- May 17, 2022
बिहार :: जमीन संबंधी मुकदमे में 108 (1914 में शुरू) साल बाद फैसला :: केस लड़ रहे वादी की यह चौथी पीढ़ी
पटना : बिहार में आरा की अदालत ने जमीन संबंधी एक मुकदमे में 108 साल बाद फैसला सुनाया है. एक सदी बाद मिले न्याय से कोईलवर के वादी अतुल सिंह और उनका परिवार संतुष्ट है. केस लड़ रहे वादी की यह चौथी पीढ़ी है, जबकि उनके वकील की तीसरी पीढ़ी है. अतुल अब एडीजे-7 श्वेता सिंह के फैसले की कॉपी लेकर एसडीएम कोर्ट में जमीन को मुक्त कराने के लिए जाएंगे.
कोईलवर से बबुरा जाने वाली सड़क पर तीन एकड़ जमीन अभी भी परती है. कुल नौ एकड़ जमीन की कानूनी लड़ाई 108 साल पहले 1914 में शुरू हुई थी. यह जमीन मूलत: कोईलवर निवासी नथुनी खान की थी. 1947 में देश बंटवारे के वक्त इनके वंशज पाकिस्तान चले गए और उनके पीछे जमीन के दो खरीदार मुकदमा लड़ते रहे.
दोनों खरीदार लड़ते रहे केस
जमीन के मूल मालिक नथुनी खान का साल 1911 में निधन हो गया, जिसके बाद पत्नी जैतून खान, बहन बदलन और बेटी बीबी सलमा के बीच बंटवारे को लेकर विवाद हो गया. इसके बाद साल 1914 में कोर्ट में वाद दायर किया गया. इस बीच जमीन के एक हिस्सेदार ने कोईलवर के रईस स्व. दरबारी सिंह को तीन एकड़ जमीन खरीद बेंच दी.
जैतून खान की पत्नी से दूसरी पार्टी ने पूरी जमीन खरीद ली. इस पर दोनों खरीदारों में मुकदमा शुरू हो गया. इस दौरान तत्कालीन दंडाधिकारी ने 14 दिसंबर 1931 को पूरी नौ एकड़ विवादित जमीन को जब्त करने का आदेश दे दिया. तब स्व. दरबारी सिंह ने जमीन को मुक्त कराने के लिए कोर्ट में वाद दाखिल किया. 17 मार्च 1992 को अदालत ने पक्ष में जमीन मुक्त करने का आदेश दिया. इसके खिलाफ दूसरे पक्ष के लोगों ने अपील दायर की थी.
अधिवक्ता गणेश पांडेय और सत्येंद्र नारायण सिंह ने बताया कि जज श्वेता सिंह ने इतने पुराने मामले को सुलझाने के लिए कड़ी मेहनत की और कोरोना में भी केस की लगातार सुनवाई की. कई कागज दीमक चाट गए थे. उन्हें किसी तरह जोड़ कर उनका अवलोकन किया. मुस्लिम परिवार का बंटवारा का केस, उनके वारिसों द्वारा बिक्री की गई जमीन का केस और स्व. दरबारी सिंह का केस सब आपस में जुड़े हुए थे.
केस में मुवक्किल की 4 पीढ़ी और अधिवक्ता की तीसरी पीढ़ी रही शामिल
अतुल सिंह के परदादा स्व. दरबारी सिंह ने जमीन खरीदी थी और लगभग 40 साल केस लड़ा. फिर उनके पुत्र स्व. राजनारायण सिंह इस केस को लेकर आगे बढ़े. उनके बाद अतुल के पिता अलखदेव नारायण सिंह ने केस को देखा. वहीं, इस केस को लड़ रहे अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह के दादा स्व. शिवव्रत नारायण सिंह, स्व. दरबारी सिंह के वकील थे. उसके बाद उनके पुत्र अधिवक्ता स्व. बद्री नारायण सिंह ने इस केस को लड़ा. फैसले के समय स्व. ब्रदी नारायण के पुत्र सत्येंद्र नारायण केस को देख रहे थे.