• March 10, 2022

भारत अगर चाहे तो हल हो सकता है यूक्रेन — संकट डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत अगर चाहे तो हल हो सकता है यूक्रेन — संकट डॉ. वेदप्रताप वैदिक

मुझे खुशी है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों— व्लादिमीर पूतिन और वेलोदीमीर झेलेंस्की से बात की और दोनों को संवाद के लिए प्रेरित किया। यही काम वे यदि एक डेढ़-माह पहले शुरु कर देते तो शायद यूक्रेनी-संकट टल जाता लेकिन यह देर आयद, दुरुस्त आयद है। अब वे पांच राज्यों के चुनावी झंझट से मुक्त हो चुके हैं। वे चाहें तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से भी सीधी बात कर सकते हैं। यूक्रेनी संकट की असली जड़ अमेरिका में ही है। यदि अमेरिका यूक्रेनी राष्ट्रपति झेलेंस्की को नाटो में शामिल होने के लिए नहीं उकसाता तो यूक्रेन पर इस रूसी हमले की नौबत ही क्यों आती?
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कल ही अपने बयान में कहा है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस अपनी सैन्य-कार्रवाई एक क्षण में ही बंद करने के लिए तैयार है, बशर्ते कि वह मास्को की मांगों पर ध्यान दे। मास्को ने मांग की है कि यूक्रेन तटस्थ रहने की घोषणा करे याने नाटो के सैन्य गुट में शामिल न होने की घोषणा करे, क्रीमिया को रूसी क्षेत्र घोषित करे और दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र राष्ट्रों की मान्यता दे। पेस्कोव ने यह भी स्पष्ट किया कि रूस नहीं चाहता कि वह यूक्रेन को अपना प्रांत बना ले या कीव पर कब्जा कर ले। पिछले डेढ़ हफ्ते में रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जो कुछ भी किया, उसे वह युद्ध नहीं, सिर्फ सैन्य कार्रवाई कह रहा है। इसीलिए मारे जानेवाले लोगों की संख्या सैकड़ों में है, हजारों-लाखों में नहीं। लगभग 20 लाख यूक्रेनी भागकर पड़ौसी देशों में चले गए हैं और वे तथा भारतीय छात्र भी सुरक्षित बाहर निकल सकें, इस दृष्टि से रूस ने कल चार ‘सुरक्षित गलियारों’ की घोषणा की थी लेकिन यूक्रेन ने इसे शुद्ध पाखंड बताया है।
यूक्रेन की सरकार ने रूस के खिलाफ हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी याचिका लगाई है लेकिन रूस ने अदालती कार्रवाई का बहिष्कार कर दिया है। यह अदालत फैसला तो कुछ भी दे सकती है लेकिन उसे लागू करने की शक्ति किसी भी संस्था के पास नहीं है। यदि यह हमला जारी रहा और कीव पर रूस का कब्जा हो गया तो झेलेंस्की अपनी निर्वासित सरकार कार्पेथिया नामक स्थल से चलाएंगे। यह नाटो राष्ट्रों के निकट पहाड़ों में स्थित राजमहल है। यदि रूसी हमले में झेलेंस्की मारे गए तो यूक्रेनी संसद के अध्यक्ष रूसलान स्टीफनचुक निर्वासित सरकार के मुखिया होंगे।
वैसे तो रूस और यूक्रेन के अधिकारी तीसरी बात बातचीत के लिए मिल रहे हैं लेकिन अभी तक यह पता नहीं है कि उनकी बातचीत के खास मुद्दे क्या हैं? दोनों पक्षों ने अपने पत्ते छुपा रखे हैं। यूक्रेन को पता चल गया है कि अमेरिका और नाटो राष्ट्रों ने उसे पानी पर चढ़ाकर अपना मुंह फेर लिया है। मामूली हथियार उसे देकर और रूस पर खोखले प्रतिबंध थोपकर उन्होंने यूक्रेन को विनाश के मुंह में ढकेल दिया है। अब भी यूक्रेन के नेता और लोग बड़ी हिम्मत से रूसी हमले का मुकाबला कर रहे हैं लेकिन उन्हें पता है कि यदि यह हमला लंबा खिंच गया तो यूक्रेन की बधिया बैठे बिना नहीं रहेगी। ऐसी हालत में यह सही होगा कि झेलेंस्की यूक्रेन की तटस्थता की घोषणा तो कर ही दें। ऐसा करके वे यूक्रेन के दरवाजे रूस और अमेरिका दोनों के लिए खुले रख सकते हैं। दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र राष्ट्रों की तरह मान्य करने की बजाय वह वैसा ही करें, जैसा कि 2014 में यूक्रेन ने क्रीमिया पर किया था। क्रीमिया पर से रूसी कब्जा हटाने की कोशिश उसने नहीं की और उस कब्जे को मान्यता भी नहीं दी।
अभी तक बेलारूस में दोनों देशों के अफसर आपस में बात करते रहे हैं लेकिन अब खबर यह है कि तुर्की में रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव और यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा अगले तीन-चार दिन में ही मिलनेवाले हैं। तुर्की नाटो का सदस्य है लेकिन रूस और यूक्रेन, दोनों से उसके घनिष्ट संबंध हैं। इन दोनों देशों की सीमाएं काले समुद्र की वजह से तुर्की से भी जुड़ती हैं। तुर्की ने रूसी हमले को अनुचित बताया है लेकिन उसने रूस के विरुद्ध घोषित प्रतिबंधों का भी विरोध किया है। भारत चाहे तो इस शांति-संवाद में तुर्की से भी आगे निकल सकता है। वह नई दिल्ली में अमेरिकी, रूसी और यूक्रेनी विदेश मंत्रियों के बीच संवाद करवा सकता है।
यूक्रेन-विवाद पर जब भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मतदान हुआ, भारत सदा तटस्थ रहा। उसने न तो रूस का पक्ष लिया और न ही यूक्रेन या अमेरिका का! भारत के लगभग 20 हजार छात्रों और नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकाल लाने के भारी काम में यूक्रेन और रूस दोनों ने हमारी मदद की। भारत सरकार ने इस मामले में देर से ही सही लेकिन बड़ी मुस्तैदी से सराहनीय काम करके दिखाया। यदि भारत इस युद्ध को तुरंत रुकवा सके तो रूस और यूक्रेन को ही नहीं, सारे विश्व को वह कई आर्थिक संकटों से बचा ले सकता है। यदि यूरोपीय देशों को होनेवाली रूसी तेल और गैस की आपूर्ति बंद हो जाए तो उनके होश फाख्ता हो जाएंगे। इसीलिए इन देशों ने अभी तक रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। पिछले 12-13 दिनों में कच्चा तेल 44 प्रतिशत मंहगा हो गया है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में पेट्रोल के दाम सौ-सवा सौ रु. प्रति लीटर तक बढ़ जाएं। उसका असर हर चीज़ की बढ़ती कीमतों में दिखाई देगा। सोना, चांदी और डाॅलर की कीमतें बढ़ती चली जा रही हैं।
यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी नए समीकरणों का विकास हो रहा है। तीन दशक पुराने शीत युद्ध की नरम शुरुआत तो हो ही चुकी है। अब एक तरफ अमेरिकी खेमा होगा और दूसरी तरफ चीनी-रूसी खेमा। इस दूसरे खेमे का नेतृत्व अब रूस नहीं, चीन करेगा। इसीलिए चीन अपना हर कदम फूंक-फूंककर रख रहा है। उसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की तरह अपने आप को तटस्थ दिखाने की कोशिश की है। वह अब रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता की भी पहल करने लगा है। इस पहल पर अमेरिका पूरी तरह सशंकित रहेगा लेकिन भारत इस समय रूस और अमेरिका दोनों का प्रेमपात्र है। भारत चाहे तो यूक्रेन को वर्तमान संकट से उबार सकता है।

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