• October 21, 2021

मुंबई में करीब तीन दशकों के दौरान निर्माण क्षेत्र में 66% वृद्धि के कारण बहुत ज्यादा गर्मी के दुष्प्रभाव:

मुंबई में करीब तीन दशकों के दौरान निर्माण क्षेत्र में 66% वृद्धि के कारण बहुत ज्यादा गर्मी के दुष्प्रभाव:

तीन संस्थानों के शोधकर्ताओं के एक समूह ने पाया कि भूमि उपयोग के बदलते तरीकों और अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव से 1991 से 2018 के बीच औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.
18 अक्टूबर, 2021

अगर आप अक्टूबर की गर्मी से बेहाल हैं तो केवल जलवायु परिवर्तन को दोष न दें. तेज गति से शहरीकरण के साथ-साथ सतत विकास के अभाव और हरित आवरण कम होने से मुंबईकर्स ने पिछले तीन दशकों में गर्मी की तीव्रता में तेज वृद्धि का अनुभव किया है.

एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 1991 से 2018 के बीच मुंबई के 81% खुले क्षेत्र (बिना पेड़-पौधे वाले बंजर स्थान), इसका 40% हरित आवरण (जंगल और झाड़ियाँ) और इसके अपने जल स्रोतों (झीलों, तालाबों, बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों) का लगभग 30% हिस्सा खत्म हो गया. जबकि इसी अवधि के दौरान निर्मित क्षेत्र (विकसित किए गए क्षेत्र) में 66% की वृद्धि हुई है. अध्ययन के निष्कर्ष के मुताबिक इन 27 वर्षों में महानगर के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली; उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के प्रकृति विज्ञान संकाय (फैकल्टी ऑफ़ नेचुरल साइंसेस) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन – तटीय शहर मुंबई में भूमि-उपयोग/भूमि-आच्छादन में परिवर्तन के कारण अर्बन हीट आइलैंड का बढ़ता दुष्प्रभाव (अर्बन हीट आइलैंड डायनेमिक्स इन रिस्पांस टू लैंड-यूज़/लैंड-कवर चेंज इन द कोस्टल सिटी ऑफ़ मुंबई) – में पाया कि शहरीकरण और भू-परिदृश्य (लैंडस्केप) में परिवर्तन की वर्त्तमान गति से यह आशंका है कि महानगर में अर्बन हीट आइलैंड (जब शहर के अंदर का तापमान बाहर के क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है) की तीव्रता और बढ़ेगी.

प्रोफेसर अतीकुर रहमान, भूगोल विभाग, प्रकृति विज्ञान संकाय, जामिया मिलिया इस्लामिया ने बताया, “किसी भी शहरी इलाके में टहलते समय कोई व्यक्ति अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव, एक सूक्ष्म पर्यावरणीय परिघटना, के कारण अत्यधिक गर्मी का अनुभव करता है. यह प्रभाव कई कारणों से पैदा होता है जिनमें कंक्रीट जैसी सामग्री का उपयोग सबसे प्रमुख है.
प्रो रहमान ने आगे कहा, “यह न केवल शहरी ऊष्मीय पर्यावरण (अर्बन थर्मल एनवायरनमेंट) को और बिगाड़ेगा बल्कि शहर के निवासियों के स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरों को भी बढ़ाएगा. मुंबई में गर्मी की तीव्रता में यह वृद्धि शहर में घटते हरित आवरण से जुड़ी है जो शहर में ढांचागत विकास के लिए हरित आवरण वाले भूमि पर बड़े पैमाने पर पक्के निर्माण का परिणाम है.”

यह अध्ययन किस तरह किया गया?

सैटेलाइट इमेजरी (आसानी से उपलब्ध यूएसए-नासा लैंडसैट डेटासेट) का उपयोग करते हुए, लेखकों ने 1991 और 2018 के बीच भूमि-उपयोग और भूमि-आच्छादन में हुए परिवर्तनों, अधिकतम, न्यूनतम और औसत तापमान (अर्बन हीट आइलैंड की तीव्रता के लिए) में अंतर, ज़मीन के सतह के तापमानों, वनस्पति आवरण के मुकाबले शहर के निर्मित क्षेत्र के घनत्व में हुए बदलाव को समझने के लिए मुंबई क्षेत्र (शहर और उपनगर दोनों) के 603 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का अध्ययन किया. निष्कर्षों को हाई रिज़ॉल्यूशन मैप्स (देखें ग्राफिक्स) के रूप में दर्शाया गया और अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव को कम करने के तरीके बताकर शहरी नियोजन और नीतिगत निर्णयों को बेहतर करने का प्रयास किया गया है.
निष्कर्ष: ‘तेज अनियंत्रित शहरीकरण है इस समस्या की मूल वजह’
शाहफहद इस अध्ययन के मुख्य लेखक और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में सीनियर रिसर्च फेलो हैं. उन्होंने कहा, “हमने पाया कि पिछले 5-6 दशकों में तेज अनियंत्रित शहरीकरण ने बेहतर आर्थिक अवसर प्रदान कर बड़ी आबादी को आकर्षित किया है. नतीजतन, वनस्पति आच्छादित भूमि, झाड़ियाँ, वेटलैंड और खुले क्षेत्र जैसे प्राकृतिक इलाके बड़े पैमाने पर शहर के निर्मित क्षेत्रों में परिवर्तित हो गए हैं.”
अध्ययन में पाया गया है कि 1991-2018 के दौरान, मुंबई शहर ने जंगलों (घने वनस्पति वाले क्षेत्र) और स्क्रबलैंड (कम घने वनस्पति वाले क्षेत्र) सहित अपने हरित आवरण का लगभग 40% खो दिया. 1991 में मुंबई का हरित आवरण 287.76 वर्ग किमी था जो 2018 में कम होकर 193.35 वर्ग किमी रह गया.
खुले क्षेत्र का रकबा आधा से ज्यादा कम होकर 1991 के 80.57 वर्ग किलोमीटर से 2018 में 33.7 वर्ग किलोमीटर रह गया. इसी अवधि के दौरान मुंबई में जल स्रोतों का क्षेत्रफल 27.19 वर्ग किमी से घटकर 20.31 वर्ग किमी हो गया.
इस बीच खुले क्षेत्र, हरित आवरण वाले क्षेत्र और जल स्रोतों पर पक्का निर्माण 1991 से 2018 के बीच बढ़कर लगभग दोगुना हो गया. 1991 में 173.09 वर्ग किमी क्षेत्र पर ऐसा निर्माण था, जो 2018 में 346.02 वर्ग किमी तक पहुंच गया.
इन क्षेत्रों के परिवर्तन ने सतह के तापमान और अर्बन हीट आइलैंड तीव्रता के बढ़ते प्रभाव को काफी बदल दिया. शाहफहद ने कहा, “हमने पाया कि 1991 में औसत तापमान 34.08 डिग्री सेल्सियस था. यह अर्बन हीट आइलैंड क्षेत्रों (अतिसंवेदनशील क्षेत्रों) में 2018 में 2.2 डिग्री सेल्सियस बढ़कर 36.28 डिग्री सेल्सियस हो गया, जिससे लोगों के उच्च तापमान के दुष्प्रभावों में आने का खतरा पैदा हो गया.”
गर्मी के इस दुष्प्रभाव को कैसे दूर करें?
लेखकों के अनुसार, इस अध्ययन के निष्कर्ष शहरी हरित क्षेत्र संबंधी स्थानीय योजनाएं और अर्बन हीट आइलैंड के असर को कम करने संबंधी रणनीतियां बनाने में शहरी योजनाकारों और नीति निर्माताओं के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.
लेखकों ने कहा कि गर्मी के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए माइक्रो/वार्ड/मोहल्ला स्तर पर शहरी हरियाली बढ़ाने और छत पर बागवानी को बढ़ावा देने के साथ-साथ ऊंची इमारतों आदि में कांच के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने की तत्काल आवश्यकता है.
शाहफहद ने कहा, “हालांकि मुंबई में खुली जगहें सीमित हैं, लेकिन भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग हरित क्षेत्रों और जल स्रोतों की पहचान और संरक्षण में प्रभावी हो सकता है.”
प्रोफेसर रहमान ने कहा, “अर्बन हीट आइलैंड की तीव्रता बढ़ने के कारण यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कई शहरों में मृत्यु दर बढ़ी है. ऐसे में तत्काल जरुरत इस बात की है कि नीति निर्माता नागरिकों के स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को समझें और हरित आवरण बढ़ाकर गर्मी बढ़ने के असर को कम करें.”
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लेखकों की प्रमुख सिफारिशें

– नए विकसित हो रहे क्षेत्रों के लिए भूमि उपयोग संबंधी समुचित योजना तैयार की जाए. विशेष रूप से उन उपनगरीय जिलों के लिए ऐसी योजना तैयार की जाए जहाँ अर्बन हीट आइलैंड संबंधी दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा बढ़ रहे हैं.

– इस संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अनुशंसा का पालन किया जा सकता है जिसने स्वास्थ्यकर जीवन के लिए शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 9 वर्ग मीटर हरित स्थान की न्यूनतम सीमा निर्धारित की है. इसी तरह यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूरोपीय देशों के शहरों के लिए प्रति व्यक्ति 26 वर्ग मीटर हरित स्थान की सीमा निर्धारित की है.
– इसके अलावा, शहरवासी भी छत पर बागवानी, वर्टिकल गार्डनिंग और सामुदायिक स्तर पर पेड़ लगा कर अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) न्यूनीकरण में मदद कर सकते हैं.
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विशेषज्ञों की राय और सिफारिशें

डॉ. (आर्किटेक्ट) रोशनी उदयवर येहुदा, अध्यक्ष, इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल आर्किटेक्चर एंड रिसर्च (आईईएआर)

अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव इमारतों और सड़कों या खुली जगहों पर कंक्रीट, स्टील और कांच जैसे निर्माण सामग्री के इस्तेमाल में वृद्धि के कारण पैदा होता है. उन्होंने बताया कि हवा के प्रवाह में कमी, जो अक्सर शहरी क्षेत्रों में निर्मित पास-पास खड़ी संरचनाओं के कारण होती है, से भी तापमान बढ़ सकता है. उन्होंने आगे कहा कि मुंबई में विकास मुख्य रूप से बिल्ट स्पेस और फ्लोर स्पेस इंडेक्स (निर्मित क्षेत्र और सतह क्षेत्र/एफएसआई) पर केंद्रित है.

उन्होंने कहा, “शहर के अधिकांश निवासियों द्वारा सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के बावजूद सड़क किनारे चार-पहिया वाहनों के लिए पार्किंग और फ्लाईओवर जैसे बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता दी जाती है. स्वाभाविक रूप से, इस कारण खुली जगहें, हरे भरे स्थान और सोफ्टस्केप (बगीचा, फूल, पौधे, झाड़ियाँ, पेड़ आदि) घट रहे हैं. शहर की विकास योजनाएं तैयार करते वक़्त अर्बन हीट आइलैंड की हकीकत पर भी विचार करना चाहिए.”

अन्य सिफारिशों के अलावा, डॉ. येहुदा ने कहा कि अर्बन हीट आइलैंड प्रभावों का मुकाबला करने के लिए पक्की संरचनाओं के अनुपात में खुली जगहों का प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए. ऐसा खासकर भविष्य में हीट वेव्स की तीव्रता तेज होने की आशंका के मद्देनज़र करना चाहिए. उन्होंने कहा, “सड़कों के किनारे वृक्षारोपण, शहर को बगीचे और सॉफ्टस्केप से सजा कर, पार्किंग क्षेत्रों पर ग्रीन कवर शेडिंग की शुरूआत और जल स्रोत मुंबई में इस तरह के प्रभावों का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं. रूफटॉप गार्डन, ठंडी छतों या कूल रूफ़स (जिन पर उच्च परावर्तक पेंट लगाया जाता है) और शहरों में छतों पर खेती के लिए वित्तीय मदद प्रदान करने से भी इसे (अर्बन हीट आइलैंड दुष्प्रभाव) कम करने में मदद मिलेगी. किसी भी निर्माण परियोजना में शहर के भीतर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए न कि पेड़ों को काटने और इसके मुआवजे के तौर पर कहीं और प्रतिपूरक वनरोपण की इज़ाज़त दी जानी चाहिए.”
अक्षय देवरस, स्वतंत्र मौसम विज्ञानी और इंग्लैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के पीएचडी छात्र
देवरस ने बताया मुंबई वासियों के स्वास्थ्य पर अर्बन हीट आइलैंड के असर की चर्चा शहर के अन्य पर्यावरणीय मुद्दों की तरह नहीं की जाती है. इस पहलू पर विस्तार से बताते हुए उन्होंने प्रकाश डाला कि कैसे यह दूसरों की तुलना में कुछ वर्ग के नागरिकों को सीधे प्रभावित कर रहा है.
देवरस ने कहा, “घटते जल स्रोतों, हरित आवरण और खुले क्षेत्रों जैसे कारकों के कारण मुंबई के लिए खुद को ठंडा करना मुश्किल होता जा रहा है. हीट आइलैंड प्रभाव जनसंख्या घनत्व से जुड़ा हुआ है, उदाहरण के लिए धारावी जैसे क्षेत्रों में शहरी गरीब सबसे अधिक पीड़ित हैं क्योंकि वे समुचित डिज़ाइन वाले घर या एयर कंडीशनर का खर्च नहीं वहन कर सकते. दूसरी तरफ, ऊंची इमारतों या घेराबंद सामुदायिक इलाकों में रहने वाले लोग ज्यादातर समय इस गर्मी के दुष्प्रभाव से बच जाते हैं या इसे गर्मी को एसी से जुड़ा मुद्दा मानते हैं और इसे उष्णकटिबंधीय आर्द्र क्षेत्र में रहने की सामान्य मानसिकता से जोड़ते हैं.”
ताप सूचकांक (हीट इंडेक्स) के माध्यम से भी नागरिक हीट आइलैंड प्रभाव को महसूस करते हैं. यह सूचकांक उच्च तापमान और नमी दोनों के आधार पर तैयार किया जाता है जो बीमारी या स्ट्रोक का कारण बन सकता है. देवरस ने कहा, “अक्टूबर के दौरान शहर का ताप सूचकांक 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि वास्तविक अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है. ऐसा शहर में सापेक्ष आर्द्रता 60% रहने के कारण होता है.”
उन्होंने आगे कहा कि प्रत्यक्ष रूप से सामना करने के कारण नियमित यात्री और बाहर काम करने वाले इस शहरी गर्मी की परेशानी से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. देवरस ने बताया, “इस प्रकार, यदि किसी भी क्षेत्र (उदहारण के लिए एक पॉश इलाका) में शहरीकरण बढ़ता है, तो इसके कारण पैदा हुए अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव (स्थानीय तापमान में वृद्धि) उन निवासियों को प्रभावित नहीं कर सकता है जो एसी का उपयोग कर जोखिम कम कर सकते हैं लेकिन इन क्षेत्रों में काम कर रहे शहरी गरीब (मजदूर, घरेलू कामगार, छोटे दुकान के मालिक) को नुकसान होगा. घर पर वेंटिलेशन और इसे ठंडा करने वाले उपायों की कमी एवं कार्यस्थलों तक आने-जाने के कारण प्रभावित होने वाले दोहरी मार झेलेंगे.” उन्होंने आगे कहा कि महानगर के लिए कूलिंग प्लान की जरूरत है जो जल्द-से-जल्द इन दुष्प्रभावों को दूर करने में काम आ सके और साथ ही लोगों को इनका एहसास कराने के लिए गर्मी के दुष्प्रभावों के बारे में चेतावनी और सलाह दे.
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लेखक संपर्क:

रिपोर्ट संबंधी जानकारियों के लिए संपर्क करें:
प्रो. अतीकुर रहमान, भूगोल विभाग, प्रकृति विज्ञान संकाय, जामिया मिलिया इस्लामिया
मोबाइल – +91 9873115404
ईमेल – arahman2@jmi.ac.in
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