- December 15, 2014
बिहार :सहरसा: परमीणिया गांव: 70 साल की महिला पति के साथ चिता में भस्म
सहरसा –बिहार के सहरसा में एक 70 साल की महिला के पति के साथ चिता में जल मरने का मामला सामने आया है। महिला के पति की शनिवार को मौत हो गई थी। आरोप लग रहे हैं कि महिला को बचाया जा सकता था लेकिन परिजनों ने इसकी कोशिश नहीं की। अब उसे सती बता कर महिमा मंडित करने की कोशिश की जा रही है। पुलिस ने इस मामले मे चुप्पी साध रखी है।
घटना सहरसा जिले के परमीणिया गांव की है। गांव के 75 साल के बुजुर्ग रामचरित मंडल की बीमारी की वजह से शनिवार सुबह मौत हो गई थी। देर शाम जब घरवाले दाह संस्कार करके वापस घर लौटे तो रामचरित की 70 साल की पत्नी दिवा देवी घर पर नहीं मिलीं। लोगों ने उन्हें ढूंढा। शमशान गए तो देखा कि वो पति की जलती चिता में कूद गई हॉं।
घरवालों का कहना है कि गहवा देवी अपने पति से बहुत प्रेम करती थीं। परिजनों के मुताबिक वो बार बार कहा करती थीं कि पति के मरने के बाद वो भी जिंदा नहीं रहेंगी। लेकिन खबरें ये भी आ रही हैं कि जब घरवाले श्मशान पहुंचे तब महिला को बताया जा सकता था। लेकिन आरोप है कि घरवालों ने ऐसा नहीं किया।
आग में जलने से दिवा देवी की मौके पर ही मौत हो गई। गांव के लोग इस घटना के महिमामंडन में जुट गए हैं। दीवा देवी के सती होने की जगह को सजा-धजा भी दिया गया है। लोग सती प्रथा की पुनरावृति की बात बड़े फख्र से कर रहे हैं। फिलहाल पुलिस इस मामले पर चुप है, बस जांच की बात कह कर पिंड छुड़ाने में लगी है।
दीवा देवी तो राख हो गईं मगर इस राख में अभी भी कई सवाल सुलग रहे हैं। क्या कहीं महिला को सती होने के लिए उकसाया तो नहीं गया? कानूनन पाबंदी के बावजूद क्यों जारी है सती प्रथा? आखिर आजाद देश में ऐसी घटनाओं पर कब रोक लगेगी?
ये 21वीं सदी की शर्मनाक हकीकत है। देश को आजाद हुए 67 साल बीत चुके हैं मगर औरतों के सती होने की घटनाएं रुक नहीं रहीं। इस प्रथा का समर्थन करने वालों को न कानून का डर है, न इंसानियत की फिक्र। समाज की खोखली सोच और पुलिस की सुस्त चाल ऐसे मामलों को खत्म नहीं होने देती।
आजादी के बाद से अब तक सती होने के दर्ज हैं 40 मामले
भारत में पति की चिता के साथ सती होने की कुप्रथा सदियों पुरानी है। जिस पर अंग्रेजों के जमाने में लार्ड बिलियम बेंटिक और राजा राम मोहन राय की कोशिशों से कानून बनाकर रोक लगाई गई। अस्सी के दशक में राजस्थान के दिवराला में रुपकुंवर सती कांड ने बड़ा बवाल मचाया था।
भारत में सती की कुप्रथा कब वजूद में आई कहना कठिन है। रिकॉर्ड में दर्ज पहला मामला सन 908 का है। आखिरी सबसे चर्चित दिवराला का रुपकुंवर सती कांड है। राजस्थान के सीकर जिले में है गांव दिवराला। 4 सितंबर 1987 को सती हुई रुपकुंवर। 17 साल की रुपकुंवर पति की चिता से साथ जली। सती स्थल पर मंदिर बनाकर पूजा पाठ शुरू हुआ। गैरकानूनी होने के कारण परिजनों के खिलाफ केस। रुपकुंवर को चिता पर जबरन बिठाने का आरोप। मुकदमे के दौरान सभी आरोपी छूट गए। 1828 में राजा राम मोहन रॉय ने सती के खिलाफ जंग छेड़ी। 1829 में विलियम बेंटिक ने सती की कुप्रथा पर पाबंदी लगाई। आजादी के बाद से अब तक सती के 40 मामले दर्ज हैं।