- April 28, 2021
भारत का सिकुड़ता मध्यम वर्ग — डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कोरोना की महामारी के दूसरे हमले का असर इंतना तेज है कि लाखों मजदूर अपने गांवों की तरफ दुबारा भागने को मजबूर हो रहे हैं। खाने-पीने के सामान और दवा-विक्रेताओं के अलावा सभी व्यापारी भी परेशान हैं। उनके काम-धंधे चौपट हो रहे हैं। इस दौर में नेता और डाॅक्टर लोग ही ज़रा ज्यादा व्यस्त दिखाई पड़ते हैं। बाकी सभी क्षेत्रों में सुस्ती का माहौल बना हुआ है।
पिछले साल करीब दस करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे। उस समय सरकार ने गरीबों का खाना-पीना चलता रहे, उस लायक मदद जरुर की थी लेकिन यूरोपीय सरकारों की तरह उसने आम आदमी की आमदनी का 80 प्रतिशत भार खुद पर नहीं उठाया था।
अब विश्व बैंक के आंकड़ों के आधार पर ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ का कहना है कि महामारी के कारण भारत की अर्थ-व्यवस्था में इतनी गिरावट हो गई है कि भारत के गरीबों की बात जाने दें, जिसे हम मध्यम वर्ग कहते हैं, उसकी संख्या लगभग 10 करोड़ से घटकर करीब 7 करोड़ रह गई है। तीन करोड़ तीस लाख लोग मध्यम वर्ग से फिसलकर निम्न वर्ग में चले गए हैं। मध्यम वर्ग के परिवारों का दैनिक खर्च 750 रुपए से 3750 रु. तक का होता है।
यह आंकड़ा ही अपने आप में काफी दुखी करनेवाला है। यदि भारत का मध्यम वर्ग 10 करोड़ का है तो गरीब वर्ग कितने करोड़ का है ? यदि यह मान लें कि उच्च मध्यम वर्ग और उच्च आय वर्ग में 5 करोड़ लोग हैं या 10 करोड़ भी हैं तो नतीजा क्या निकलता है? क्या यह नहीं कि भारत के 100 करोड़ से भी ज्यादा लोग गरीब वर्ग में आ गए हैं ?
भारत में आयकर भरनेवाले कितने लोग हैं ? पांच-छह करोड़ भी नहीं याने सवा सौ करोड़ लोगों के पास भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन के न्यूनतम साधन भी नहीं हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि आजादी के बाद भारत ने कोई उन्नति नहीं की। उन्नति तो उसने की है लेकिन उसकी गति बहुत धीमी रही है और उसका फायदा बहुत कम लोगों तक सीमित रहा है। चीन भारत से काफी पीछे था लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था आज भारत से पांच गुना बड़ी है।
कोरोना फैलाने के लिए वह सारी दुनिया में बदनाम हुआ है लेकिन उसकी आर्थिक प्रगति इस दौरान भी भारत से कहीं ज्यादा है। अन्य महाशक्तियों के मुकाबले कोरोना का काबू करने में वह ज्यादा सफल हुआ है। भारत का दुर्भाग्य है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलवाने के बावजूद दिमागी तौर पर वह आज भी अंग्रेजों का गुलाम बना हुआ है। उसकी भाषा, उसकी शिक्षा, उसकी चिकित्सा, उसका कानून, उसकी जीवन-पद्धति और उसकी शासन-प्रणाली में भी उसका नकलचीपना आज तक जीवित है। मौलिकता के अभाव में भारत न तो कोरोना की महामारी से जमकर लड़ पा रहा है और न ही वह संपन्न महाशक्ति बन पा रहा है।