- April 9, 2016
बांस उद्योग : 26 हजार करोड़ रू० का व्यापार
पेसूका ——————– केन्द्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री ने आज इंदौर में शुरू हुए तीन दिवसीय वैश्विक बांस सम्मेलन में कहा कि बांस की रास्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी मांग है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में आपूर्ति और मांग की कमी को पाटने और विभिन्न प्रकार के उद्योगों में इसकी संभावना तलाशने और इसकी आपूर्ति सुनिश्चत करने के लिए तेजी से काम कर रही है।
इस सम्मेलन में आये विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 के अंत तक वैश्विक बांस मण्डी में 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ जबकि इसी अवधि के अंत तक घरेलू बांस उद्योगों ने 26 हजार करोड़ रू० का व्यापार किया।
इस अवसर पर मंत्री महोदय ने कहा कि औद्योगिक उत्पादों और उपयोगों की तेजी से खोज की जा रही है। जैव ईंधन, बायो मास गैसीफीकेशन के रूप में सीधे ही उपयोग करके विद्युत सृजन के लिए बांस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जा रहा है ताकि चारकोल का उत्पादन किया जा सके अथवा कम्प्रेस्ट बैंबू वायोमास पैलेट तैयार किया जा सके। बाथरोब, बेबी वियर, टी-शर्ट मोजे, जैकेट और सूट जैसे अधिक गुणवत्ताप्रद बांस के वस्त्र के उत्पादन और निर्यात के लिए रेयॉन/सेल्युलोज फाइबर/ लुगदी संयंत्र स्थापित किए गए हैं।
उन्होंने बताया कि बांस का खाद्य पदार्थ, पोषाहारीय और आजीविका व्यवस्था संबंधी पारिस्थितिकीय सुरक्षा में अहम स्थान है। स्थायी और नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन के रूप में बांस सतत विकास, रोजगार सृजन, ग्रामीण निर्धन वर्ग को सतत आजीविका प्रदान करने और गरीबी उन्मूलन में यह महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। हमारे देश में कुल वन क्षेत्र मेंलगभग 13 प्रतिशत बांस वन है और यहां इसकी 137 से भी अधिक प्रजातियां उगाई जाती है जिसके लगभग 1500 विविध उपयोग है।
कृषि एवं कल्याण मंत्री ने जानकारी दी कि विगत वर्षों में बांस एवं बांस वन क्षेत्रों में कमी आयी है। भारत में बांस की उत्पादकता काफी कम है। इस कारण औद्योगिक उपयोग के लिए बांस की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है। योजना आयोग के अनुमानों के अनुसार घरेलू उत्पाद, मांग के आधे की आपूर्ति के लिए ही पर्याप्त है। अत: बांस आधारित परम्परागत उद्योग, बांस कम्पोजिट उद्योगों और समाज के अन्य वर्गों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बांस की गुणवत्ता और उत्पादन के सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
बांस के आर्थिक दोहन की संभावना देखते हुए भारत सरकार ने बांस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 2006 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) की शुरूआत की जिसे अब राष्ट्रीय कृषि वानिकी एवं बांस मिशन (एनएबीएम) के नाम से फिर से शुरू किया गया है।
इस अवधि में मिशन अपने सीमित संसांधनों के अंतर्गत राज्यों में स्थापित बांस मिशनों के साथ मिलकर देश के 28 राज्यों में इसे क्रियान्वित कर रहा है। मिशन के प्रारंभ से 3,49,864 हैक्टेयर भूमि में बांस रोपण किया गया है। मिशन के अंतर्गत गुणवत्ताप्रद पौध सामग्री की आपूर्ति करने के लिए 1436 नर्सरियां स्थापित की गई है।
कृषि एवं कल्याण मंत्री ने इस मौके पर कहा कि भारत में बांस क्षेत्र का तेजी से विकास करने की आवश्यकता है जो उचित कार्यनीतियों के बिना संभव नहीं है। उन्होंने इस क्षेत्र से जुड़े शिक्षाविदों और अनुसंधान में लगे लोगों से आग्रह किया कि वे प्रोद्योगिकी और नियोजन के वर्तमान अंतर को कम करने तथा प्रारंभिक कारीगरों तक प्रोद्योगिकियां पहुंचाने में अपना योजदान दें।