भानुमती का कुनबा भी नहीं कर सका नैया पार—— सज्जाद हैदर

भानुमती का कुनबा भी नहीं कर सका नैया पार—— सज्जाद हैदर

वाह रे राजनीति तेरे रूप हजार यह सत्य है। क्योंकि, 2019 के चुनाव का परिणाम जो देश की जनता के सामने आया है वह सभी विपक्षी पार्टियों के लिए अब अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। क्योंकि, इसबार के लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने अनेकों प्रकार के प्रयोग किए हैं। जो कि, संभवतः देश की राजनीति में अबतक कभी भी प्रयोग नहीं किए गए।

इसबार का चुनाव अत्यंत जटिल एवं गंभीर चुनाव था। यह चुनाव भाजपा के लिए जहाँ अपने किए हुए कार्यों एवं योजनाओं तथा भ्रष्टाचार मुक्त भारत जैसे तमाम अभियानों का फल जनता बीच प्राप्त करने का अवसर था।

वहीं विपक्षी पार्टियों के लिए राफेल, नोटबंदी, कालाधन वापसी एवं बैंक घोटाले बाजों को सरकार द्वारा संरक्षण जैसे गंभीर आरोपों को जनता के बीच विपक्ष बड़ी मजबूती के साथ सिद्ध करने का भरसक प्रयास करता रहा है। विपक्ष के द्वारा अनेकों प्रकार के आरोप भाजपा सरकार पर लगाए जाते रहे जिसका सरकार लगातार खण्डन करती रही।

विपक्ष ने अपने तमाम प्रकार के प्रयोगों को धरातल पर संपूर्ण रूप से उतारने का भरसक प्रयास किया जिसका रूप समय-समय पर जनता के बीच आता रहा है। तमाम विपक्षी पार्टियाँ अपनी-अपनी ताकत का भरपूर प्रदर्शन भी करती रहीं।

समय-समय पर विपक्षी पार्टियों ने एक मंच पर खड़े होकर देश की जनता को अपनी एकता की शक्ति का प्रदर्शन भी दिखाया जिसे देश की जनता ने शांत रहकर बड़े ही गंभीरता के साथ देखा और चुनाव का समय आने का इंतेजार किया।

भाजपा को हराने के लिए विपक्ष की रणनीतिक पराकाष्ठा यहाँ तक पहुँच गई की विपक्ष ने भानमती का कुनबा भी अपनी पूरी क्षमता के साथ इकट्ठा किया। परन्तु, वाह रे देश की जनता तेरा फैसला भी सबसे न्यारा। देश की जनता शांत रहकर समय की प्रतीक्षा करती रही कि समय आने पर उचित जवाब देगें, और अंततः देश की जनता ने वही किया जो उसने सोचा था।

इस बारी का चुनावी परिणाम कुछ इस प्रकार रहा कि जिसकी कल्पना भी कुछ बड़े नेताओं ने नहीं की होगी। बड़े से बड़े दिग्गज नेता को इस बार पराजय का सामना करना पड़ा। देश की जनता ने विपक्ष के द्वारा किए गए सभी प्रयोगों को दिल से नकार दिया। चाहे वह बिहार की धरती पर राजद एवं लालू का गठबंधन हो अथवा उत्तर प्रदेश की धरती पर दो धुर विरोधी पार्टियों सपा एवं बसपा का गठबंधन हो। इसबार देश की जनता ने सभी प्रकार के समीकरणों को नकार दिय़ा।

यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो शायद अनुचित नहीं होगा कि इसबार देश की जनता ने सभी प्रकार के समीकरणों से ऊपर उठकर अपनी ताकत का एक बड़ा रूप उन राजनेताओं को दिखाया है जोकि देश को जनता को समीकरणों के आधार पर बांधे रहने की बात करते थे। क्योंकि, इसबार देश की जनता ने सभी जाति एवं धर्मों से ऊपर उठकर देश हित एवं सामाज हित तथा जनहित के लिए बड़ा फैसला देश के नेताओं के सामने प्रस्तुत किया है।

जिसकी शायद कुछ नेतागणों ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। क्योंकि, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल। यह सभी क्षेत्र देश की राजनीति के ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी पहचान जतीय ध्रुवीकरण के आधार पर राजनीतिक गलियारों में की जाती है। जहाँ पर जातीय समीकरणों के आधार पर मतों का आंकलन किया जाता है। जिसमें उत्तर प्रदेश एवं बिहार मुख्य रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं। परन्तु, इसबार के चुनाव ने सभी राजनीतिक दीवारों को धारासाई करते हुए नया इतिहास रच दिया है।

शायद देश की जनता अपने शांत शब्दों में यह कहना चाहती थी कि हमने सभी पार्टियों के उन मुखियाओं को तब देखा है जब वह अपने-अपने राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान थे। कितने न्याय प्रिय एवं जनप्रिय वह नेता हैं हमें इस बात का ज्ञान है। क्योंकि, सरकार के विरोध में विपक्षी महागठबंधन के साथ जो भी नेता प्रधानमंत्री को भ्रष्ट बताने का प्रयास करते थे वह स्वयं ही अपने मुख्यमंत्री शासनकाल में भ्रष्टाचार के दल-दल में धंसे हुए हैं।

चाहे वह भारत के किसी भी कोने में हों। चाहे देश की बड़ी राजनीति पार्टी कांग्रेस हो अथवा बिहार के राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उत्तर प्रदेश की धरती का हाल भी उत्तर प्रदेश की जनता से बेहतर कौन जानता है। बसपा सुप्रिमों मायावती हों. अथवा सपा संरक्षक एवं समस्त यादव परिवार सभी के पास आय से अधिक संपत्ति होने का मामला जनता के सामने है।

जब छोटी कुर्सी पर बैठने के बाद लूट का यह हाल है तो बड़ी कुर्सी पर बैठने के बाद लूट की क्या पराकाष्ठा होगी इसका आंकलन आसानी लगाया जा सकता है। अतः देश की जनता भ्रष्टाचार और गरीबी से पूरी तरह से त्रस्त हो चुकी है। देश की जनता अब इस त्रासदी से मुक्ति चाहती है।

विपक्षी पार्टियों ने जनता को खूब वर्गलाने का प्रयास किया और तरह के राजनीतिक नमूने देश की जनता के सामने प्रस्तुत किए। कि देश की जनता को उसका हक नहीं मिला, जनता को उसका अधिकार नहीं मिला, जनता के साथ न्याय नहीं हुआ। जनता के लिए कोई भी योजना सरकार ने नहीं चलाई, कोई भी योजना देश की गरीब जनता के उत्थान के लिए सरकार ने धरातल पर नहीं उतारी, जितनी भी योजनाएं वर्तमान सरकार लेकर आई है वह सभी योजनाएं मात्र कागज पर ही सीमित हैं।

यह वर्तमान सरकार गरीबों के हितों की लड़ाई नहीं लड़ रही, अपितु वर्तमान सरकार पूँजीपतियों की सरकार है, मात्र मुट्ठीभर लोगों की यह सरकार है इसे गरीबों से कुछ भी लेना देना नहीं है। इस प्रकार सभी विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगाती रहीं। परन्तु, देश की जनता ने एक भी नहीं सुनी। क्योंकि, इतिहास साक्षी है जब-जब विश्व के किसी भी देश में जनता ने आंदोलन आरम्भ किया और जनहित हेतु आंदोलन आरम्भ हुआ तो उसका मुख्य कारण था की जनता में उपजा हुआ असंतोष।

जिसके परिणाम स्वरूप उस देश की जनता ने आंदोलन किया और अपने अधिकारों की रक्षा हेतु उस देश की जनता अपने-अपने घरों से निकलकर सड़कों पर आ खड़ी हुई। क्योंकि, किसी भी आंदोलन के सफल होने के लिए नेतृत्व का होना अत्यंत आवश्यक है। जब किसी भी देश में जनता को अपना विकल्प दिखाई देता है कि यह व्यक्ति देश की सत्ता पर विराजमान रहकर हम जनता की समस्याओं का निराकरण निश्चित ही कर देगा तभी उस देश में आंदोलन का बिगुल बजता है। और तब देश की जनता सड़कों पर भी उतर जाती है।

आंदोलन को सफल बनाकर ही शांत होती है। उसके बाद अपने संघर्षशील व्यक्ति को देश की गद्दी पर बैठा करके उसे देश की जनता अपनी जिम्मेदारी सौंप देती है। लोकतंत्र का यही मुख्य रूप है। इसे ही लोकतंत्र कहते हैं। जनता के लिए जनता हेतु जनता की सरकार दिन रात कार्य करे लोकतंत्र का यही मुख्य मंत्र है।

दूसरा सबसे अहम बिंदु यह है कि नेतृत्व क्षमता। किसी भी देश में आंदोलन नेतृत्व क्षमता के कारण ही हुआ है न कि इससे इतर। किसी भी नेता के नेतृत्व से फैला हुआ असंतोष ही आंदोलन का मुख्य कारण बना है। राजनीति का यही मुख्य मूल उद्देश्य है। सफल एवं दृढ़ तथा जनता के प्रति समर्पित नेता को ही देश की कमान सौंपी जाती है कि वह देश की जनता की समस्याओं का निराकरण कर सके। जो कि जनता की समस्याओं से भलिभांति अवगत हो, साथ ही जनता की समस्याओं के निराकरण की प्रबल क्षमता रखता हो। जो कि सेवाभाव से अपने कुशल अनुभव के साथ देश की सेवा कर सके।

किसी भी देश की राजनीति का मुख्य आधार यही होता है। क्योंकि, किसी भी देश का विकास उसके नेतृत्व के विवेक पर ही निर्भर करता है। यदि नेतृत्व क्षमत प्रबल एवं कुशल है तो देश विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल एवं कामयाब होता है। किसी भी देश का नेतृत्व यदि सफल एवं दूरगामी सोच वाले नेता के हाथों में है तो वह देश विश्व की कूटनीति एवं राजनीति में सफल होकर संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए आगे बढ़ता चला जाता है।

एक दिन जाकर वह देश विश्व की पहली पंक्ति में खड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि उस देश के नेता ने संपूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा और विश्व की कूटनीति एवं राजनीति में वह नेता सफल हो गया। जिससे कि संबन्धित देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति होती है।

आज देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी एवं मोदी सरकार पर जो भरोसा जताया है उसका मुख्य कारण एवं उद्देश्य यही है कि देश की जनता को अपना नेता मिल गया है जिसे देश की जनता छोड़ना नहीं चाहती। देश की जनता को इस बात का पूर्ण रूप से आभास हो गया है कि मोदी के नेतृत्व में ही देश का क्ल्याण संभव है।

आज देश की जनता ने जो परिणाम देश के सामने रखा है उससे बड़े-बड़े नेताओं की नींदे अवश्य ही उड़ गई हैं। क्योंकि, इतनी भारी बहुमत के साथ दोबारा फिर से सत्ता में किसी पार्टी का वापसी करना इस बात का अडिग साक्ष्य है कि देश की जनता के बीच सरकार ने अपना भरोसा कायम रखा जिसे भेद पाने में विपक्ष पूर्ण रूप से असफल रहा।

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