- March 1, 2025
महिलाओं के लिए रोज़गार का माध्यम है नया बाजार
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आशा नारंग (अजमेर) ——-राजस्थान का अजमेर पर्यटन और तीर्थ नगरी होने के कारण बहुत लोगों के लिए रोज़गार प्राप्त करने का एक अहम जरिया भी है. यहां के सभी बाज़ारों में सालों भर देसी और विदेशी पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों और आम लोगों की आवाजाही लगी रहती है. जिससे बड़े स्तर के व्यापारियों से लेकर छोटे स्तर तक रोज़गार करने वाले लोगों को आर्थिक रूप से लाभ होता है. इन बाजारों में महिलाएं भी छोटे स्तर पर अपना रोजगार चलाती हैं. इन्हीं में एक ‘नया बाजार’ भी है. करीब 60 साल पुराने इस बाजार में पिछले दो सालों से पिंकी अपने चाय की एक छोटी स्टॉल लगाती है. जिससे होने वाली आमदनी से उसके परिवार का भरण पोषण होता है. इस बाजार की सभी दुकानें पुरुष चलाते हैं. ऐसे में एक महिला के रूप में उन्हें अपनी दुकान चलाने के लिए किसी प्रकार की चुनौती का सामना नहीं होता है.
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पिंकी इससे पहले एक ज्वेलरी शॉप में काउंटर असिस्टेंट के रूप काम कर चुकी हैं. वह कहती हैं कि दो साल पहले जब उन्होंने चाय की अपनी दुकान शुरू की थी तो उनके सामने पुरुषसत्तात्मक समाज में जगह बनाने की चुनौती थी. क्योंकि यहां की सभी दुकानें पुरुष ही चलाते हैं और उनमें काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी भी पुरुष होते हैं. ऐसे में उनके लिए यह काफी मुश्किल था. शुरू शुरू में उन्हें लोगों से बात करने में थोड़ी परेशानी होती थी. लेकिन ज्वेलरी शॉप में काम करने के अनुभव का उन्हें काफी लाभ मिला. वह बहुत जल्द इस मार्केट की दिनचर्या और व्यवहार को समझ गई.
पिंकी रोज़ सुबह 8 बजे दुकान पहुंच जाती हैं और साफ़ सफाई के बाद ग्राहकों के लिए चाय बनाना शुरू कर देती हैं. इस काम में उनका बेटा भी मदद करता है. जबकि उनकी दोनों बेटियां स्कूल और कॉलेज जाती हैं. वह रात 8 बजे तक इस दुकान को संभालती हैं. वह कहती हैं कि उन्होंने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई की है. ऐसे में वह शिक्षा के महत्व को पहचानती हैं. हालांकि उनके बेटे को पढ़ाई में दिल नहीं लगता था. जिसके बाद वह पढ़ाई छोड़कर मां के कामों में हाथ बंटाने लगा.
पिंकी बताती हैं कि सबसे अधिक शाम के समय उनके दुकान पर भीड़ लगती है जब आसपास की दुकानों और ऑफिस से निकले लोग चाय की चुस्की के साथ चर्चा करते हैं. अक्सर यह चर्चा घर और ऑफिस से शुरू होकर देश और दुनिया के मुद्दों पर चलती है. वहीं दोपहर के समय ज़्यादातर अजमेर घूमने आये पर्यटकों की भीड़ जमती है. जब लोग एक पर्यटन स्थल से दूसरे पर्यटन स्थल को देखने जाने के बीच कुछ देर उनकी चाय पीकर अपनी थकान मिटाना चाहते हैं. ऐसे में चाय के साथ उन्हें पर्यटकों का अनुभव भी सुनने को मिलता रहता है. पिंकी कहती हैं कि उन्हें राजनीति की अधिक समझ नहीं है, लेकिन जब शाम में चाय के साथ उनकी दुकान पर देश और दुनिया की राजनीति पर चर्चा होती है तो उन्हें बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है. वहीं पर्यटकों द्वारा भी उनकी चाय की दुकान पर बैठ कर चर्चा करने से उन्हें काफी कुछ जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं.
इसी नया बाजार के एक मोड़ पर 65 वर्षीय लाली फूलों की माला बेचती हैं. वह पिछले 30 वर्षों से यह काम कर रही हैं. आसपास छोटे बड़े कई मंदिर होने के कारण प्रतिदिन उनकी अच्छी खासी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें 500 से 600 रुपए तक की आमदनी हो जाती है. वह रोज़ाना 6 बजे सुबह यहां अपनी फूलों की टोकड़ी लेकर बैठ जाती हैं और रात 9 बजे तक रहती हैं. लाली बताती हैं कि प्रत्येक मंगलवार के अतिरिक्त पर्व त्योहारों के दिनों में उनकी पूरी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें काफी आमदनी होती है और आर्थिक रूप से भी काफी लाभ मिलता है. वह बताती हैं कि उनके 2 बेटे हैं और दोनों ही अलग अलग दुकानों पर काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे में वह अपने बेटों पर बोझ नहीं बनना चाहती हैं. इसलिए इस काम को करने में उन्हें ख़ुशी महसूस होती है. वह कहती हैं कि आमदनी के साथ साथ वह इसे ईश्वर की सेवा भी समझती हैं.
लाली बताती हैं कि पुरुष और महिलाएं सभी उनसे फूल खरीदने आते रहते हैं. उन्हें कभी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आई है. वह मदार गेट से रोज़ाना बीस किलो फूल खरीदती हैं. इसके लिए वह प्रतिदिन सुबह पांच बजे मदार गेट पहुंच जाती हैं. वह बताती हैं कि 30 वर्ष पूर्व जब उन्होंने फूल बेचने का काम शुरू किया था, तो उन्हें इसमें बहुत अधिक परेशानी नहीं आई लेकिन मंडी में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. जहां केवल पुरुष ही आया करते थे. ऐसे में मोलभाव करने में उन्हें झिझक होती थी. लेकिन इतने वर्षों बाद अब उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है. अब उन्हें प्रतिदिन बाजार भाव का पता रहता है.
वह कहती हैं कि पुरुषवादी समाज में महिलाओं को अपनी जगह बनानी पड़ती है. इसके लिए उसे घर से लेकर बाहर तक दोहरा संघर्षों से गुज़रना पड़ता है. विशेषकर छोटी पूंजी वाले कामों में उन्हें कदम कदम पर संघर्षों का सामना रहता है. लेकिन पिछले तीन दशकों में काफी बदलाव आया है. अब महिलाएं किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. वह घर की आमदनी में बराबर की हिस्सेदार हो चुकी है. जिसे पुरुष प्रधान समाज को भी स्वीकार करने की ज़रूरत है.