• October 26, 2020

मछली के माध्यम से पेट में प्लास्टिक कण — शैलेश कुमार

मछली के माध्यम से पेट में प्लास्टिक कण  — शैलेश कुमार

*** प्लास्टिक एक जहर ***

प्लास्टिक पर संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने दिल्ली सरकार फटकार लगाई। न्यायधिश ने कहा जब प्लास्टिक पर प्रतिबंध है तो क्या कारण है कि आप सख्ती से लागू नही करवा रहे है।

प्लास्टिक के संबंध में कुछ विदेशीयों राय –
समुद्र में तेजी से प्लास्टिक कचरा जमा होने के कारण ब्रिटेन,अमेंरिका,फ्रांस,मलेशिया,और चीन के बाजारों में उपलब्ध समुद्री नमक में प्लास्टिक के सुक्ष्म कण पाये गयें है।

यूरोपीय तटवर्ती देशों में मछलियों के पेट में प्लास्टिक अंश है। शोध कर्ता का मानना है कि इसके लिए माइक्रो फाईबर, पानी की प्लास्टिक उत्तरदायी है। जापान और दझिण एशिया के देशों की मछलियों के पेट में माइक्रो प्लास्टिक पाया गया है।

टोक्यों विश्व विश्वविद्यालय ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेकन्नोलाजी के प्रोफेसर हीदेशिगें तकादा के अनुसार – जब हम मछली खाते हैं तो संभंव है की हम प्लास्टिक भी खाते हैं । आगे कहते हैं कि ’’ मुझें टोक्यों की खाड़ी की 80 % मछलियों के पेट में माइक्रो प्लास्टिक मिली है।

फलोरिडा स्थित स्टेट यूनिवर्सिटी आफ न्यूयार्क के प्रोफेसर शेरी मेंशन कहती है- प्लास्टिक हमारे समाज में व्यापक रूप से मौजूद ,इसे यदि यूं कहा जाय कि यह अब हमारे समाज में रच -बस गया है तो कुछ गलत नही होगा। यह सर्व व्यापी है – हवा पानी समुद्र, भोजन ,बीयर से लेकर नमक तक अपनी पहुंच बना चुका है। नतीजतन अमेरिका के लोग हर साल 660 से ज्यादा प्लास्टिक कण निगल रहा है

**** माइक्रो प्लास्टिक क्या है —***

प्लास्टिक की थैली,बोतल,ढ़ॅक्कन के जल प्रवाह और पराबैंगनी किरणों के टूटने तथा कासमेटिक एंव टूथपेस्ट में इस्तेमाल किये जाने वाले माइक्रोंबीडस के कारण होता है।

वे कहते है कि भविष्य में आर्कटिक सागर में मछलियों के बदलें प्लास्टिक होगा वर्तमान में सागरों में 100 से 1200 टन प्लास्टिक के कचरें आँकी गई है।
जार्जिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेना जैम बैक का कहना है — अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नही होता है। यह वह अहम वजह है कि आज पैदा किया गया प्लास्टिक कचरा हजारें वर्ष तक बना रहता है जो हमारे जीवन और पर्यावरण से खिलवाड़ करता रहेगा जिसकी भरपाई असंभव है। ऐसे में हमें इसके उत्पादन और निस्तारण को लेकर गंभीरतापूर्वक विचार किये
जाने की बेहद जरूरत है।

प्लास्टिक को गर्म करने पर वह पीघलता है इसके बाद जो धुआॅं निकलता है उससे कार्बन उत्सर्जित होता है। यही ग्लोबल वार्मिंग का कारण है।

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विश्व मे कचरा फैलाने वाला देश :— लाख मीट्रिक टन —-
चीन — 88 ,इन्डोनेशिया – 32 , फिलीपींस —19 , वियतनाम – 18 , श्रीलंका — 16 , मिस्र – 10, थाइलैंड – 10, मलेशिया – 9, नाइजेरिया – 9, बांग्लादेश 8, अमेरिका – 3
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बोतल में बन्द होता पानी

1. 10 लाख प्रति मिनट खरीदी जाने वाली पानी की बोतलें या 20 हजार प्रति सेकेंड बिकने वाली बोतलें

2. 50 प्रतिशत बोतलें जिन्हें रिसाइकिल करने के लिये एकत्र किया जाता है।

3. 480 अरब 2016 में बिकी कुल पानी की बोतलें

4. 110 अरब 2016 में बिकी कुल बोतलों में कोकाकोला द्वारा निर्मित

5. 7 प्रतिशत वे बोतलें जिनसे नई बोतलें बनाई जाती हैं

नलों के पानी में मौजूद प्लास्टिक — दुनिया भर के लोग नलों से आ रहे पानी के साथ प्लास्टिक के सूक्ष्म कण (प्लास्टिक फाइबर) पी रहे हैं। पाँच महाद्वीपों के 12 से ज्यादा देशों के पानी के नमूनों में से 83 प्रतिशत में प्लास्टिक के कण मिले हैं।

प्लास्टिक से सड़क — – झारखण्ड के जमशेदपुर में कूड़े से बीने गए प्लास्टिक से सड़क बनाई जा रही है। टाटा स्टील के लिये नागरिक सुविधा मुहैया कराने वाली कम्पनी जुस्को (जमशेदपुर यूटिलिटीज एंड सर्विसेज कम्पनी लिमिटेड) ने बर्मामाइंस में एक प्रोसेसिंग प्लांट बनाया है, जहाँ कोलतार में 10 फीसद प्लास्टिक मिलाया जाता है। इस अलकतरा से बनी सड़क की मजबूती बढ़ जाती है। प्लास्टिक का मिश्रण अलकतरा को आपस में बाँधे रखता है, जिससे सड़क जल्दी नहीं टूटती।

कपड़े के थैले

छत्तीसगढ़ रायपुर की शुभांगी आप्टे अपने हाथों से कपड़े के थैले बनाकर स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं के आयोजनों, महिला समितियों और अन्य जगहों पर निःशुल्क बाँटकर प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल न करने का सन्देश दे रही हैं।

उत्तर प्रदेश – जल, जंगल, जमीन में जहर घोल रहे पॉलिथीन के खतरनाक रसायन का तोड़ बरेली में ढूँढा गया है। रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रमेंद्र कुमार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ के डॉ. ज्योति पांडेय ने कुदरती सिंथेटिक पॉलीमर से नष्ट होने लायक (बायो डिग्रेडेबल) पॉलिथीन तैयार की है। पर्यावरण को इससे कोई नुकसान नहीं है। बेहद आसानी से यह बनती है और जल्दी गल जाती है। इस बायो-डिग्रेडेबल पॉलिथीन को मिट्टी में दबाने पर महीने भर में यह पूरी तरह नष्ट हो गई।

एनबीएआईएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश की मऊ जनपद के कुशमौर में स्थापित आईसीएआर के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवी ब्यूरो (एनबीएआईएम) व राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान परिसर में कोई प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करता। इसका श्रेय जाता है एनबीएआईएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव को। दो साल पहले डॉ. आलोक ने ब्यूरो परिसर में प्लास्टिक वेस्टेज मैनेजमेंट की शुरुआत की। परिसर के परिवार में कपड़े के झोलों का वितरण कराया।

प्लास्टिक बैग रिसाइकिल कर बचा रहे पर्यावरण

पंजाब – जालंधर के कमल अग्रवाल ने पढ़ाई खत्म करने के बाद डायनमो बैटरी का बिजनेस शुरू किया। बैटरी की प्लेट बनाने के लिये वे बाजार से प्लास्टिक दाना खरीद कर लाते थे। जब उन्होंने देखा कि प्लास्टिक कचरा खाने से गाएँ अपनी जान गवाँ रही हैं तो उन्होंने प्लास्टिक दाना बाजार से खरीदने के बजाय प्लास्टिक कचरे को गलाकर प्लास्टिक दाना बनाने की सोची। उन्होंने प्लास्टिक दाना बनाने की यूनिट लगाई। दुकानदारों, फैक्टरियों व चिकित्सकों से आग्रह किया कि वे इस्तेमाल किये गए प्लास्टिक बैग कूड़े में फेंकने की बजाय उन्हें बेंच दें।

कुल्हड़ व दोना-पत्तल से दे रहे प्लास्टिक को चुनौती

हरियाणा – प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये फरीदाबाद की एक संस्था धरती माँ ट्रस्ट प्लास्टिक और थर्माकोल से बनी प्लेट व गिलास के विकल्प के तौर पर मिट्टी के कुल्हड़ और ढाक के पत्तों से बने दोने और पत्तल तैयार कर रही है। इस संस्था के संस्थापक बीएस बिष्ट पतझड़ के दिनों में शहर के विभिन्न इलाकों से ढाक के गिरे हुए पत्ते एकत्र करते हैं। बाद में इनसे पत्तल तथा दोने बनाते हैं। साथ ही मिट्टी के कुल्हड़ और पत्तल को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं।

ग्रीन वॉरियर्स– राहुल देवेश्वर

नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का आगाज किया, तो अगले दिन 3 अक्टूबर को पंजाबी फिल्मों में पटकथा लेखक व दिल्ली निवासी राहुल देवेश्वर ने अपने कुछ दोस्तों के साथ बद्रीनाथ के नजदीक माणा ने ऋषिकेश तक प्लास्टिक के खिलाफ पैदल यात्रा की शुरुआत की।

45 दिनों में 450 किमी की यात्रा के दौरान वह ग्राम पंचायत, जिला प्रशासन समेत अन्य वर्गों से मिले। इस दौरान उन्हें फैजाबाद और अयोध्या से बुलावा आया। जनवरी 2015 से सितम्बर 2017 के बीच उनके अभियान से अकेले फैजाबाद से रोजाना 2.5 टन प्लास्टिक व अन्य वेस्ट सामान खुले में फेंकने की जगह इकट्ठा होने लगा।

** स्ट्रेलियन प्लास्टिक बैग।

** कैनवस बैग ।

** कॉटन बैग।

**एको फ्रैंडेली बैग — सब्जी के अवशिष्ट से बने थैले ।
प्लास्टिक बैग से 35 से 40 % महंगा है ।

** मंगलोर के कंपनी — एनवी ग्रीन बैग का निर्माता ।

** डेनिम बैग — पुराने जींस के कपड़े से बने थैले।

** आरहना एको सोसियल डेव्लपमेंट कंपनी — पुराने बैग को रिसाइकल कर फैशनेबल बैग।

** जुटे बैग ।

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