बागियों के भरोसे शिकार पर निकले ‘चिराग’ —– मुरली मनोहर श्रीवास्तव

बागियों के भरोसे शिकार पर निकले ‘चिराग’ —–  मुरली मनोहर श्रीवास्तव

पटना—- बिहार विधानसभा चुनाव में जहां कल तक एनडीए और महागठबंधन के बीच वाकयुद्ध और राजनीतिक लड़ाई जारी थी। वहीं आज की तारीख में एनडीए और महागठबंधन अंदरुनी कलह से जुझ रहा है।

महागठबंधन में कल तक जहां कांग्रेस, राजद, रालोसपा, वीआईपी एक साथ थे वहीं सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद होने के बाद महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, माले, सीपीआई जहां एक साथ हो गए। वहीं रालोसपा की एनडीए में बात नहीं बनी तो बसपा के साथ जुड़कर बिहार की सियासत में अपना वजूद कायम करने में लगे हुए हैं। जबकि वीआईपी महागठबंधन से दूरी बनाने के बाद एनडीए में अपना सिक्का जमाने में सफल हो गया और 11 सीटों के साथ एक विधान पार्षद की सीट लेकर एनडीए में अपनी जगह सुनिश्चित करने में सफल हो गए। अब बिहार की सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई लड़ी जा रही है। सभी दल नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ने को तैयार है।

चिराग की भूल या सियासतः

राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ओत प्रोत लोजपा सुप्रीमो सह सांसद चिराग पासवान पिछले कई दिनों से एनडीए में कोहराम मचाए हुए थे। वहीं उन्होंने एनडीए से खुद को किनारा कर लिया है। लेकिन अलग होने की बात पर यकीन नहीं होता कि एक तरफ प्रधानमंत्री के गुणगान में लगे हुए हैं वहीं जदयू और नीतीश कुमार के सारे किए गए विकास को ढकोसला बताकर विरोध जता रहे हैं। इतना भी करते तो बात होती मगर नीतीश सरकार के सात निश्चय पर अंगुली उठाने वाले चिराग इस बात को भूल रहे हैं कि जिस सरकार पर अंगुली उठा रहे हैं वो भी इस सरकार के अंग हैं।

लोजपा किसका विरोध कर रही हैः

सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए और आगे की रणनीति पर खुद को काबिज करने के लिए चिराग पासवान लगातार पैंतरे बदल रहे हैं। एक तरफ नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं और जदयू के खिलाफ उनके क्षेत्र में कैंडिडेट दे रहे हैं। वहीं भाजपा के कई कदावर नेताओं को तोड़कर अपने दल में एक पर एक ज्वाइन करा रहे हैं। सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि पिछले चुनाव में जहां भाजपा के मुख्यमंत्री कैंडिडेट के रुप में थे राजेंद्र सिंह उन्होंने भाजपा को छोड़कर लोजपा ज्वाइन कर लिया है और बिहार सरकार के मंत्री जयकुमार सिंह के विरोध में दिनारा से ताल ठोकेंगे। इतना ही नहीं नोखा से भाजपा के रामेश्वर चौरसिया भी भाजपा को छोड़कर लोजपा के साथ हो लिए हैं। जबकि भाजपा की पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी ने भी लोजपा के दामन को थाम लिया है। साथ ही भोजपुर के जगदीशपुर के पूर्व विधायक भगवान सिंह कुशवाहा ने टिकट नहीं मिलने से खफा होकर लोजपा के दामन को थाम लिया है।

जदयू का विरोध या भाजपा का समर्थन

अगर हम बात करें चुनावी समर की तो बिहार में लोजपा खुद को स्थापित करने की कोशिश तो कर रही है। मगर एक बात समझ में नहीं आ रही है कि लोजपा के चिराग भाजपा का अगर गुणगान कर रहे हैं तो भाजपा के नेताओं को धड़ाधड़ टिकट क्यों बांट रहे हैं। जदयू के क्षुब्ध नेताओं को टिकट दे रहे हैं तो ये बात समझ में आती है। लेकिन भाजपा के लगातार जनसंघ के समय से साथ रहने वाले नेताओं का टूटकर लोजपा के साथ होना लोजपा और भाजपा दोनों पर सवाल खड़ा कर रहा है।

भाजपा को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगीः

एनडीए में कल तक भाजपा-जदयू और लोजपा साथ चल रहे थे। लेकिन इधर कुछ दिनों से लोजपा खुद को अलग कर लिया है और लगातार प्रधानमंत्री और अमित शाह के गुणगान में कसिदे गढ़ रहे हैं। चिराग कहते हैं कि हम जीतने के बाद भाजपा का ही समर्थन करेंगे। हलांकि भाजपा ने बयान दिया है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के फोटो का लोजपा चुनाव में उपयोग नहीं कर सकता है। बावजूद इसके लोजपा लगातार जदयू से ज्यादा भाजपा को ही हानि पहुंचा रहा है। इस बात को भाजपा को भी गंभीरता से लेनी चाहिए।

चुनाव में अगर छोटी सी भूल होगी तो इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ सकता है। महागठबंधन अगर खुद पर भरोसा करके राजनीति कर रही है तो वो उसका सोचना अपने तरीके से सही है। मगर एनडीए में लोजपा की कार्यशैली कई सवाल खड़ा कर रहा है। अब ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि एनडीए में भाजपा किस प्रकार अपनी प्रतिष्ठा बचाने में कामयाब होती है। या अपने ऊपर लोजपा के कदम का लांक्षन जो लगाया जा रहा है उसमें कितनी सत्यता है इसको स्पष्ट करना होगा।

वैसे नीतीश कुमार को भी हल्के में लेना भाजपा और लोजपा के लिए बहुत बड़ी भूल होगी। क्योंकि अगर भाजपा और लोजपा के बीच कुछ अंदरुनी खिचड़ी पक रही है तो उसको भी यह बात मान लेना चाहिए कि नीतीश कुमार भी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं और वो भी किसी के साथ गलबहिया कर बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं।

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