बिहार में विपक्ष की रणनीति पर भारी पड़ी एनडीए की ठोस नीति —मुरली मनोहर श्रीवास्तव

बिहार में विपक्ष की रणनीति पर भारी पड़ी एनडीए की ठोस नीति —मुरली मनोहर श्रीवास्तव

बिहार में महागठबंधन को भारी पराजय का सामना करना पड़ा है महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद तो सूबे में अपना खाता तक नहीं खोल पायी। विपक्ष में सिर्फ कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा। वहीं एनडीए ने 40 सीटों में से 39 सीटों पर कब्जा जमाकर एक नए समीकरण को जन्म दे दिया है।

अगर हम बिहार में डाले गए कुल वोटो की वोट परसेंट की बात करें तो सबसे अधिक भाजपा के पक्ष में लोगों ने मतदान किया है। भाजपा को 23.58 फीसदी वोटरों ने अपना मतदान किया है। जबकि दूसरे नंबर पर जदयू को 21.81 फीसदी मत मिला है।

एनडीए के घटक दल LJP को 7.86 फीसदी मत प्राप्त हुआ है। अगर हम बात करें विपक्ष की तो बिहार की सबसे बड़ी पार्टी कही जाने वाली राजद को 15.4 फीसदी मत मिला जबकि कांग्रेस को 7.70 फीसदी वोट प्राप्त हुआ है।

लोकसभा चुनाव के आए परिणाम से यह साफ हो गया है कि बिहार में भी एनडीए के पक्ष में जबरदस्त वोटिंग हुई है। इसकी एक वजह ये है कि इस बार युवा मतदाता जिन्होंने पहली बार मतदान किया है उनको नहीं भुलाया जा सकता है और उन लोगों ने जमकर एनडीए को मतदान कर समीकरण को बदलने में काफी मददगार साबित हुए हैं।

गठबंधन की गांठ पड़ी कमजोर

महागठबंधन का जातीय समीकरण और जातिगत आंकड़ा इन चुनावों में पूरी तरह से फेल होता नजर आया। बिहार की राजनीति के किंग लालू यादव के परिवार के दोनों सदस्य समधी चंद्रिका राय और बेटी मीसा भारती को हार झेलनी पड़ी। बिहार में मुस्लियम-यादव गठजोड़ की जो बात कही जाती रही, वह जमीन पर वोट में बदलता नजर नहीं आया।

इस बार के चुनाव में मतदाताओं के मनोमिजाज को विपक्ष समझ नहीं पायी ये पहली समस्या रही तो दूसरी समस्या ये रही की अपने में महागठबंधन की ही गांठ कमजोर नजर आ रही थी। जिसका खामियाजा इन्हें बूरी तरह से भुगतना पड़ा है। तीन नए दलों- हम, वीआईपी और रालोसपा को लेकर उसने अपना कुनबा तो बढ़ा लिया, मगर इसका लाभ गठबंधन को नहीं मिला। मतदाताओं विपक्ष इसे भांपने में नाकामयाब रहा।

स्पष्ट तौर पर बिहार में भी इस चुनाव में राष्ट्रवाद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों का जादू मतदाताओं के सिर चढ़कर बोला। इसके अलावे एनडीए की चुनावी रणनीति का भी विशेष फायदा एनडीए को हुआ और 40 में 39 सीटों को जीतकर एक नया रिकॉर्ड खड़ा कर दिया।

महागठबंधन को इस वक्त आत्मचिंतन करना होगा। इन्हें स्वीकार करना होगा कि विपक्ष जनता की नब्ज पहचान पाने में असफल रही है। महागठबंधन को इस वक्त आत्मचिंतन करना होगा। इन्हें स्वीकार करना होगा कि विपक्ष जनता की नब्ज पहचान पाने में असफल रही है।

किसी के लिए मंथन तो किसी के लिए चुनौती

बिहार में एनडीए (भाजपा-लोजपा-रालोसपा) ने यहां 40 में से 31 सीटें जीत दर्ज की थी। जबकि यूपीए (कांग्रेस-राजद-एनसीपी) को सिर्फ 7 सीटों के साथ समझौता करना पड़ा था। जबकि जदयू उस चुनाव में भाजपा से अलग होकर लड़ी थी, जिसमें उनको 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

लेकिन इस बार 2019 के चुनाव में जदयू-भाजपा चुनाव लड़ी, जबकि इस बार रालोसपा कांग्रेस और राजद के साथ महागठबंधन के खेमे में शामिल हुई। ओवर ऑल इनके कमजोर प्रबंधन और आपसी मतभेदों का नतीजा हुआ कि बिहार में भी कोई समीकरण काम नहीं आया और जाति से ऊपर उठकर लोगों ने मतदान किया जिसका नतीजा आपके सामने नजर आ रहा है।

हालांकि इस छोटी सी गलती से जहां महागठबंधन को सीख लेनी चाहिए आगे के लिए वहीं एनडीए के लिए भी आगे का सफर चुनौतियों से भरा होगा और अपनी जीत पर इतराने की बजाए बेहतर काम करने की जरुरत है।

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