• September 17, 2016

मन की बात -6 : समाज की बिमार मानसिकता :- शैलेश कुमार

मन की बात -6  : समाज की बिमार मानसिकता :- शैलेश कुमार

आजकल सरकार से लेकर आम लोेगों केे बीच एक ही चर्चा है – बेेटी बचाओं – बेटी पढाओं । चर्चा है। अच्छी बातें हैं। समस्याऐं चर्चाओं के माध्यम से ही हल किये जातेेे हैं। जब तक खुली चर्चाऐं नहीं करेेगें तब तक समाधान नहीं होगा। विशेषतौर पर सार्वजनिक समस्याऐं। जिससे एक – दूसरे प्रभावित होते हैैं।
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काॅलेेज के दरम्यान मैं इस सबसे कोई मतलब नहीं रखता था। अर्थात मुझेे समाजिक समस्याओं से कोई लेना देेना नही था। एक दिन काॅलेज की लाईब्रेरी में एक मैगजीन टेेबल पर पड़ा था। वह अंग्रेजी का था। बेचारेे को पूछनेवाला कोई नहीं था। मैने उसे अपने ओर खींचा। एक लेख था – कैब्रिज विश्वविद्यालय नेे सेक्स की पाठयक्रम शुरू की । पढकर उसेे फेंक दिया। फिर चलता बना। अगर काम के कुछ न मिले तो बेकाम का ही छाप दो।

कुछ महिने बाद एक लेख छपा। इंदौर में किसी विद्यालय में सेक्स की पढ़ाई के लिए सरकार ने बढ़ायें कदम। मुझे कुछ बुरा लगा। मैंनेे उसे देेखा तक नहीं। ऐेसे -वेसे लेेख या पत्रिकाओं से मैं दूरी बनाये रखता था। आज भी वैसी ही स्थिति है । फिर एक समाचार छपा। गांव के समीप पुलिया में भ्रूण मिला है।

मुझे कुछ अटपटा सा लगा। आखिर यह भ्रूूण किसी मां की ही होेगी। एक मां ऐसा क्यों किया। लेकिन किसी से मैने चर्चा तक नहीं कि। समाज की इस घटना से जोे खबरें आ रही थी , मैंने उस पर गौर किया। मां की मजबूरियां या इच्छा की कामना, धन की लोलुप्ता या परिवारिक या सामाजिक मजबूरियां।

आज तो समय की सोेच में काफी सुधार हआ है। पहले तो गर्भनिवारण का काम एक विशेष वर्ग के पास था। समय केे अनुुसार वह वर्ग विशेषज्ञ था। गर्भपात भी येे ही वर्ग करवाते थे। समय केे अनुसार बुुद्धि भी विकसित नहीं थी। आज वही काम महिला डाॅक्टर के हवालेे सेे किया जाता है।

लेकिन भ्रूण बेटी है या बेेटा ?

अब मैं आपको स्कंद पुराण में वर्णित कुुछ गतिविधियां उल्लेेख कर रहा हॅू। प्राचीन काल में शोेध विशेषज्ञ हुुआ करते थे। तप या साधना केे बल पर उपचार करते थे। आज की तरह घुस पर पढकर बनने वाले विशेषज्ञ नहीं। साधना और मनोविज्ञान ही आधार था। तपस्वी ही विशेषज्ञ हुआ करते थे। नाड़ी के संपर्क से या फिर नारी की गतिशीलता से ही पता लगा लिया जाता था की यह जननी बेटी या बेटा को जन्म देेनेे जा रही है। तपस्वी के बाद पौराणिक वैैद्य ही विश्लेषण करने में सक्षम थेे। इस पुराण में सब कुछ स्पष्ट है।

एक ऋषि कहते है– पेेट पर हाथ फेर कर पता लगाया जाता था की यह बेटी है या बेेटा। वर्णित है कि – अगर पेट के दाये ओर हलचल हो तो – बेटा और बांये ओेर हलचल हो तो बेटी। इस भ्रूण की भविष्यवाणी भी की जाती थी। आने वाले शिशु क्या होगा ?

पौराणिक बातें चली तोे यह भी स्पष्ट कर देता हॅू की बेटी भ्रूण की सबसे सार्वजनिक तौर पर यदुवंशी सम्राट कंस को अनदेखा नहीं किया जा सकता हैै। कंस के भाग्य रेखा में स्पष्ट था कि देवकी की संतान के हाथों मृत्यु है। लेेकिन संतान बेटी है या बेटा भविष्यवक्ता ने इसकी भविष्यवाणी नहीं की।

राजदरबार की पटरानियोें को इससेे भ्रूण पात का शिकार होेना पड़ता था। किसको गर्भ रखना है किसकोे नही, यह निर्णय प्रमख पटरानी करती थी। हरम में भी यही प्रथा थी। लेकिन यदाकदा ही ये घटनाऐेें हुआ करती।

भ्रूणपात की इतिहास बहुत पुराना है। इस संदर्भ में हम कुंति पुत्र कर्ण को ले सकते है। कबीर की भी यही इतिहास हैै। लेकिन उस समय बेटा या फिर बेटी में अंतर नहीं किया जाता था। पात एक समाजिक प्रतिष्ठा को बचाये रखना था।

———–राजघराने के कुंआरी से यदाकदा ये घटनाऐं होे भी गई तो इसे नदी या जंगल में फेंक दिया जाता था। भ्रूण हत्या की कोई पौराणिक इतिहास नहीं है।———-

अंतर करके भ्रूणपात करने की प्रथा आधुनिक मनोवैज्ञानिक और पारिवारिक दबाव है। इसे बड़े ही सरल तरीकों से गोपनीयता का सहारा लेते हुए आधुनिक उपकरणों से किया जाता है।

प्रत्येक परिवार में यही सोेच है कि लड़की तो परायेधन है और उसकेे विवाह में औकात से ज्यादा खर्च वहन करना सामर्थ्य से बाहर है। निदान यही है कि परिक्षण करवा कर समाप्त कर दें। यह एक मानसिक इलाज है। हैसियत के अनुसार घर -घर में यही सोच है।

इसके संबंध में उॅच्ची दूूकान फीकि पकवान चरितार्थ है। सर पर प्रतिष्ठा की टोपी उॅच्ची तो है लेकिन दिल है बेटी – भ्रूण के कातिल।

हमारे देश में बड़ों से ही सीख ली जाती है। विद्वानों के कथन पर चलें। समाज या घर के बडें का अनुसरण इसलिए करने की सलाह दी जाती है की वेे अनुभवी होते हैं ।

देश में एक रिपोर्ट के अनुसार दो दशक में 1 करोड़ कन्या भ्रूण की ह्त्याऐं की गई है वंही 1,20,00000 कन्याएं पैदा हुई है। महाराष्ट्र के बीड जिला की महिलाये 2000 रूपये देकर गर्भपात करवा रही है।

देश उस समय अचंभित हो उठा जब केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 23 अप्रैल 2015 – पानीपत के जनसभा में खुलासा किया की हरियाणा में 70 ऐसे गांव है जिसमें एक भी लड़की का जन्म नहीं हुआ है।

महेंद्रगढ़ जिला में 1000 लड़को पर सिर्फ 762 लड़कियां है। कुछ गांवों में तो सिर्फ 500 लडकियां है। लिंगानुपात 775-837 के आस पास है। इसका अर्थ है की 150 – 225 गर्भ में ही बालिकाओं की ह्त्या कर दी जाती है।

इस गंभीर समस्याओं के निदान के लिए सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे और अनुसूचित जाति वर्गों के लिए ” कन्या कोष ” के तहत नए प्रसव में कन्या जन्म हेतु 21000 रूपये जमा करने का निर्णय लिया है।

वर्तमान में देश की लिंग अनुपात :-

1000 / 972 (प्रति एक हजार (1000) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, 1901
1000 / 933 (प्रति एक हजार (1000) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, 2001
इस परंपरा के वाहक अशिक्षित व निम्न व मध्यम वर्ग ही नहीं है बल्कि उच्च व शिक्षित समाज भी है।
सबसे समृद्ध राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। 2001 की जनगणना के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या पंजाब में 798, हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 है।

संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट आने के बाद सरकार के कान खड़ें हुुए:-

संयुक्त राष्ट्र ने सावधान किया है कि भारत में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या से जुड़े संकट उत्पन्न कर सकती है। जहां समाज में कम महिलाओं की वजह से सेक्स से जुड़ी हिंसा एवं बाल अत्याचार के साथ-साथ पत्नी की दूसरे के साथ हिस्सेदारी में बढ़ोतरी हो सकती है और फिर यह सामाजिक मूल्यों का पतन कर संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

इस प्रवृत्ति को रोकने के संदर्भ में उठाए गये कदम :-

गुजरात में ’’लड़की बचाओ अभियान’’। इससेे प्रोत्साहित होेकर अन्य राज्यों में भी योजनाएँ चलाई जा रही हैं। पिछले चार दशकों से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1981 में एक हजार बालकों पर 962 बालिकाएँ थी। वर्ष 2001 में यह अनुपात घटकर 927 हो गया।

यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है। वर्तमान समय में इस समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। जीवन बचाने वाली आधुनिक प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग रोकने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। 1

देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने पिछले वर्ष महात्मा गांधी की 138वीं जयंती के मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की बालिका बचाओ योजना (सेव द गर्ल चाइल्ड) को लांच किया था। राष्ट्रपति ने इस बात पर अफसोस जताया था कि लडकियों को लडकों के समान महत्व नहीं मिलता। लडका-लडकी में भेदभाव हमारे जीवनमूल्यों में आई खामियों को दर्शाता है।

प्रगतिशील समाजों में भी लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में संभोग अनुपात में सुधार और कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने एक अनूठी स्कीम तैयार की है। इसके तहत कोख में पल रहे बच्चे का लिंग जांच करवा उसकी हत्या करने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाले को 10 हजार रुपए की नकद इनाम देने की घोषणा की गई है।

प्रत्येक प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को ऐसा सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। प्रसूति पूर्व जांच तकनीक अधिनियम 1994 को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। भ्रूण हत्या को रोकने के लिए राज्य सरकारों को निजी क्लीनिक्स का औचक निरीक्षण व उन पर अगर नजर रखने की जरूरत है। भ्रूण हत्या या परीक्षण करने वालों के क्लीनिक सील किए जाने या जुर्माना किए जाने का प्रावधान की जरूरत है।

इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना तहत पहली कन्या के जन्म के बाद स्थाई परिवार नियोजन अपनाने वाले माता-पिता को 25 हजार रुपए तथा दूसरी कन्या के बाद स्थाई परिवार नियोजन अपनाने माता-पिता को 20 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रदान किए जा रहे हैं। बालिकों पर हो रहे अत्याचार के विरुध्द देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आने की जरूरत है। बालिकाओं के सशक्तिकरण में हर प्रकार का सहयोग देने की जरूरत है।

अगर हम देखें तो सरकार इस संबंध में काफी जागरूक हई है। समाज को जागृत करने केे लिए दंड प्रावधान के साथ ही प्रलोभन प्रावधान की भी व्यवस्था की है। लिंगानुपात में असंतलन को संतुुलन बनाये रखने के लिए सरकार ने पीएनडीटी एक्ट केे तहत सजा का कठोर प्रावधान भी किया है। प्रावधान ही नही बल्कि पकड़ेे जानेे पर अम्ल में भी लाया जाता हैै।

राज्य में पीएनडीटी एक्ट पर सरकार किसी भी कोने से मुलायम नही दिख रहीं है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा औैर हिमाचल प्रदेश मेें एक नियमित दिनचर्या की तरह सरकार सक्रिय है। हरियाणा में भ्रूण हत्यारा या हत्यारेे केे साजिश करनेे वालेे की सूचना देने पर सूचनादार्ती /दाता को एक लाख रूप्ये तक का भी ईनाम है। सरकारी तंत्र के सक्रियता से कई निजी क्लीनिक के साथ सरकारी डाॅक्टरोेें और नर्से गिरफ्तार हुए हैं।

पूर्व में समाज में जागरूकता तो चल ही रही थी लेकिन यह जागरूकता पाॅकेेट जागरूकता थी। आंदोलन का रूप 2014 में लिया है। इस समय लोगों में असीम जागरूकता आई है। कारण यह भी है कि समाज की विषम समस्या कोे हल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी नेे अहम भूमिका में हैं। पूर्व के नियमों को तीव्रता से अमल में लाया गया है साथ ही नये नारे से भी समाज में जागृति आई और महत्व समझते हुए लोेगबाग भी आगे आये हैं भले ही मुुॅह में राम बगल में छुरी क्योें न रखेेें हों। “बेटी बचाओेे और बेेटी पढ़ाओें।”

उपायः-

सरकार इस कानून को प्रभावकारी तरीके से लागू करने में तेजी लाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन किए जिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब्त करने तथा गैर-पंजीकृत क्लीनिकों को दंडित करने के प्रावधान है।

पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण के इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया। कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रा सोनोग्राफी कर सकता है। पंजीकरण शुल्क बढ़ाया गया।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे अधिनियम को मजबूती से कार्यान्वित करें और गैर-कानूनी तरीके से लिंग का पता लगाने के तरीके रोकने के लिए कदम उठाएं।

सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे लिंग अनुपात की प्रवृति को उलट दें और शिक्षा और अधिकारिता पर जोर देकर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृत्ति पर रोक लगाएं।

स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कहा है कि वे इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें।

पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।

वेबसाइटों पर लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया।

राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रा साउंड निदान सुविधाओं के निरीक्षण में तेजी लाई गई। बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया जा रहा है ।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना, शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता दे रही है।

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राज्यों को सलाह दी गई है कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिलों/ ब्लाकों / गांवों पर विशेष ध्यान दें, उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तैयार करे और पीसी और पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावकारी तरीके से लागू करे।
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धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल हैं।

अब हम समाज की मानसिकता की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। कानून बनाकर भी सरकार इस पर नियंत्रण करने में पूर्णरूपेेण सफल नही हो पा रही हैै क्यों?

कहीं न कहीं इसके लिए समाजिक की बिमार मानसिकता उत्तरदायी है। वह है बेटी ब्याहने की समस्या। माॅ- बाप पाल – पोस लेते है। लेकिन उनकी मानसिकता हमेशा ब्याह के निराकरण में व्यतीत होता है। जैसे – तैसेे वे अपनेे माॅ- पिता का कर्तव्य का पालन करते हैं । लेकिन जब ब्याह की बारी आती है तो वेे हतोत्साह हो जाते हैै।

इस परिस्थिति के लिए लड़केवाले की दोहरी मानसिकता जिम्मेदार हैै। जब तक वह लड़का वाला होता हैै । लड़कीवालों सेे पाई -पाई चूसना चाहता है, पैसेहीन लड़की वाले को वेे तुच्छ समझते हैै। जहाॅ उनको मोट रकम मिला या मोटा- तगडा़ सम्मान मिला, लड़के कोे ब्याह लेते हैै। लेकिन जब उसेे अपनेे लड़की की बारी आती है तो दहेज की बुुराई करने लग जाते हैै। क्यों !

ऐसी चतुराई क्यों ! उसका लड़का-लड़का है और दूसरे माॅ-बाप के लड़के पानी में बह कर आया है क्या? समाज में यह भी धारणा व्याप्त है कि जिसके पास धन है वह तो अपने बेटी पर खर्च करेगा और बेटा पर वसूलेगा। इसी कारण समाज में लड़की वाला भयभीत हैै और इसके निराकरण वे भ्रूण हत्याकर कर लेते हैै।

आदर्श के रूप में देखेे जाने वाले विधायक या सांसद या मंत्री को लें । जिसे हम समाज सुुधारक के रूप मेें देखते है । वहाॅ की वैवाहिक प्रथा को देेखिये। समाज की मानसिकता यही बदल जाती हैैै। लोगबाग अपनेे – अपने सोच के अनुसार आगेे बढ़ते हैं।

धर्म के लिए लड़ते तो है लेकिन धर्म क्या कहता है , उसका पालन नहीं करते है। मर्यादा पुरूषोेत्तम राम राजकुमार थे। उन्होंने राजकुुमारी सीता से विवाह किया। जनक के सभी बेेटियों की शादी राजा दशरथ के पुत्रों केे साथ हुआ। इस आदर्श को वर्तमान के राजा क्यों नही अपना रहें है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकार की तरह अन्य राज्यों की सरकार ’’स्वयंवर’’ का कदम क्यों नहीं उठा रही है। इस स्वयंवर की खर्च वहाॅ की सरकार स्वंय उठाती हैै। भ्रूण हत्या रोकने के लिए यह भी एक कारगर कदम है।

अगर सरकार के सार्थक प्रयास कहीं असफल हो रही है तो इसके लिए उपरोक्त दोहरी मानसिकता जिम्मेेदार है।

इस संदर्भ में हरियाणा सरकार की सराहनीय कदम है। वर्तमान की सरकार ने अपने पड़ोसी राज्योें को भी भ्रूण हत्या रोकनेे के लिए पत्र लिखा है:- ’’ मुझे भरोसा है कि राज्य सरकारों के ठोस और समन्वित प्रयासों से हजारों लड़कियों का जीवन बचाने में मदद मिलेगी। ’’समाज में बेटे की गहन इच्छा, लिंग का पता लगाने वाले असामाजिक तत्वों और भ्रूण हत्या के चलते राज्य में लिंग अनुपात में गिरावट आयी। पत्र में भ्रूण हत्या रोकने के लिए अपनायी जाने वाली रणनीति वर्णित है।

मुख्यमंत्री ने लिखा है कि ’’ प्री..कॉन्सेप्शन ऐंड प्री..नेटल डायग्नोज्टिक टेक्नीक (पीएनडीटी) कानून और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) कानून को हरियाणा के सभी जिलों में उपायुक्तों के कुशल नेतृत्व में सरकार के सभी इकाइयों के समन्वित प्रयासों के साथ कड़ाई से लागू किया गया है। इन इकाइयों में पुलिस, स्वास्थ्य, खाद्य और दवा प्रशासन, अभियोजन, शामिल हैं।

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