• December 1, 2015

भूल जाओ सारे कर्मकाण्ड त्याग दो धर्म-ध्यान – डॉ. दीपक आचार्य

भूल जाओ सारे कर्मकाण्ड त्याग दो धर्म-ध्यान – डॉ. दीपक आचार्य

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ज्यों-ज्यों हम आधुनिकताओं को प्राप्त करते जा रहे हैं, त्यों-त्यों हमें भगवान से कुछ पाने की उम्मीदें कम होती जा रही हैं। हमारे लिए अब संसार में सभी प्रकार का भोग-विलास सहज उपलब्ध हैं। सब कुछ हमारे आस-पास ही है।

1यहाँ तक कि भगवान की प्रसन्नता पाने के लिए भी अब हमें कुछ नहीं करना पड़ता। सारा कुछ तो हमारे इर्द-गिर्द है जो हमें सुकून देने के लिए ही तो हो रहा है। हाल के वर्षों में भगवान से हमारा रिश्ता बहुत करीब का हो गया है। पहले जहां मन्दिर जाने और अपने शरीर की ऊर्जाओं का इस्तेमाल करते हुए पूजा-पाठ व उपासना के नाम पर बहुत कुछ करने की जरूरत पड़ती थी, रोज सवेरे जल्दी उठकर नहा धोकर मन्दिर जाने की मजबूरी थी, भगवान के दूतों ने इसे समाप्त कर हमें इतनी अधिक सहूलियत दे डाली है कि हम कभी उऋण नहीं हो सकते।

हम धर्म के नाम पर हो रहे नवाचारों को देखें तो आश्चर्य होगा साधना अब कितनी सरल और सहज हो गई है, जहां हमें कुछ भी नहीं करना है। बस अपने आँख और कान हमेशा खुले रखो और वो देखते-सुनते जाओ, जो दिखाया-सुनाया जा रहा है।

जिन लोगों के घर के आस-पास मन्दिर हैं उन सभी लोगों को न तो संध्या-गायत्री, जप-तप, पूजा-पाठ करने की आवश्यकता है, और न ही धरम के नाम पर दूसरा सब। भगवान ने प्रसन्न होकर हमें वरदान दे रखा है और हम हैं कि भगवान की कृपा को स्वीकार करने से कतरा रहे हैं।

अपने आस-पास के मन्दिरों में बजने वाले धार्मिक मंत्र, श्लोकों, स्तुतियों और भजनों को सुनते रहें। इसके लिए भगवान ने अपने सिद्ध भक्तों और पुजारियों के माध्यम से कितनी अच्छी व्यवस्था कर रखी है।  बड़े सवेरे से ही माईक शुरू हो जाते हैं और पावन धार्मिक स्वर लहरियां अपने आप पूरे क्षेत्र में गूंज उठती हैं। और वह भी कोई पांच-दस मिनट नहीं, घण्टों तक। कई मन्दिरों में तो दिन-रात मंत्र गूंजते रहते हैं। घर बैठे धरम-ध्यान की यह व्यवस्था शाम को भी हम सभी सहिष्णु लोगों के लिए सहज उपलब्ध है।

घरों में बैठे,  लेटे अथवा काम-काज करते हुए भी मन्दिरों के माईक से निकले मंत्र, श्लोक और स्तुतियां तथा भजनों का आनंद पाना हमारी जिम्मेदारी है। हम कहीं भी हों,बैडरूम, डाइनिंग रूम, हॉल, बरामदों और  तमाम कक्षों से लेकर बाथरूम्स और शौचालयों तक आप आसानी से सुन सकें, इसकी व्यवस्था मन्दिर वालों ने कर रखी है। आवाज भी इतनी तेज कि घर का हर कोना गूंजता रहे मंत्रों, स्तुतियों और भजनों से।

बेचारे मन्दिर वाले पुजारी और भगवान से सीधा संंबंध रखने वाले सिद्ध भक्तों ने हमारे लिए कहां कोई कमी रख छोड़ी है। इतनी सर्दी में बड़े सवेरे मन्दिर खोलते ही माईक का बटन ऑन कर देते हैं, घण्टों तक तेज आवाजों में हमें पावन भजन, मंत्र और स्तुतियां सुनाते रहते हैं। भगवान भी खुश रहने लगे हैं अपने भक्तों की इस अगाध श्रद्धा को देख-सुन कर।

अच्छा यही है कि जो मंत्र, स्तुतियां, श्लोक और भजन सुनाई दे रहे हैं, उन्हीं को गुनगुनाते रहें, ताकि धर्म का पूरा-पूरा लाभ पा सकें। भगवान की कृपा ही है कि हमें ईश्वर से सीधा संबंध रखने वाले सिद्ध भक्त और पुजारी मिले हैं जिनके कारण से रोजाना हम कई घण्टे माईक का श्रवण कर पा रहे हैं। ये लोग न होते तो हमें यह पावन सुअवसर कैसे प्राप्त हो पाता।

यों भी हम कितना ही चाह लें, सिद्ध भक्तों की कृपा से चल रहे दिव्य और दैवीय भौंपूओं से निकलने वाली तेज स्वर लहरियों की गूंज ही इतनी अधिक होती है कि सवेरे न तो संध्यावंदन व ध्यान कर सकते हैं, न ही और कोई पूजा-पाठ।

और करने की जरूरत भी क्यों हो, जब धर्म के इन ए-क्लास ठेकेदारों और भगवान के समीप रहकर रोजाना साक्षात्कार करने वाले सिद्ध भक्तों और पुजारियों ने हम सभी के लिए इतनी अच्छी व्यवस्था कर दी है। न मुँह हिलाने की जरूरत, न आरती उतारने की झंझट। शरीर की ऊर्जा में कोई खपत नहीं और सब कुछ अपने आप यंत्रवत चलता रहता है।

मन्दिरों के पास रहकर भी खुद को पूजा-पाठ और ध्यान करने पड़ें तो फिर मन्दिरों में रहने वाले भगवान, उनके सिद्ध भक्त और ये पुजारी पड़ोसी धर्म कब निभाएंगे।  माईक के जरिये धर्म प्रभावना में लगे हुए सभी महान भक्तों और पुजारियों को भगवान लम्बी आयु दे ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी हमारी तरह पूजा-पाठ, संध्या-वन्दन, जप-तप और ध्यान आदि में अपना टाईम वेस्ट नहीं करना पड़े।

उन घरों को भी मन्दिर ही मानना चाहिए जिनके मालिक सवेरे-शाम घर में स्टीरियो, टेप रिकार्डर आदि चलाकर भगवान को खुश करने का जतन करते हैं। पड़ोसियों को इनसे न तो चिढ़ करनी चाहिए, न घृणा का भाव लाना चाहिए।

ये लोग हमारे कल्याण के लिए पैदा हुए हैं, हमें जबरन भजन-स्तुतियां, मंत्र, श्लोक आदि सुनाकर हमारे भीतर की सुप्त पड़ी धर्मप्रभावना को जगाना चाहते हैं। ये लोग भी किसी चमत्कारिक सिद्ध से कम नहीं हैं। इन्हें कुछ न कहें, जो कुछ करें, जो कुछ सुनाएं स्वीकार करते रहें।

ऎसे सिद्धों का पड़ोस और सान्निध्य भाग्य और भगवान की कृपा से ही प्राप्त होता है। इस मामले में वे विद्वान कर्मकाण्डी पण्डित भी हमारे लिए पूज्य हैं जिन्हें भगवान से कहीं अधिक माईक की आवश्यकता पड़ती है। नवचण्डी हो या रूद्राभिषेक, अष्टमी हो या प्रदोष की पूजा, या कोई सा अनुष्ठान हो, माईक-भौंपू षोडशोपचार और राजोपचारों में सबसे पहले नंबर पर आता है।

यह इन पण्डितों की हम पर अतीव कृपा ही है कि वे इस माध्यम से हमें वैदिक ऋचाओं और पौराणिक मंत्र-श्लोकों तथा स्तुतियों के श्रवण का लाभ दे रहे हैं। इनकी कृपा से माईक से उच्चारित दिव्य वाणी पूरे ब्रह्माण्ड को पावन करती है और उन लोगों को भी धर्म से जोड़ने का जबरन माध्यम बनती है जो इनसे दूर हैं। फिर माईक से अखण्ड रामायण पारायण का भी अपना अलग ही महत्व है। बाबा लोग भी माईक के कद्रदान हो गए हैं।

इन सभी स्थितियों में जमाने के अनुसार अपने आपको ढालें, आजकल निजता, एकान्त और शांति कुछ भी नहीं है, जो कुछ हो रहा है वह सामूहिकता के भाव से हो रहा है। कोई चाहते हुए भी एकान्त प्राप्त नहीं कर पा रहा, इसलिए एकान्त की इच्छा करने, पूजा-पाठ और धर्म ध्यान में समय गँवाने से अच्छा है कि जो आस-पास हो रहा है उसी में रम जाएं, उसी का आनंद लें, अपने आप भवसागर से तर जाएंगे।

माईक से की गई भक्ति ही फल देती है, बिना माईक की भक्ति का आजकल कोई अर्थ नहीं है। पण्डों-पुजारियों के इस सत्य को जो स्वीकार कर लेता है वही इंसान भगवान की कृपा पाकर आम से खास हो सकता है।  कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले वर्षो में जगह-जगह माईक देवता के मन्दिर न बन जाएं।

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