी हुए। जिन्हें बातों में उलझाकर पाकिस्तान ने भारत से लड़ाई कर डाली। लेकिन आज वही प्रधानमंत्री मोदी भी है। जिनसे पाकिस्तान भयभीत है।

कहनेे का अर्थ है कि शासन के लायक ब्राहमण जाति नहीं है। वे कुुशल नीतिज्ञ नहीं होते। उनमें गौरवमय कदम उठाने की क्षमता नहीं है। यह जनता भुुगत चकी है।

उत्तरप्रदेश और बिहार आधे भारत का नेतृत्व करता है लेकिन आज इस राज्य के समाज की स्थिति भिखारियों के समान है। जिसे देखने वाला कोई नहीं है। लेकिन लुटनेेवाला हजारों है।

गर्भवती औरतों को प्रसव से 4 माह पूर्व अगर रोज भगवतमय कथा का श्रवण करवाया जाय, वीरों की गाथा सुनाया जाय तो आने वाले बच्चेे भी मेधावान होते हैं।

अर्थात सरकार के लिये “गर्भ” चुुनाव से पूर्व मंथन और निर्णय करना है। इस गर्भ में जैसे सोचेगेें वैसी ही सरकार बनेगी।

उत्तरप्रदेश जैसे राज्योें के लिए क्षेत्रीय दल शोेभनीय नहीं है। राष्ट्रवादी पार्टी को सत्ता में लायें जिससे अनुदान मिलने मेें किसी तरह की आनाकानी न हो। राष्ट्रवादी पार्टी का अर्थ कांग्रेेस पार्टी से नही क्योंकि इस पार्टी का परिणाम सर्व विदित है और भुगत भी चुके हैं।

क्षेत्रीय पार्टी का परिणाम बिहार में देख रहें है। वही श्री नीतीश कुमार भाजपा के साथ थेे और आज वहीं नीतीश राजद के साथ हैैं। दोनोें समयों का अंतर देखिए।

नीतीश जी का एक चुनावी मुददा सफल नहीं होने दिया जा रहा है और इसका कारण राजद है।

उसी तरह उत्तर प्रदेश में एकल पार्टी की सरकार लाने में ही फायदा हैै । आप दिल्ली को देख लें। संघ शासित दिल्ली में अलग सरकार और केंन्द्र में अलग सरकार। परिणाम रार ही रार है ।

मैं यह नहीं कह रहा हूूॅ की भाजपा की सरकार बनायें , कहना यही है कि सरकार वहीं जो केन्द्र और राज्य में हो। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की विकास होगा ही ।

बिहार का उदाहरण स्पष्ट है । केन्द्र और बिहार में कांग्रेेस की सरकार और ब्राहमण मुख्यमंत्री लेकिन विकास बाली की तरह गर्ताल में। उत्तरप्रदेश की भी यही हाल रहा है।

इस नीति में हरियाणा की जनता काफी सजग हैै। बेहतर से बेहतर काम क्यों न हो अगर केन्द्र में सरकार पलट गई तो जनता भी अपने सरकार को चितपट कर केेेंद्र के साथ हो लेती है।

आज मानसिक विकास में अतुलनीय परिर्वतन हुआ है । मतदाताओं में सोच जगी है। राज्य उनका है। समस्याऐं उनकी हैं। वे बहुसंख्य हैं। उनकी सरकार होनी चाहिए। हुई । लेकिन जनमानस के पटल पर गैर ब्राहमण मुख्यमंत्री के रूप मानचित्र खींचने में असफल रहे ।

अगर इन लोगों मे रत्ती भर जन कल्याण की भावना होते तो सही मेेें जयप्रकाश नारायण और लोहिया जी के शिष्य होते लेकिन ये लोग आशाराम और रामफल के पक्के शिष्य निकले।

अब जनता को इस नकली रामफल और आशाराम से छुटकारा पाने का समय आ चुुका हैै।

मैं फिर कहना चाहता हूं की लोभ लालच में न फॅसे, दारू पीकर , क्षणिक काल के लिए पाॅच सौ रूप्ये लेेकर अपना बहुमुल्य वक्त और विचार को गर्त में न डालेें। जातियों और धर्म पर वोट न डालें । अगर नजरों में गलत उम्मीदवार है तो नोटा दबा दें। चुनाव आयोग ने यह अधिकार मतदाताओं को दिया है।

जनता भिखारी नहीं की उसे सब्सिडी चाहिए। वह निर्माता है। एक निर्माता वट वृक्ष के समान होता है। परिणाम मतदाता को भुुगतना है, नेताओं कोे नहीं । वह तो पाॅच वर्ष मेें ही पुश्त – पुुुश्त के लिए अर्जन कर लेता है। मतदाता फक्कर बाबा बने रहते है। इलाज के लिए पैसा-पैसा को तरसते हैं।

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