- June 27, 2023
मिट्टी के चूल्हे से नहीं मिली मुक्ति : सपना कुमारी
लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस योजना के लाभान्वितों को मिट्टी के चूल्हे से मुक्ति मिली? दरअसल ‘स्वच्छ ईंधन बेहतर जीवन’ के नारे के साथ केंद्र सरकार ने 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण परिवारों में लकड़ी और गोइठा के चूल्हे से उत्सर्जित धुएं तथा विषैली गैसों के द्वारा फैलने वाली बीमारियों से महिलाओं को सुरक्षित रखना है. इसके अतिरिक्त इस योजना से महिला सशक्तिकरण, महिला स्वास्थ्य और महिला कल्याण को भी बढ़ावा देना है. साथ ही, जीवाश्म तथा अशुद्ध ईंधन द्वारा पकाए गए भोजन से होने वाली मौतों को भारत में कम करने का लक्ष्य भी इस योजना में रखा गया है. समाज सुधार एवं सामाजिक कल्याण की दिशा में यह एक अच्छी योजना है. इस योजना के अंतर्गत गरीब परिवारों की बीपीएल धारक महिलाओं को रियायती दर पर फ्री गैस कनेक्शन देना है. लेकिन ऐसा लगता है कि ज़मीनी स्तर पर यह योजना अपने लक्ष्य से भटक रही है.
इसका एक उदाहरण बिहार के मुजफ्फरपुर का ग्रामीण क्षेत्र है जहां गैस सिलेंडर महंगा होने के कारण गरीब महिलाएं फिर से लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाने को मजबूर हैं. जिला के मोतीपुर प्रखंड स्थित रामपुर भेड़ियाही पंचायत के धनौती गांव की इंदु देवी कहती हैं कि ‘योजना के तहत फ्री गैस कनेक्शन तो मिल गया है. अब तक छह बार गैस सिलेंडर भी भरवाया, जिसमें से 2 या 3 बार ही सब्सिडी आया है. लेकिन अब सब्सिडी नहीं आती है. परिवार की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं है कि 1200 रुपए में सिलेंडर भरवाए. ऐसे में सिलिंडर घर में ही रखा है और अब फिर से मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बनाती हूं. लकड़ी व पत्ता चुन कर लाती हूं और उसी को जलाकर खाना बनाती हूं.
इसी गांव की उषा देवी कहती हैं कि पहले 500 से 600 में गैस सिलेंडर भरा जाता था और 200 रुपए सब्सिडी भी आ जाता था, लेकिन अब तो एक गैस सिलेंडर भरवाने में लगभग 1200 रुपए लग जाते हैं और सब्सिडी भी नहीं आती है. इस वजह से हम गैस सिलेंडर नहीं भर पाते हैं और पेड़-पौधों को कटवा कर उसी से खाना बनाते हैं. शोभा देवी कहती हैं कि आर्थिक तंगी के कारण हमने दो-तीन बार के बाद गैस सिलेंडर भरवाना बंद कर दिया है. अब फिर से हम चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं. इस पंचायत की ऐसी दर्जनों महिलाएं हैं जिन्होंने बताया कि महंगाई के कारण घरेलू गैस सिलेंडर नहीं भरवाती हैं और फिर से मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बना रही हैं.
ऐसी स्थिति जिले के अन्य प्रखंडों के ग्रामीण क्षेत्रों की भी है. पारु प्रखंड के चांदकेवारी पंचायत की महिला दरुदन बीबी बताती हैं कि ‘फ्री के नाम पर हमें भी एक गैस कनेक्शन मिला है, जिसमें हमसे फॉर्म भरने के लिए 200 रुपये लिया गया था. कनेक्शन तो मिला, लेकिन आज गैस इतनी महंगी हो गयी है कि एक सिलेंडर का दाम 1180 रुपये लगता हैं. हम एक गरीब परिवार से हैं. एक दिन खेत में काम करने के मात्र 70 रुपये मजदूरी मिलती है. इतने कम पैसे में पांच परिवार का खाना-पीना करें कि गैस भरवाए? खाना बनाने के लिए जलावन के रूप में फिर से पुराना लकड़ी-चूल्हा काम आ रहा है.’ साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर पंचायत के शाहपुर पट्टी गांव के इंदिरा नगर मुशहर टोला में मुसहर समुदाय के लोगों भी फ्री में गैस कनेक्शन मिला था, लेकिन आज गैस की महंगाई के कारण सभी परिवार गैस भरवाना छोड़ चुके हैं और मिट्टी के चुल्हे पर खाना बना रहे हैं. यहां की कुछ महिलाओं कलावती देवी, सुकांन्ति देवी, सीमा देवी, मालती देवी, माला देवी, उर्मिला देवी, सुरति देवी, उर्मिला और पानपति देवी आदि ने बताया कि बढ़ी महंगाई के कारण सबने गैस सिलिंडर भरवाना बंद कर दिया है और अब वह सिलिंडर को घर के एक कोने में रख कर उस पर बर्तन रखती हैं. वह कहती हैं की हम गरीब-मजदूर भला इतने पैसे कहां से लाएं कि हर महीने 1100- 1200 में सिलेंडर भरवाएं?
इस संबंध में हुस्सेपुर पंचायत के मुखिया अमलेश राय बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना निर्धन-अति निर्धन परिवार के लिए सफल साबित नहीं हो रही है. जितनी तेजी से गरीबों के बीच गैस कनेक्शन बांटा गया, उतनी ही तेजी से सिलिंडर बंद होते चले गये.’ वह कहते हैं कि ‘सिर्फ मुफ्त में सिलिंडर दे देने से लकड़ी के जलावन से मुक्ति नहीं मिलने वाली है. महंगाई के अनुपात में आम लोगों की कमाई घटती जा रही है, भला वे सीमित आमदनी में अपना घर चलाए या सिलेंडर भरवाएं?