बाँस निवेश मीट: बाँस आधारित फर्नीचर उद्योग ‘वेधा”

बाँस निवेश मीट: बाँस आधारित फर्नीचर उद्योग ‘वेधा”

अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग श्रीमती अरुणा शर्मा ने आज यहाँ प्रशासन अकादमी में देश की पहली बाँस निवेश मीट के समापन सत्र के अवसर पर बाँस उत्पादन को स्थायी आजीविका का साधन बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में वन क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र में भी व्यापक पैमाने पर बाँस-रोपण कर ग्रामीण अँचलों में बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया करवाया जा सकता है। बाँस को लकड़ी का विकल्प बनाया जाना आवश्यक है, ताकि पेड़ों की कटाई रुके और पर्यावरण की रक्षा भी हो। उन्होंने कहा कि ग्रामीण अंचलों में बाँस से निर्मित सामग्री के उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ ऐसी सामग्री के वेल्यू एडीशन से ग्रामीणों के आर्थिक विकास में मदद मिलेगी।

श्रीमती शर्मा ने दो-दिवसीय बाँस निवेश मीट के अंतिम सत्र में बाँस उत्पादन को बिजनेस मॉडल के रूप में अपनाये जाने का सुझाव दिया। उन्होंने ग्रामीण अंचलों में बाँस उत्पादक कम्पनियों के गठन की जरूरत बतायी। श्रीमती शर्मा ने बाँस के वैज्ञानिक उत्पादन के लिये अनुसंधान गतिविधियों और नवाचारों को बढ़ावा दिये जाने की बात कही। बाँस पौध-रोपण परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने के मक़सद से बेंकों से प्राथमिकता से ऋण सहायता मुहैया करवाये जाने की आवश्यकता भी बतायी।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री नरेन्द्र कुमार ने बताया कि मध्यप्रदेश में बाँस उत्पादन के विकास के लिये सघन प्रयास हुए हैं। इस ओर नवाचारों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य के बैतूल, सिवनी, बालाघाट और होशंगाबाद क्षेत्र में बाँस पौध-रोपण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। श्री नरेन्द्र कुमार ने चिंता जतायी कि पिछले 30 वर्ष में प्रदेश में बाँस उत्पादन क्षेत्र निरंतर घटा है। उन्होंने बाँस उत्पादन के नये क्षेत्र विकसित करने पर भी जोर दिया।

बाँस आधारित फर्नीचर उद्योग ‘वेधा” के संचालक श्री सुनील जोशी ने बाँस उत्पादन से जुड़े ज्ञान को आपस में साझा करने की बात कही। उन्होंने कहा कि बाँस हरित सोना है। पर्यावरण अनुकूल इस उत्पादन से हम ग्रामीण अँचलों के आर्थिक उत्थान को नई दिशा दे सकते हैं। ‘आर्टिसन एग्रोटेक” के संचालक श्री देव मुखर्जी ने कहा कि मध्यप्रदेश में बाँस क्रांति ग्रामीणों का जीवन बदलने में मददगार बन सकती है। अनुपयोगी और पड़त भूमि पर वैज्ञानिक ढंग से बाँस उत्पादन के जरिये ग्रामीणों को स्थायी आजीविका के अवसर मुहैया हो सकते हैं। श्री मुखर्जी ने बताया कि उन्हें इंदौर के पास चौरल और बड़वाहा क्षेत्र में बाँस की व्यावसायिक उपज लेने में सफलता मिली है।

इस दौरान दो-दिवसीय बाँस निवेश मीट की मुख्य अनुशंसाओं पर भी चर्चा हुई। सीआईआई के श्री श्रीनिवास मूर्ति ने आभार व्यक्त किया। बाँस मिशन के संचालक श्री ए.के. भट्टाचार्य, विषय-विशेषज्ञ तथा विभिन्न देश से आये निवेशक और देश के विभिन्न राज्य से आये बाँस उद्योग प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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