बाल विवाह के खिलाफ लड़कर जीवन में आगे बढ़ती पीढ़ी — अमित बैजनाथ गर्ग

बाल विवाह के खिलाफ लड़कर जीवन में आगे बढ़ती पीढ़ी — अमित बैजनाथ गर्ग

जयपुर, राजस्थान———- बाल विवाह के खिलाफ भले ही देश में सख्त कानून हो, मगर हकीकत यह है कि यह आज भी कहीं चोरी छुपे तो कहीं खुलेआम जारी है. राजस्थान इस मामले में देश में अग्रणी है, जहां के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के आंकड़े सबसे अधिक हैं. लेकिन अच्छी बात यह है कि अब खुद नई पीढ़ी आगे बढ़कर न केवल इसका विरोध कर रही है बल्कि पढ़ाई और आत्मनिर्भर बनने की खातिर बचपन में हुए अपने विवाह को तोड़ने का हौसला भी दिखा रही है. राजस्थान के कई गांवों के युवक और युवतियों ने अपने बाल विवाह तोड़कर इस कुरीति के खिलाफ कदम बढ़ाया है. उनकी कहानियों में बहुत कुछ छिपा है. जज्बा है, तड़प है, आगे बढ़ने का हौसला है और इन सबसे बढ़कर समाज-सरकार से कई सवाल हैं. ऐसे सवाल, जिनका जवाब आजादी के इतने सालों बाद भी नहीं मिल पा रहा है. माटी से निकली बगावत की इस चिंगारी को हवा लग जाए, तो शायद बाल विवाह जैसी बुराई का खात्मा संभव है.

सहज रूप से इन कहानियों को पढ़कर इन रियल हीरोज को सलाम किया जाना चाहिए. इनमें कुछ कहानियां बाल विवाह के दूसरे पहलुओं को भी बयां करती हैं. कुछ किरदार अभी भी अपने विवाह को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कुछ किरदार ऐसे भी हैं जिनके हौसले के आगे घर वालों ने न केवल घुटने टेक दिए बल्कि इस लड़ाई में उनका साथ भी देने लगे हैं. आइए, इन कहानियों को पढ़ें, इन किरदारों से मिलें.

नीतू : किसी की एक नहीं सुनी

टोंक जिले की पीपलू पंचायत समिति की नीतू की 14 साल की उम्र में उसके नाना ने शादी तय कर दी. नीतू बताती है कि जिस लड़के से मेरी शादी तय हुई, वह आईटीआई करता था. मुझ पर मम्मी-पापा लड़का देखने का दबाव बनाने थे, पर मुझे शादी नहीं करनी थी, इसलिए मैं हमेशा लड़का देखने से मना करती रही. मैंने बाल विवाह के नुकसान के बारे में पढ़ा था. मैंने परिवार वालों को लाख समझाया, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं थे. वे मुझे बार-बार उलाहना देते कि तू लड़के को देखती क्यों नहीं? फिर ऐसा लड़का दोबारा नहीं मिलेगा. मेरा हर बार यही जवाब होता कि न मिले तो ना सही. दुनिया के सारे लड़के मर नहीं गए हैं. मेरी शादी होनी होगी, तो लड़का भी जरूर मिलेगा. मैंने जिद पकड़ ली और पूरे परिवार का विरोध शुरू कर दिया. धमकी दी कि लड़का दिखाया तो उसे भी मना कर दूंगी. फिर पापा से भी बोल दिया कि नहीं करनी है शादी. उनसे खूब बहस हुई. आखिरकार परिवार को झुकना पड़ा. नीतू कहती है कि ‘शुरुआत में तो खूब डर लगता था, लेकिन अब उसे किसी से डर नहीं लगता.’

फिरोज : मेरी शादी टूटना आसान नहीं

अजमेर के अजयसर गांव के फिरोज चीता की सगाई 14 साल की उम्र में हुई, 17 साल की उम्र में शादी करा दी गई. फ़िरोज़ के अनुसार साल 2013 में उसकी शादी हुई, लेकिन वह गौना नहीं करने दे रहा है. परिवार के दबाव के बाद भी वह आज तक अपनी दुल्हन को लेकर नहीं आया है. फिरोज की शादी उसके बड़े भाई की शादी के साथ ही हुई थी. उसकी शादी अजमेर की केकड़ी तहसील के भीमपुरा गांव की लड़की के साथ हुई थी. वह आठवीं तक पढ़ी है और खेती-बाड़ी में परिवार का हाथ बंटाती है. बकौल फिरोज, मैं चाहता हूं कि मेरी शादी टूट जाए, लेकिन यह उतना आसान नहीं है. इसकी वजह है कि ऐसा होने पर उसके बड़े भाई की शादी टूट जाएगी. वह कहता है कि अभी मेरी पढ़ने की उम्र है. मैं कुछ करना चाहता हूं.

आशा : अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी

टोंक जिले के गुर्जर बहुल बेगमपुरा गांव की आशा गुर्जर की सगाई तीन साल की उम्र में कर दी गई. कहने को आशा के पिता सरकारी अध्यापक हैं. लेकिन परिवार के आगे उनकी भी एक न चली. आशा की कहानी उसकी बुआ की शादी से शुरू होती है. आशा की बुआ की शादी जिस घर में हो रही थी, उसी घर में आशा का पति तलाशा गया था. परिवार चाहता था कि बुआ के साथ भतीजी की शादी भी कर दी जाए. इससे एक ही खर्चे में दोनों काम हो जाएंगे. आशा बताती है कि पूरा खानदान-समाज मेरी शादी कराने पर तुला था. मैंने सभी को समझाया, पर कोई नहीं माना. अलबत्ता मेरी मम्मी और दादी मेरे फैसले के साथ थी, लेकिन वह भी परिवार के दबाब के आगे लाचार थी. परिवार-समाज धमकी देता और मैं डर जाती. गांव वाले ताने मारते. मुझे किसी ने एनजीओ शिव शिक्षा समिति के बारे में बताया, मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई. उन्होंने भी मेरे परिवार को समझाने की कोशिश की. जब वे नहीं माने तो उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी. आखिरकार परिवार को मेरी बात माननी पड़ी.

चेतन : शादी के लिए नहीं है बचपन

अजमेर के गुर्जर बहुल गांव अजयसर के ही चेतन चीता की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. चेतन का बाल विवाह नहीं हुआ. इसके बावजूद उसकी कहानी मजेदार है. चेतन की उम्र जब 14 साल थी, तब उसके परिवार ने उसका बाल विवाह करने की जिद पकड़ ली थी. परिवार ने दबाव बनाया, चेतन को लगातार तीन लड़कियां दिखाई गईं, लेकिन उसने हामी नहीं भरी. चेतन इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहता था. उसने किताबों में बाल विवाह की दिक्कतों के बारे में पढ़ा था. चेतन कहता है कि मैं पढ़ना चाहता था, कुछ करना चाहता था. अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था. अपनी शादी को पांच साल से टाल रहा चेतन कंप्यूटर की पढ़ाई कर रहा है.

कैलाशी : पांच साल से नहीं गई ससुराल

टोंक जिले के बेगमपुरा गांव की कैलाशी गुर्जर की मां भागुती बीमार रहती हैं. भागुती के पति की मौत दस साल पहले हो गई थी. कैलाशी के पिता ही तीन साल की उम्र में उसकी सगाई कर गए थे. कैलाशी के साथ उसकी छोटी बहन और भाई की भी सगाई पिता ने कर दी थी. दोनों बहनों की सगाई एक ही घर में हुई थी. पिता की मौत के बाद सभी की सगाई टूट गई. इसके बाद रिश्तेदारों ने 14 साल की कैलाशी की दोबारा सगाई करवा दी, लेकिन उसने कभी इस शादी को नहीं माना. कैलाशी बताती है कि मैंने मम्मी और रिश्तेदारों का बहुत समझाया, पर कोई मानने को तैयार नहीं था. लड़के वाले बार-बार लेने आते हैं, मैं हर बार उन्हें खाली हाथ लौटा देती हूं. कैलाशी ने अपनी मां को रजामंद कर लिया है कि उस पर और उसकी बहन पर शादी का दबाव नहीं बनाया जाए. आज दस साल हो गए हैं, कैलाशी को अपने बाल विवाह को तोड़े हुए.

नसरीन : बात करना चाहती हूं, पर

अजमेर के गुर्जर बहुल गांव काजीपुरा की नसरीन बानो की नौ साल की उम्र में सगाई हो गई थी. नसरीन अभी तक परिवार से मन की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है. वह बताती है कि जब वह नौ साल की थी, तब उसे सगाई के बारे में पता चला. नसरीन की बहन शमां के साथ उसकी सगाई हुई थी. ससुराल पक्ष की ओर से शादी और गौने का दबाव बनाया जा रहा है. जिस लड़के से उसकी सगाई हुई है, उससे कभी बात नहीं हुई. पर वह लड़के से बात करना चाहती है, उसे समझना चाहती है. हालांकि पारिवारिक बंदिशों में यह संभव नहीं है. कंप्यूटर की पढ़ाई कर रही नसरीन पढ़ा-लिखा लड़का चाहती है. नसरीन पर जल्द शादी करने का दबाव है, ताकि उसके बाद दो बहनों की भी शादी हो सके. नसरीन अपनी सगाई तोड़ने के लिए परिवार से बात करना चाहती है, लेकिन कर नहीं पाती है. वह अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है. उसे लड़का अपनी पसंद का चाहिए.

नेराज : जब लगेगा, तब जाऊंगी

अजमेर जिले की केकड़ी तहसील के रामपाली गांव की नेराज गुर्जर के नाम का मतलब है नाराजगी. उसके जन्म से परिवार खुश नहीं था, इसलिए नाम ही नेराज रख दिया. नेराज जब 12 साल की थी, तब उसकी सगाई हुई. 15 की होने पर शादी कर दी गई. आंटा-सांटा प्रथा के तहत नेराज की शादी उसकी तीन बहनों के साथ हुई. उसका पति उससे दो साल छोटा है. नेराज शादी तो नहीं रोक पाई अपनी, पर उसने गौना रोका हुआ है. परिवार और ससुराल वालों को साफ बोल दिया कि जब लगेगा, तब ससुराल जाऊंगी. नेराज बताती है कि तीन बहनों की सगाई करने के बाद आनन-फानन में मेरी भी कर दी गई, ताकि चारों बहनों की डोली एक साथ उठ सके. पास के ही सरसड़ी गांव का कन्हैया नेराज का दूल्हा है. वह कहती है कि उस पर ससुराल की ओर से आने का दबाव है. नेराज का परिवार चाहता है कि वह जल्द से जल्द शादी कर अपने ससुराल जाए, लेकिन वह तैयार नहीं है.

सीता : मैं खूब पढूंगी, पुलिस बनूंगी

अजमेर जिले के अजयसर गांव की सीता चीता जब आठवीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसकी सगाई कर दी गई. ससुराल वाले पढ़ाई छोड़ने और आने का दबाव बनाने लगे. सीता के पढ़ने की जिद के आगे यह सगाई टूट गई. इसके बाद मोहल्ले के एक अंकल ने सीता की दूसरी शादी में रुचि लेना शुरू किया, ताकि आंटा-सांटा के तहत उनके बेटे को भी बहू मिल जाए. सीता की दो बहनें भी उस पर शादी का दबाव बनाती हैं. सीता बताती है कि जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसकी सगाई हुई. एक दिन कुछ लोग मेरे लिए जेवर-कपड़े लेकर आए. मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने मम्मी से बात की. तब मम्मी ने बताया कि तेरी सगाई हो चुकी है. उस समय मैं बहुत गुस्सा हुई, तब मम्मी ने कहा कि अभी शादी नहीं कर रहे हैं. कुछ दिनों बाद ही ससुराल वाले पढ़ाई छोड़ने और ससुराल आने का दबाव बनाने लगे. मैंने मम्मी से कहा कि मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. इसके बाद यह सगाई टूट गई. सगाई टूटने का उसे कोई गम नहीं है. वह तो खूब पढ़ लिख कर पुलिस में जाना चाहती है.

कमला : कच्ची उमर, पक्का रिश्ता

ग्रेजुएशन कर रही कमला चंदेल ने बचपन में जिस लड़के से बाल विवाह तोड़ा, बालिग होने पर उसी लड़के को भावी जीवन साथी के रूप में चुना है. कमला बताती है कि तीन साल की उम्र में उसका बाल विवाह हुआ. उसे जब यह बात पता चली, तब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी. टोंक जिले के पीपलू ब्लॉक की कमला बताती है कि मैं परिवार से यही पूछती रहती थी कि मेरा बाल विवाह कब किया और क्यों किया? 11वीं क्लास में पढ़ने के दौरान मुझे ससुराल भेजने की बात हुई, पर मैंने विरोध कर दिया. कमला ने उस लड़के को भी देखा, जिससे उसकी शादी की बात पक्की हुई थी. लड़का-लड़की एक-दूजे को पसंद आ गए. दोनों में समझ पैदा हुई, तय हुआ कि पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ बनने पर ही शादी करेंगे. कमला अपनी पसंद को बाल विवाह नहीं मानती. वह कहती है कि जब मैं लड़के से मिली, तब मैं बालिग थी. अब कमला की पसंद को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए या नहीं, ये और बात है. इसे कच्ची उमर का पक्का रिश्ता तो कहा ही जा सकता है.

अन्नू : पंचायत के फैसलों से नहीं थमती जिंदगी

अजमेर के किशनगढ़ कस्बे से ताल्लुक रखने वाली अन्नू कुमारी नायक का तीन साल की उम्र में बाल विवाह हो गया था. 16 साल की उम्र तक आते-आते ससुराल भेजने के लिए दबाव इतना बढ़ गया कि पंचायत बुला ली गई. तीसरी बार पंचायत बैठने तक अन्नू के परिवार को बिरादरी से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उसने हिम्मत कर बचपन में की गई शादी को ठुकरा दिया था. दो पंचायतों में जो हिम्मत पिता नहीं दिखा पाए, तीसरी में अन्नू ने खुद दिखाई. दस भाई-बहनों में नौवें नंबर की अन्नू टीचर बनना चाहती है. तीन साल की उम्र में उसकी सीधे ही शादी कर दी गई. इस बारे में अन्नू को जब पता चला, तब वह सात साल की थी. 12 साल की उम्र में पहली बार ससुराल भेजने की बात आई. 16 साल की हुई, तब दसवीं में आ गई. बकौल अन्नू, अब रोज-रोज का तमाशा देखकर गुस्सा आने लगा था. मैं ससुराल नहीं जा रही थी, तो ससुराल वालों ने पंचायत में शिकायत कर दी. पंचायत बैठी, पापा ने ससुराल भेजने के लिए मना कर दिया और जैसे-तैसे दो साल तब के लिए बात टल गई.

अन्नू बताती है कि मेरे दोबारा मना करने पर फिर पंचायत बैठी. इस बार पंचायत बड़ी थी. पापा पंचायत के लिए जाने लगे तो मैंने साफ़ कह दिया कि मैं अभी पढ़ना चाहती हूं. पापा ने पंचायत में मुझे ससुराल भेजने से मना कर दिया. पंचायत भड़क गई और हमें तीन साल के लिए बिरादरी से बाहर कर दिया गया. इस दौरान स्थानीय एनजीओ महिला जन अधिकार समिति के बारे में पता चला. साल 2013 में पंचायत फिर बैठी. लड़कियों को पंचायत में जाने की इजाजत नहीं है, लेकिन इस बार मैं स्वयं गई और पूरे पंचायत में रिश्ते को नकार दिया. जिसके बाद मेरे परिवार को हमेशा के लिए बिरादरी से बाहर कर दिया गया. मैंने रिश्ते को कानूनी रूप से खत्म करने की ठान ली. उम्र की वजह से यह निरस्त नहीं हुआ, तो तलाक की प्रक्रिया से इसे खत्म किया. अब अन्नू शादी के बारे में नहीं सोचती. उसे अपना भविष्य बनाना है. उसका कहना है कि पंचायतें कानून हाथ में लेकर परिवारों की इज्जत से खेल रही हैं. जिसे ख़त्म करना ज़रूरी है.

(चरखा फीचर)

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