- July 23, 2017
बिहार -बेमेल सत्ता संयोग -घर का न घाट का –शैलेश कुमार
यह जानते हुए भी कांग्रेस से मिले हुए लालू यादव से सत्ता संधि की।
घोटाले के बाद से राजेडी कभी भी कांग्रेस के खिलाफ नहीं रही।
लालू प्रसाद यादव (स्वयं सत्ता काल में) और कांग्रेस ने बिहार के बारे में कभी भी नहीं सोचा। परिणाम सामने है।
लालू प्रसाद यादव् और कांग्रेस ने –सिर्फ मूर्ख और मूर्ख मुस्लिम राजनीति की। बिहार जाय भाड़ में ,बीजेपी विरोधी और हिन्दुओ को अलग – थलग करने की साजिश रची रही।
ऐसे घोर अन्यायियों के साथ एक सक्षम और प्रशासनिक दक्ष का हाथ मिलाना संयोग मात्र ही है जिसके कारण बिहार पूण: 20 वर्ष पीछे खिसक गया है।
मुख्यमंत्री नीतीश के साथ लोकोक्ति का पटाक्षेप — सरस्वती धुल में लेटी , लक्ष्मी यहाँ घर -घर की बेटी ।
मुझे हास्य कलाकार असरानी का डायलॉग यहाँ देने उचित लग रहा है —
“तुम लोग कभी सुधर ही नहीं सकते,जब हम नहीं सुधरे,तुम लोग कैसे सुधर जाओगे–??
यही हालत बिहार ने पैदा कर रखी है जिसका दुष्परिणाम सर्व व्याप्त है।
अगर मतदाता काम के आधार पर वोट देते तो जेडीयू को कम से कम 100 से ऊपर सीटें आना चाहिए था क्योंकि लालू यादव से तो बेहतर काम हुआ था। कुछ न कुछ काम तो हुआ था।
लालू यादव को 80 सींटे देने का अर्थ है की हम स्थावर ही बना रहना चाहते हैं। स्थावर जगंम।
आज जो ड्रामा हो रहा है उससे कौन वर्बाद हो रहा है —-?
महागठबंधन होने से पहले अंतिम बार मैंने खुलकर लिखा था –आप संधि न करे , मुख्यमंत्री ही बनना है तो मैं सीधे —- बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष को मेल लिखता हूँ।
लेकिन –बिहार को जो होना है,वह कौन मिटा सकता है। लक्ष्मण रेखा भी सीता को नहीं बचा पाई तो बिहार को कौन बचा सकता है।
उनके लिए बीजेपी पलके बिछाये हुए रह गई। मगर नीतीश मगर में ही फंसे रहना उचित समझे जिसका परिणाम मगर ही निकला क्योंकि मगर से तो मगर ही निकलेगा न !
अब हालत यह है कि जेडीयू अर्थात नीतिश से जनता का मोह भंग हो गया है। अपने चेहरे पर कालिख पोंतने का काम मुख्यमंत्री खुद कर रहे हैं,परिणाम भी काले होने जा रहा है,अर्थात घर का ना घाट का—।
अगर मतदाता कुंठित होगा तो परिणाम यही होगा।