- June 25, 2021
महाराष्ट्र के अति प्रदूषित इलाकों में रहने वाले लोगों में कोविड-19 संक्रमण की प्रवणता अधिक
मुंबई —(बद्री चटर्जी)——- अपने तरह के पहले अखिल भारतीय अध्ययन में पता चला है कि देश के हॉटस्पॉट में शामिल मुंबई और पुणे, जहां परिवहन और औद्योगिक सेक्टर से वायु प्रदूषण अधिक है, वहां कोविड-19 संक्रमण और कोरोना से अत्यधिक मौत के साथ प्रदूषण का स्पष्ट संबंध है।
‘इस्टैब्लिशिंग ए लिंक बिटविन फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) जोन्स एंड कोविड-19 ओवर इंडिया बेस्ड ऑन ऑन्थ्रोपोजेनिक एमिशन सोर्सेज एंड एयर क्वालिटी’ डेटा नाम के इस अध्ययन में पहली बार सबूत मिला है कि कैसे उच्च प्रदूषण वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आने का खतरा है।
हवा में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) अलग-अलग आकार के होते हैं। इसमें धूल, पराग, कार्बन तत्व, धुएं व अन्य तत्वों का एक गूढ़ मिश्रण होता है, जो हानिकारक है। पीएम (कण तत्व) 2.5 छोटा होता है, जिसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर (महीन कण) से ज्यादा नहीं होता है। पीएम 2.5 क बारे में माना जाता है कि ये स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है क्योंकि कई दिनों या हफ्तों तक हवा में रह सकता है। ये इतना छोटा है कि फेफड़े की नली में भी प्रवेश कर सकता है।
टीम व अध्ययन का तरीका:
इस अध्ययन को प्रकाशित करने वाले लेखकों में भुवनेश्वर के उत्कल विश्वविद्यालय के पीजी एनवारमेंट साइंसेज के सरोज कुमार साहू व पूनम मंगाराज, आईआईटीएम-पुणे के वरिष्ठ विज्ञानी गुफरान बेग व सुवर्णा टिकले, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (राउरकेला) के भीष्म त्यागी और आईआईटी-भुवनेश्वर के वी विनोज शामिल हैं।
इस अध्ययन में मार्च 2020 से नवंबर 2020 तक के कोविड-19 मामलों और राष्ट्रीय स्तर पर आधार वर्ष 2019 के पीएम 2.5 उत्सर्जन को शामिल किया गया।
अध्ययन के लिए लेखकों ने देशभर के इलाकों को अलग-अलग हॉटस्पॉट जोन में विभाजित किया। इनमें 26 राज्यों के 16 शहरों को शामिल किया गया। महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे (जोन 6) को भी अध्ययन के लिए चुना गया।
लेखकों ने देशभर के विभिन्न स्रोतों के जरिए हाई रेजोलूशनन ग्रिड (10किमीX10किमी) से एक साल के महीन कण (पीएम2.5) प्रदूषक की गणना की। उन्होंने नया उत्सर्जन डेटा भी विकसित किया, जिसका विश्लेषण कोविड-19 के मामलों और उससे हुई मौतों के साथ किया गया। इसके साथ ही इस अध्ययन को देशभर के 16 स्टेशनों के वायु गुणवत्ता डेटा से मिलान किया गया।
अध्ययन का परिणाम
अध्ययन प्रमुख लेखक डॉ सरोज कुमार साहू ने कहा, “हमारे अध्ययन के परिणाम संकेत देते हैं कि जिलास्तरीय वायु प्रदूषण के आंकड़ों और कोविड-19 के मामलों में अहम पारस्परिक संबंध है। हमने पाया कि जिन क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन मसलन पेट्रोल, डीजल, कोक आदि का इस्तेमाल यातायात और औद्योगिक गतिविधियों में खूब होता है, वहां कोविड-19 के मामले भी अधिक होते हैं।” उन्होंने जोड़ा कि वायु प्रदूषण और कोविड-19 से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव में समानता है और कहा, “पीएम 2.5 छोटे आकार का कण है जो ऊपरी श्वसन व्यवस्था को प्रभावित करता है और कोविड-19 संक्रमण में भी इसी तरह का प्रभाव देखा गया है।”
“हमारे द्वारा विकसित किये गये नेशनल एमिशन इनवेंट्री के आधार पर भारत में महाराष्ट्र में सालाना 828.3 गिगाग्राम पीएम 2.5 उत्सर्जन किया जाता है, जो उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाला दूसरा राज्य है,” डॉ साहू ने बताया।
इसी अवधि में यानी 5 नवम्बर 2020 तक महाराष्ट्र में कोरोना के 17.19 लाख मामले दर्ज किये गये, जो देश में सर्वाधिक था। डॉ साहू ने कहा, “यहां ये भी दर्ज करना जरूरी है कि प्रति व्यक्ति पीएम 2.5 उत्सर्जन करने के मामले में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश से भी आगे है।”
अध्ययन में शामिल 16 शहरों में से मुंबई और पुणे ‘खराब वायु गुणवत्ता दिवसों’ के मामले में क्रमशः तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। मुंबई में कुल 165 ‘खराब वायु गुणवत्ता दिन’ रहे। इसी तरह पुणे में कुल 117 ‘खराब वायु गुणवत्ता दिन’ रहे। इसके समानांतर इसी अवधि में मुंबई में कोरोना संक्रमण के 2.64 लाख मामले और 10445 मौतें दर्ज की गईं, जो देश में सबसे अधिक था। पुणे में इस अवधि में कोरोना से संक्रमण के 3.38 लाख मामले दर्ज हुए और 7060 लोगों की मौत हुई थी।
डॉ साहू ने अपने अध्ययन में कहा कि महाराष्ट्र उन प्रमुख औद्योगीकृत व विकसित राज्यों में एक है जहां भारी मात्रा में पीए2.5 का उत्सर्जन होता है। वहीं, जिलास्तरीय उत्सर्जन के आंकड़े बताते हैं कि मुंबई में पुणे के मुकाबले ज्यदा प्रदूषण रहा।
मुंबई और पुणे के अलावा अध्ययन में महाराष्ट्र के दो अन्य हॉटस्पॉट नागपुर और चंदद्रपुर में भी अधिक प्रदूषण और अधिक कोविड-19 के मामले व मृत्यु दर्ज किये गये।
“हालांकि, ये शहर सीधे तौर पर हमारे अध्ययन का हिस्सा नहीं थे, पर हमने पाया कि दोनों शहरों में औद्योगिक इकाइयां व पावर प्लांट चल रहे हैं, जो वायु प्रदूषण की समस्या को और बढ़ाते हैं व इन्हें हॉटस्पॉट बनाते हैं,” डॉ साहू कहते हैं।
वायु प्रदूषण स्रोतों व कोविड-19 में संबंध
अध्ययन में शिनाख्त की गई है कि महाराष्ट्र एक ऐसे राज्य के तौर पर उभरा है, जहां प्रदूषण हावी है। यहां के प्रदूषण में सड़क परिवहन सेक्टर के बाद औद्योगिक इकाइयां, थर्मल पावर प्लांट और बायोमास बर्निंग व अन्य क्षेत्र अहम भूमिका निभाते हैं।
“चिंता ये है कि इस बात के सबूत हैं कि कोरोनावायरस पीएम 2.5 जैसे कण के साथ चिपक जाता है। ये कण वायरस को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है और वायु जनित कोविड-19 को संक्रमण के लिए प्रभावी बनाता है। हमारे विश्लेषण से ये साफ हो चुका है कि प्रदूषण में इजाफा कोविड-19 संक्रमण को खतरनाक बनाने में उत्प्रेरक बन रहा है,” डॉ साहू ने कहा। उन्होंने ये भी जोड़ा कि प्रदूषित हॉटस्पॉट दीर्घकालिक प्रभाव भी डाल रहे हैं, जिसे समझने के लिए और अध्ययन करने की जरूरत है।
अध्ययन के सह लेखक वरिष्ठ विज्ञानी व सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के फाउंडर प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ गुफरान बेग ने कहा कि महाराष्ट्र के हॉटस्पॉट में रोजाना वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से व्यक्ति का फेफड़ा कमजोर हो सकता है। जब मानवकृत उत्सर्जन, कोविड-19 वायरस के दोहरे असर से मिल जाएगा, तो फेफड़ा को तेजी से खराब करेगा व स्वास्थ्य पर बुरा असर होगा।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
1. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात व अन्य राज्यों में कोविड-19 के मामले ज्यादा पाये जाते हैं, जहां सघन पीएम 2.5 से ज्यादा संपर्क होता है।
2. मुंबई, पुणे, दिल्ली, अहमदाबाद व अन्य शहरों में कोविड-19 के मामले ज्यादा मिले हैं। इन शहरों में मानवकृत जीवाश्म ईंधन से संबंधित गतिविधियों के चलते पीएम2.5 का उत्सर्जन भी अधिक है।
3. अध्ययन के परिणाम कोविड संक्रमण और इससे मृत्यु के साथ कोविड-19 और पीएम 2.5 उत्सर्जन के बीच महत्वपूर्ण संबंध की तरफ इशारा करते हैं।
4. महाराष्ट्र में पीएम 2.5 के उत्सर्जन में परिवहन व औद्योगिक सेक्टर की अहम भागीदारी है और इसका कोविड-19 के मामलों में इजाफे से संबंध है।
5. अध्ययन में मिले परिणाम महाराष्ट्र जैसे सघन आबादी वाले राज्यों में कोरोनावायरस की मौजूदा स्थिति से निबटने की तैयारी करने में बेहद अहम है। अध्ययन के परिणाम रोकथाम संबंधी उपायों व संसाधानों के जरिए उच्च प्रदूषण स्तर वाले इलाकों में मौजूदा स्थिति में व भविष्य में कोरोनावायरस के फैलाव को धीमा करने में मददगार हैं।
6. समाधानों को लेकर अध्ययन में कहा गया है कि साफ-सुथरी तकनीक, बेहतर परिवहन उत्सर्जन नियम जैसे भारत स्टेज-IV को जल्द लागू करने व कण उत्सर्जन कम करने के लिए बेहतर कोयला तकनीक जैसे अल्ट्रा-सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट सुनिश्चित करने की जरूरत है।
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भगवान केशभट, संस्थापक, वातावरण फाउंडेशन
“हमारे पास अभी देशभर का अध्ययन है, जो पहली बार इस सच का सबूत देता है कि मुंबई और पुणे में अत्यधिक प्रदूषित इलाकों में रहने वालों में कोविड-19 संक्रमण का खतरा है। इस अध्ययन से महाराष्ट्र सरकार और आम जनता को आगाह हो जाना चाहिए कि वायु प्रदूषण से सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। ये सच है कि हमलोग कोविड-19 की आने वाली लहरों की बात कर रहे हैं, लेकिन हमें मुंबई और पुणे के लिए क्लीन एयर एक्शन प्लान की नीतियों को लागू करने पर भी काम करने की जरूरत है।”
अशोक ए सिंगरे, सदस्य सचिव, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी)
“कमोबेश हमलोग जानते हैं कि अगर हवा में प्रदूषक तत्व अधिक हों, तो उन क्षेत्रों में हवा जनित बीमारियों की मौजूदगी ज्यादा होती है। चूंकि कोरोनावायरस फेफड़े पर असर डालता है, इसलिए कोविड-19 और वायु प्रदूषण से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में स्पष्ट संबंध होना चाहिए और है। मुंबई और पुणे में परिवहन सेक्टर वायु प्रदूषण का अहम स्रोत है, इसलिए हम बीएस-IV की जगह बीएस-VI को तरजीह दे रहे हैं, लेकिन इसे लागू करने में कमी दिख रही है। इसके लिए अधिक से अधिक जागरूकता फैलाने और आर्थिक पहलू को ध्यान में रखते हुए बीएस-VI को तेजी से अपनाने की जरूरत है।
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डॉ सरोज कुमार साहू
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(यह मीडिया रिलीज ‘सिम्प्लीफाइंग साइंस’ कार्यक्रम के तहत चलाए जा रहे एक परियोजना का हिस्सा है. ‘सिम्प्लीफाइंग साइंस’ कार्यक्रम क्लाइमेट वॉयस द्वारा क्लाइमेट रेजिलिएंट महाराष्ट्र अभियान के अंतर्गत चलाया जा रहा है.
क्लाइमेट वॉइसेस – तीन संगठनों पर्पस, असर और क्लाइमेट ट्रेंड्स का साझा पहल है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के मुद्दों और इसके समाधान की कोशिशें तेज़ करने पर होने वाले संवाद में महाराष्ट्र के आम लोगों को शामिल करना है. पूरे महाराष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर संवाद तेज करने के निरंतर प्रयास में, इस पहल के तहत हमने पूर्व में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर शोध पत्रों को सरल रूप में साझा किया है और आगे भी इस प्रयास को जारी रखेंगे.)