- December 8, 2017
मानव अधिकार दिवस -10 दिसम्बर
जयपुर, 8 दिसम्बर। मानव अधिकार दिवस भारत एवं विश्वभर में मानवाधिकार संस्कृति की अपनी रणनीति को बढ़ावा देने के अपने अभिन्न हिस्से के रूप में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत मानवाधिकार समर्थकों को सुदृढ़ करने के संकल्प को दोहराता है।
मानव अधिकार समर्थकों पर घोषणा के साथ वर्ष 1998 में आरम्भ हुए इस महान आन्दोलन को आज गति मिली है। देश एवं विश्व भर में मानव अधिकारों की स्थिति में सुधार एवं इसके सशक्तीकरण में राज्य एवं गैर सरकारी कार्यकर्ताओं की साझेदारी में मानव अधिकार समर्थकों का कार्य दूरगामी प्रभाव डालेगा।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा माह अक्टूबर, 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ जो मार्च, 2000 से प्रभावी है।
प्रदेश में महिलाओं, बच्चों एवं कमजोर वर्गों के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए समाज में अधिक संवेदनशीलता लाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आयोग द्वारा मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में हर सम्भव प्रयास किया गया है। मानवाधिकार संरक्षण के प्रयासों की सार्थकता तभी है जब प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहें।
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग स्वप्रेरणा से पीड़ित की शिकायत पर तथा पीड़ित व्यक्ति के प्रतिनिधि की ओर से प्रेषित होने पर मानव अधिकार हनन के प्रकरण स्वीकार करता है।
राज्य मानव अधिकार आयोग लोक सेवक के विरूद्ध, पुलिस, जेल, अस्पताल, सरकारी छात्रावास, नारी निकेतन, बालगृह तथा अन्य सभी स्थल जहां किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को चिकित्सा, सुधार या सुरक्षा के लिए रखा जाता है के प्रकरण तथा इनके अलावा अन्य कार्य जो मान अधिकार की रक्षा के लिए आवश्यक हो, प्रकरण स्वीकार करता है।
आयोग द्वारा मानव अधिकार से सम्बन्धित संविधान व कानून के प्रावधानों का पुनर्विलोकन कर ऎसे प्रावधानों का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन तथा आतंककारी गतिविधियों सहित अन्य विषयों का पुनर्विलोकन कर मानव अधिकार के प्रभावी उपयोग के सुधार के सुझाव दिये जाते हैं।
मानव अधिकार विषय पर अनुसंधान करना, मानव अधिकार का प्रकाशन व मीडिया, सेमीनार व अन्य साधनों से प्रचार, प्रसार व जागरूकता के लिए कार्य करता है। साथ ही गैर सरकारी संगठनों का मानव अधिकार क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
आयोग अस्पष्ट या अनाम या छद्मनाम या अपठनीय या तुच्छ या अकारण परेशान करने वाले, अधिनियम की धारा 36(1) के अधीन वर्जित (धारा 36(1)- आयोग, किसी ऎसे विषय की जांच नहीं करेगा जो तत्समय प्रवृत किसी विधि के अधीन सम्यक् रूप से गठित किसी राज्य आयोग या किसी अन्य आयोग के समक्ष लम्बित है।), अधिनियम की धारा 36(2) के अधीन वर्जित (धारा 36(2)- आयोग या राज्य आयोग उस तारीख से जिसको मानव अधिकारों का अतिक्रमण गठित करने वाले कार्य का किया जाना अभिकथित है, एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् किसी विषय की जांच नहीं करेगा।), सिविल विवाद से सम्बन्धित जैसे सम्पत्ति के अधिकार, संविदागत बाध्यताएं, सेवा मामले या श्रम या औद्योगिक विवादों से सम्बन्धित, आरोप किसी लोकसेवक के विरूद्ध नहीं हों, जहां अभिकथनाें से मानव अधिकारों के किसी विनिदिष्ट अतिक्रमण का मामला नहीं बनता हो, जहां मामला किसी न्यायालय या अधिकरण के समक्ष विचाराधीन हो, जहां मामला किसी न्यायिक अभिमत या आयोग के विनिश्चय के अन्तर्गत आता हो, जहां आयोग को किसी अन्य प्राधिकारी को प्रेषित परिवाद की प्रति प्राप्त हों तथा जहां मामला आयोग के कार्यक्षेत्र के बाहर हो ऎसे प्रकरणों पर प्रसंज्ञान नहीं लिया जाता है।
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