- November 14, 2015
माँ गंगे सरस्वती नदी की तरह —- !!
धन्य है इस पावन भूमि के लोग , सौभाग्यवान है वे सरकार, जिनके हाथों में भागीरथ की पावन -पवित्र धरा को सुशासित करने के लिए लक्ष्य अर्पित किया जाता रहा है।
माँ गंगे के बारे में मैं इतिहास में नहीं जा रहा हूँ क्योंकि इस पर पुराण और उद्भट्ट विद्वानो के संग्रह भरे -परे है, माँ गंगे की दयनीयता पर फिल्म भी बन चुकी है। सरकार भी कई कदमें उठाई है और नए कदमें उठाने जा रही है। लेकिन हमने जो इस धरा पर देखा, वह भारत के सिवाय अन्यत्र कहीं नहीं है ।
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के कर कमलों द्वारा सन 1899 में अंग्रेजों के सहयोग से “हर -की – पैड़ी ” हरिद्वार की स्थापना हुई । जीता – जागता तस्वीर प्रमाणित कर रहा है की आने वाले भविष्य में सरस्वती नदी की तरह विलुप्त होने जा रही है । पतितों के उद्धारक पावन गंगा को आज खुद उद्धारक चाहिये ।
भविष्य में माँ गंगे की जिन वास्तविकताओं से जूझना पडेगा इसे देख कर दिमाग में सन्नाटा छा जाता है। परिकल्पना तीन अवस्थाओं में किया जाना है —-समुद्र —, हवाओं कि दिशायें——- और मौसम । अर्थात–तापमान,(सर्दि,गर्मी और बरसात)।
विश्व का सबसे अधिक्तम तापमान 136 वर्षों के बाद मई—-जुलाई 2015 में,( 0.81°C(1.46°F) से उपर रहा । 20 शदीं में तुलनात्मक तापमान 15.8°C (60.4°F) 1998 में 0.08°C (0.14°F)। जुलाई 2015 में 16.61°C (61.86°F) । आने वाले समय में मां गंगे के लिये यह प्रबल उत्तरदायी है ।
“हर-की-पैड़ी” अंदर जो लोग दिखाई दे रहें हैं वे हाथ में कुदाल लिये ,चुम्बक के डंडे से पानी में सोना ,चांदी और पैसा तलाश रहे हैं क्योंकि यहां आने वाले ऐसे दानवीर है जो पैडी पर बैठे भिखारी को नहीं देगें लेकिन मां गंगे को सोना , चांदी और पैसा आदि बडे ही उदारमना दिल से दान देते हैं। बेचारे इसे ही तलाश रहे हैं। प्रत्येक वर्ष दशहरा के बाद ”हर-की-पैड़ी” कि सफाई होती है साथ ही टूटे-फूटे घाटों का मरम्मतीकरण किया जाता है। फिल्म की वह गीत – ताजा- तरीन हो जाता है — “गंगा आये , कहां से गंगा जाये कहां रे !!
सवाल है ! क्या माँ गंगे को अपने पुत्रीयों और पुत्रों से कुछ चाहिए ! क्या माँ गंगे अपूर्ण है। नहीं ! माँ गंगे स्वयं सर्व कारुणामयी, कल्याणकारी हैं।
इस “हर – की – पैड़ी ” पर मैं दीपावली (11 . 11 . 2015 ) के अवकाश में कई घंटों तक बैठा। इस दरम्यान जो अनुभव हुआ वह भारतीय संस्कृति की अनुपम संगम है। शायद ही ऐसा संगम किसी और देश में हो !
नदियों की संगम , समुद्रों का संगम तो विश्व में कई जगह है । लेकिन मानवीय श्रद्धा का संगम शायद कही और नहीं है। इस “हर -की – पैड़ी ” पर मुझे माँ गंगे में जो वास्तविकता दिखाई दिया —वह —निर्लज्ज राजनीतिक और धर्म नीतिकारों के —मुँहों पर तमाचा है।
वास्तव में इन दोनों का कार्य अशोभायमान और सामाजिक समरसता पर कुठाराघात है। हर एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय का विरोध करते हैं । मरते और कटते हैं । लेकिन मां गंगे के चरणों में सभी समर्पित होने के लिये उतावले हैं और गंगा के तट पर आत्म उत्सर्गित होने के लिए व्याकुल हैं ,यह अनुपम अनुष्ठान सिर्फ भरत की भूमि , भागीरथ के तट पर ही संभव है। भारत गंगा – यमुना और गोदावरी के गोद में पल्ल्वित और पुष्पित विश्व के लिए शांति का प्रतिक है और रहेगा।
यहां ना राग है ना द्वेष है , किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है, आते हैं , गंगा में डूबकी लगाते है, दर्शन करते हैं,जाते हैं । मां गंगे किसी से ये नहीं पूछती हैं कि तुम किस धर्म के हो, तुम मेरे नही हो, तुम उसके हो ??
यहाँ मुस्लिम भी स्नान कर फोटो खिंचवा रहे है , सिख भी कर्म-काण्ड के साथ नृत्यांश कर रहे है ,विदेशी भी बड़े उदगार से मंदिर में जा कर तिलक और रुद्राक्ष धारण कर रहे है, मानवीय अंतः करण की जो भाव है, बड़े ही विह्वलता के साथ उदार मना दिल से व्यक्त करने का साक्षात प्रमाण है – गंगामयी -ममता की आँचल -“हर – पैड़ी।”